ज्योतिष-सूर्य पं. सूर्यनारायण व्यास

एक भारतीय यूरोप की यात्रा कर रहे थे और उस दिन ग्रीनविच की - विश्वविख्यात वेधशाला, जो सारे संसार के समय का निर्धारण करती है, देखने गए थे। वेधशाला के संचालक यह समझ गए थे कि ये कोई भारत के प्रभावशाली लेखक और विद्वान् हैं, इसलिए उन्हें आदर से विभिन्न विभाग दिखा रहे थे, पर सूर्य अनुसन्धान विभाग में जाकर तो यह आदर आश्चर्य से अवाक् ही रह गया।


एक दर्जन से अधिक विद्वान् लम्बी मेज पर झुके कुछ चित्रों पर तल्लीन मुद्रा में शोधकार्य कर रहे थे। संचालक ने इस कार्य को अपनी वेधशाला का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य बताया। लगभग दो साल पहले सूर्य के चारों और कुछ धब्बे दिखाई दिए थे और वेधशाला के दूरवीक्षण विभाग में उन धब्बों के चित्र लिए गए थे। उन्हीं चित्रों का रहस्य खोजने में ये विद्वान् लगे हुए थे।



भारतीय दर्शक के अधरों पर एक मीठी मुस्कान की रेखा खिल गई। संचालक चौंके- “क्या आप इस सम्बन्ध में कुछ जानते हैं?'' आश्चर्य से उन्होंने पूछा। उत्तर दिया और कोई दो घंटे में यह भी बताया कि वे धब्बे कब, क्यों आते हैं? और अब कब आएँगे।


उस विभाग की खोज पूर्ण हो गई थी। संचालक ने आग्रह से अनुरोध किया कि आप हमारे विभाग के साथ अपना एक फोटो खिंचवाने की कृपा करें। फोटो खिंच गया और प्रशंसाभरे परिचय के साथ यूरोप के अनेक पत्रों में छपा। संचालक के लिए मुग्ध कर देनेवाली बात यह थी कि भारतीय दर्शक के उत्तर और समाधान इस शालीनता के साथ दिए गए थे कि उससे स्वयं दर्शक की विशेषता का नहीं, भारतीय ज्योतिषशास्त्र की विशेषता का बोध होता था। यह भारतीय दर्शक थे- महान् ज्योतिर्विद् पं. सूर्यनारायण व्यास।


उज्जयिनी की महान् पैतृक परम्परा में महर्षि सान्दीपनि का नाम दुनिया में विख्यात है। भगवान् कृष्ण और बलराम के विद्यागुरु के रूप में सान्दीपनि को कौन नहीं जानता? माना जाता है कि सान्दीपनि वंश से पं. सूर्यनारायण व्यास का सीधा सम्बन्ध था। उनके पिता महामहोपाध्याय श्री नारायण जी व्यास सिद्धान्तवागीश अपने युग के असाधारण ज्योतिषी, खगोलविद् रहे हैं और उस जमाने में जब रेडियो, अखबार, टेलीविजन का जन्म नहीं हुआ था, तब बहुत सारे विदेशी विद्वान् उनसे पढ़ने आया करते। नारायण जी महाराज के बारे में कई चमत्कारी बातें मशहूर हैं। लेकिन कुछ के प्रमाण मैंने जुटाए हैं। मसलन उनके आश्रम में क्रान्तिकारी भी रहते थे। श्री मुकुन्दवल्लभ मिश्र, जिन्हें पढ़कर मैं बड़ा हुआ, ने अपनी पुस्तक की भूमिका में लिखा कि ‘श्रद्धेय शिवस्वरूप पं. नारायण जी व्यास को मैं यह ग्रन्थ समर्पित करता हूँ। तो मैं गद्गद हुआ कि मैं नारायण जी महाराज का पौत्र हूँ। कौन थे नारायण जी व्यास, खोजना चाहिए। मुझे ज्ञात हुआ कि महामहोपाध्याय काशी के महान् तन्त्रविद् पं. गोपीनाथ कविराज ने लिखा कि नारायण जी महाराज जब समाधिस्थ अवस्था में होते थे, तब उनकी नाभि से कमल खिलता था और वे एक साथ एक समय में दोनों हाथों से लिखते थे। एक हाथ से व्याकरण, एक हाथ से ज्योतिष पञ्चांग का कार्य और भारत के आरम्भिक पञ्चांग-विद्वानों में रहे। असाधारण खगोलविद् ऐसे महापुरुष के घर में पं. सूर्यनारायण व्यास का जन्मना ! पहली बार मैंने भी विगत वर्ष पण्डित जी का स्थल देखा। उज्जयिनी में स्थित सिंहपुरी में एक तिमंजिला भवन जो पण्डित जी के जन्म से ही पं. नारायण जी व्यास ने दान कर दिया। आज भी उसका दानपत्र सुरक्षित है।


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