सच्ची भविष्यवाणी

पण्डित जी साल में एक बार ही गाँव आते थे। परन्तु पूरे एक महीने रुककर गाँव के प्रत्येक व्यक्ति के सालभर के काम तय कर जाते थे और अपने लिए भी सालभर के खाने-खर्चे की व्यवस्था कर ले जाते थे। किस व्यक्ति को कौन-सा काम फलेगा और कौन-सा नहीं, किसकी बेटा या बेटी के विवाह का योग इस वर्ष है। या नहीं, किसका मकान बनने का योग है। किसका नहीं, वे यह तक बता देते थे कि फलाँ की बहू लड़ाका आयेगी फलाँ की सीधी। फलाँ की गाय बछड़े जन्म को देगी फलाँ की भैंस पड़िया। पण्डित जी के मुख से निकला एक-एक शब्द ब्रह्माजी का सन्देश होता था, जिसका कोई तोड़ नहीं था। इसलिए गाँव के सारे काम पण्डित जी के निर्देशानुसार ही होते थे। गाँव के छोटे-बड़े सभी लोगों की जन्मपत्री बनाना तथा भाग्य विचारना उनकी जिम्मेदारी थी।



क्वार का शुभ महीना था। आज फिर पूरे एक वर्ष बाद पण्डित जी का गाँव में आगमन होनेवाला था। इसलिए हर घर में उन्हीं के नाम की चर्चा थी। हर व्यक्ति अपने आनेवाले साल के उतार-चढ़ाव को जानने को उत्सुक था। शाम को पाँच बजे पण्डित जी पधारे। हर कोई चाह रहा था कि सबसे पहले पण्डित जी हमारे यहाँ का अन्न-जल ग्रहण करें। चौपाल पर रुककर गुड़-चना खाकर कुछ देर विश्राम कर उन्होंने श्यामलाल के यहाँ ठहरने की इच्छा जतायी। फिर क्या घर में पूड़ी, कचौड़ी, खीर- सभी कुछ बना। पण्डित जी को आदरपूर्वक भोजन कराया गया तथा उनके सोने के लिए नया गलीचा बिछाया गया। घर में सभी उत्साहित थे कि कल सभी का एक साल का भविष्य तय हो जायेगा। सुबह के नाश्ते के बाद पण्डितजी ने कुण्डलियाँ विचारना शुरू कर दिया। लड़कों की पढ़ाई, नौकरी, खेत- खलिहान की हरियाली, तरक्की, खुशहाली- सभी कुछ बताए जा रहे थे। परन्तु मोहिनी जो एक कोने में कान लगाए खड़ी थी, उसके बारे में पण्डित जी ने कुछ नहीं बताया। उससे रहा न गया। कौतूहलवश सामने आकर पूछ ही लिया, पण्डित जी हमारा लगन कब होगा। सब हँस पड़े, वह लजा सी गयी। तब माँ बोली पण्डित जी अब बता भी दो हमारी छुटकी का ब्याह कब होगा। पण्डित जी ने कुछ देर विचार करने के बाद एक लम्बी साँस खीचकर निराशाभरे स्वर में कहा, ‘अनर्थ । सभी चौंक पड़े ऐसा क्या लिखा है कुण्डली में। पण्डित जी ने खुलासा किया कि इस बच्ची के विवाह का योग नहीं है। इसका कभी विवाह न करना। यदि किया तो पति की मृत्यु निश्चित है, क्योंकि इसके जीवन में दाम्पत्य सुख का अभाव है। पूरा घर निराशा में डूब गया। मोहिनी के तो मानो पैरोंतले जमीन ही खिसक गई, उसके मन का सारा कौतूहल एक क्षण में समाप्त हो गया। सभी दुःखी थे, पर भाग्य के आगे सभी नतमस्तक थे।


मोहिनी अपने छः भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। अपने नाम के अनुरूप ही वह अपने सौम्य स्वभाव तथा अपने कार्यों से सभी का मन मोह लेती थी। ऊपरवाले ने उसको सुंदरता देने में जरा भी कोताही नहीं की थी। बड़ी-बड़ी आँखें, घंघराले बाल, लम्बा कद- सब कुछ मोहक ही था। बचपन से ही वह माँ के कामों में हाथ बँटाती तथा पूरे घर को हँसाती रहती थी, इसीलिए वह माँ की सबसे दुलारी बेटी बन गई थी। जब मोहिनी थोड़ा बड़ी हुई, तो उसने अपने भाइयों को पढ़ने जाते देखकर खुद भी पढ़ने की इच्छा जतायी। इस पर माँ ने समझाया कि लड़कियों का पढ़ना जरूरी नहीं है, उन्हें घर के सारे कामों में निपुण होना जरूरी है। उसने ज़िद की कि मैं घर के सारे काम भी सीख लँगी और पढ़ भी लूंगी। लेकिन यह तो धर्मविरुद्ध था, लड़कियों का पुस्तक छूना सरस्वती माँ का अपमान माना जाता था और यह भी कि पढ़ने से लड़कियाँ चरित्रहीन हो जाती हैं, तो माँ कैसे अनुमति देती। माँ के मना करने के बाद भी वह चुपके-चुपके भाई की किताबों को निहारती रहती। भाई जो गुरुजी से पढ़कर आता, वह उससे घर में पढ़ लेती। भाई उससे एक साल ही तो बड़ा था सो दोनों में खुब पटती थी। 


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