क्या एक ही समय में जन्म लेनेवालों का भविष्यफल एक-सा होता है?

विश्व की कुल आबादी इस समय 7 अरब के आसपास है और उस 'आबादी का लगभग छठा भाग सौ करोड़ से अधिक केवल भारत में है। परिवार नियोजन के कार्यक्रमों में बढ़ोत्तरी के बावजूद प्रत्येक दस वर्ष में आबादी 25 प्रतिशत बढ़ती चली आ रही है। अतः यह कहा जा सकता है कि बच्चों का जन्म-दर अपने उफान पर है। इस समय प्रत्येक मिनट में भारत में जन्म लेनेवाले बच्चों की संख्या 4 होती है। फिर भी यदि आप किसी बड़े अस्पताल में कुछ दिनों के लिए ठहरकर निरीक्षण करें, तो आप पाएंगे कि शायद ही कोई दो बच्चे किसी विशेष समय में एकसाथ उत्पन्न होते हैं। अतः हर बच्चे की मंज़िल निश्चित तौर पर भिन्न होगी, चाहे लग्न की कुण्डली एक जैसी ही क्यों न हो, सारे ग्रहों की स्थिति एक जैसी ही क्यों न हो।


कभी-कभी एक ही गर्भ से दो बच्चों का भी जन्म होता है, तथापि जन्म-समय बिल्कुल एक नहीं होता, यही कारण है कि दो जुड़वा भाइयों के बीच बहुत सारी समानताओं के बावजूद कुछ विषमताएँ भी होती हैं, किन्तु विषमताएँ कभी-कभी इतनी मामूली होती हैं कि दोनों के बीच उसे अलग कर पाना काफी कठिन कार्य होता है। हो सकता है इन मामूली विषमताओं के कारण ही दोनों की मंज़िल भिन्न-भिन्न हो, दोनों अलग-अलग व्यवसाय में हों। बहुत बार देखने को ऐसा भी मिलता है कि दो जुड़वाँ भाइयों में से एक जन्म लेने के साथ ही या कुछ दिनों बाद मर गया और दूसरा आजतक जीवित ही है। जो जीवित है, उसकी चारित्रिक विशेषताएँ, सोच-विचार की शैली, उम्र के सापेक्ष ग्रहों की स्थिति और शक्ति के अनुसार ही है, किन्तु जो संसार से चला गया, उसके सभी ग्रहों का फल उस जातक को क्यों नहीं प्राप्त हो सका? यह बहुत ही गंभीर प्रश्न है।


 


मैने आयुर्दाय से संबंधित सम्पूर्ण प्रकरण का अध्ययन किया, उसके नियम- नियमावली को भी ध्यान से समझने की चेष्टा की, किन्तु मुझे कोई सफलता नहीं मिली। गत्यात्मक दशापद्धति से ही एक तथ्य का उद्घाटन करने में अवश्य सफल हुआ कि जब किसी ग्रह का दशाकाल चल रहा होता है, उससे अष्टम भाव में लग्नेश विद्यमान हो, तो कुछ लोगों को मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट अवश्य प्राप्त होता है। संजय गाँधी जब 34 वर्ष के थे और मंगल के काल से गुजर रहे थे, तब उनकी मृत्यु हुई। उनकी जन्मकुण्डली में धनु राशि के मंगल से अष्टम में लग्नेश शनि कर्क राशि में स्थित था। इनकी मृत्यु के समय शनि और मंगल- दोनों ही ग्रह लग्न से अष्टम भाव में गोचर में लगभग एक तरह की गति में मंदगामी थे। इसी तरह एन.टी. रामाराव शनि के मध्यकाल से गुजर रहे थे, वे 78 वर्ष की उम्र के थे। इनका जन्मकालीन शनि कन्या राशि द्वादश भाव में स्थित था तथा लग्नेश शुक्र शनि के अष्टम भाव में मेष राशि में मौजूद था।


इसी प्रकार अन्य कई लोगों को भी इस प्रकार की स्थिति में मृत्यु को प्राप्त करते देखा, अतः इसे मौत के परिकल्पित बहुत-से कालों में से एक संभावित काल भले ही मान लिया जाए, पूरे आत्मविश्वास के साथ हम मौत का ही काल नहीं कह सकते। इससे भी अधिक सत्य यह है कि मौत कब आएगी, इसकी जानकारी जन्मकुण्डली से अभी तक किए गए शोधों के आधार पर मालूम कर पाना असंभव ही है। चाहे जन्मसमय की शुद्धतम जानकारी किसी ज्योतिषी को क्यों न दे दी जाए, मौत के समय की जानकारी दे पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए कठिन होगा; क्योंकि इससे संबंधित कोई सूत्र उनके पास नहीं है। अतः जुड़वाँ में से एक की मौत क्यों हुई और जीवित के साथ ग्रह किस प्रकार काम कर रहे हैं, इन दोनों की तुलना का कोई प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। एक ज्योतिषीय पत्रिका में ऑस्ट्रेलियाई जुड़वों की ऐसी भी कहानी पढ़ने को मिली, जो 65-66 वर्ष की लम्बी उम्र तक जीने के बाद एक ही दिन बीमार पड़े और एक ही दिन कुछ मिनटों के अंतर से मर गए। दोनों की जीवनशैली, चारित्रिक विशेषताएँ, कार्यक्रम- सभी एक ही तरह के थे। इतनी समानता न भी हो, फिर भी एक दिन और एक ही लग्न के जातकों में कुछ समानताएँ तो निश्चित तौर पर होती हैं।


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