स्वस्थ जीवन जीने की कला

आजकल भागदौड़ की ज़िन्दगी में एक ओर जहाँ मनुष्य हमेशा तनावपूर्ण जिन्दगी जी रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रदूषित जीवन जीने के लिए मजबूर दिखाई दे रहा है। जीवन की सभी आवश्यक चीजें प्रदूषित हो रही हैं। प्रदूषित हवा, प्रदूषित जल, प्रदूषित खाद्य पदार्थ, प्रदूषित दवाएँ, प्रदूषित साहित्य, प्रदूषित टी.वी. चैनल, प्रदूषित विचारों की भरमार हो रही है। हमारा शरीर पाँच तत्त्वों से बना है- क्षिति जल पावक गगन समीरा- और यह तत्त्व भी प्रदूषित हो रहे हैं। इनके अतिरिक्त पश्चिमी सभ्यता के भोजनों ने कसर पूरी कर दी। यह भोजनपीजा, बर्गर-ब्रेड, बन्द, चाऊमीन, बिस्कुट, नमकीन, कोल्ड ड्रिक्स, पाश्चराइज्ड दुग्ध, वनस्पति घी, मादक द्रव्य हमारे स्वास्थ्य के दुश्मन हो चुके हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में स्वास्थ्य को बचाए रखना बहुत कठिन प्रतीत हो रहा है।


आज विज्ञान सभी भौतिक क्षेत्रों में गगन चूम रहा है, परन्तु मानव का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। आज 75 प्रतिशत लोग किसी-न-किसी बीमारी से जूझते नज़र आ रहे हैं। अतः स्वस्थ्य रहने के लिये तथा स्वास्थ्य को बचाए रखने के लिये जीवन के कुछ तथ्य उपस्थित कर रहा हूँ



1. प्रातः काल की मधुर बेला में (4 और 5 बजे के बीच) जागें तथा अच्छा दिन गुजारने की कामना करें।


2. शरीर को चेतना में लायें तथा लेटे-लेटे ताड़ासन धीरे-धीरे 5-10 सेकेण्ड करें। फिर शरीर ढीला छोड़ दें। फिर बायीं करवट होकर, दाहिने हाथ का सहारा लेकर उठे।


3. इसके बाद मूत्र विसर्जन करें। तथा ऋतु के अनुसार आरामदायक वस्त्र पहनें।


4. 2-4 गिलास जल मन्द गति से सेवन करें।


5. इसके उपरान्त प्रातः भ्रमण हेतु पार्क में जायें अथवा वन, वाटिका में विचरण करें। अपनी सुविधानुसार आधे से लेकर एक घंटा घूम सकते हैं।


6. इसके बाद मल-विसर्जन के लिये जायें। पाखाने के लिये जोर कभी न लगायें। शौच हमेशा ठंडे पानी से करें।


7. शौच में साफ-सुथरा जल प्रयोग करें। तथा शौच के बाद थोड़ा अरंडी का तेल में कपूर अंगुली में लगाकर मल द्वार के अंदर चारों ओर घुमायें। इसे गणेश क्रिया कहते हैं।


8. इसके बाद जलनेति अथवा रबरनेति करें। फिर नौलि क्रिया करें। इसके बहुत फायदे हैं।


9. धूप में बैठकर पूरे शरीर में तेल मालिश करें। (सर्दियों में सरसों के तेल से गर्मियों में गरी के तेल अथवा तिल के तेल से) 15-30 मिनट धूप में घूम-घूमकर चारों ओर से सूर्य किरणें शरीर पर पड़ने दें।


10.स्नानगृह में जाकर 1-2 मिनट मेहन स्नान ठंडे पानी से करें। पुरुष शिश्न के अग्रभग को हल्का-सा खोलकर जलधारा प्रवाहित करें। स्त्रियाँ योनि के दोनो भगोष्ठों में ठण्ढ़े पानी की धार डालें अथवा साफ़ गीले कपड़े से बार-बार (कपड़ा निचोड़कर) साफ करें। इसके करने से बहुत सारी बीमारियों से दूर रहेंगे।


11.फिर 1-3 मिनट रीढ़ स्नान अवश्य करें। इसके बाद सिर में जल डालते हुए स्नान शुरू करें। कभी भी सिर एवं रीढ़ में अधिक गर्म पानी नहीं डालना चाहिये, नहीं तो नाड़ी-संस्थान क्षतिग्रस्त हो जायेगा। फिर सम्पूर्ण स्नान शरीर को मल-मलकर करें । साबुन का प्रयोग सप्ताह में 2 बार बहुत है। हो सके तो सप्ताह में एक बार पंक स्नान करके धूपस्नान करें। फिर साधारण स्नान से शरीर साफ़ कर लें। इसमें साबुन प्रयोग न करें।


 


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