मांगलिक दोष विचार एवं परिहार

वॆवाहिक सम्बन्धों में कुण्डली-मिलान एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। धन्यो गृहस्थ आश्रमः विवाह गृहस्थ आश्रम सम्बन्धित प्रथम संस्कार है। अतः विवाह से सम्बन्धित अनेक बिन्दुओं- मेलापक, आयुविचार, कुण्डली में मंगल आदि ग्रहों की स्थिति, विवाह-लग्न आदि का विचार अति महत्त्वपूर्ण विषय है। विवाहयोग्य लड़के-लड़कियों की जन्म-कुण्डलियों में वर्णवष्य, तारा, ग्रहमैत्री, नाड़ी आदि अष्टकूटों का विचार नक्षत्र अनुसार राशि-निर्धारण करते हुए गुणक्यबोधक चक्र से कर लेना चाहिये। सामान्यतया 18 से अधिक गुण मिलान होने पर विवाह उत्तरोत्तर शुभ एवं करणीय होता है। विवाह के समय जन्मपत्रिका अन्य विचार-विमर्श के साथ ही जातक अथवा जातिका कुण्डली में विशेषकर मंगल ग्रह की भावगत पूर्ण स्थिति का ठीक से आकलन ज़रूर कर लेना चाहिये। वैदिक साहित्य में मंगल ग्रह का स्पष्ट उल्लेख निम्नानुसार है



असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रुः सुमंगलः।।


ये चैनम् रुद्रा ऽ अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशो वैषाम् हेड ऽ ईमहे॥


यजुर्वेद, 16.6


अर्थात्, तांबे के समान लाल रंगवाला यह आदित्यमण्डल का ग्रह कभी पृथिवी से दूर होने पर हल्के रंग का भी प्रतीत होता है। यह सुमंगल करनेवाला है। किन्तु कुपित अवस्था में यह संहारक रुद्ररूप होकर अमंगलकारी भी हो जाता है। हम इसके क्रोध का अनेक विधियों या उपायों से निवारण करते हैं।


फलितज्योतिष में मंगल से धैर्य, साहस, संघर्ष, जुझारूपन, कोर्ट-कचहरी, तर्कशास्त्र, प्रसव-सम्बन्धी प्रक्रिया, पित्त-प्रकृति, अग्नि, अनुशासनप्रियता, रक्तविकार, ज़मीन-जायदाद, विचार व कर्म तालमेल का विश्लेषण आदि का विचार किया जाता है। किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में जन्मलग्न या राशि में जो बली हो अथवा दोनों से मंगल ग्रह 1, 4, 7, 8 व 12वें भाव में स्थित हो, तो कुण्डली को मंगली माना जाता है।


मंगलदोष के विषय में हमें यह याद रखना चाहिए कि यह कुण्डली में उल्लिखित भावों में मंगल की उपस्थिति से बनता है। राशियों का विचार इस सन्दर्भ में नहीं किया जाता है। कुण्डली मेलापक में मंगल दोष का भय जातक/जातिका के माता-पिता की चिन्ता का कारण बनता है। दक्षिण भारत में इसे 'कुजदोष' के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषियों की अज्ञानता के कारण कभी-कभी अमंगली जन्म-पत्रिका को भी मंगली बताकर विवाह में रोक लगा दी जाती है। अतः इस प्रकरण पर गहन विवेचन की आवश्यकता है। ज्योतिष-ग्रन्थ मुहूर्तसंग्रहदर्पण में जन्मपत्रिका के मंगलदोष का विवेचन इस प्रकार मिलता है


लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।


कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्ता पत्नीविनाशकृत्॥


जातकपारिजात ( 14.34) में मंगल-दोष का इस प्रकार उल्लेख है 


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