राणोजी सिन्धिया की छत्री का शिल्पवैभव

मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले की शुजालपुर तहसील मुख्यालय के निकट निर्मित ग्वालियर के सिन्धिया-राजवंश के संस्थापक राणोजी सिन्धिया (1731-1745) की एक ऐसी विशाल छत्री है जिसकी मूर्तिकला व स्थापत्य को 18वीं शती के मालवा तथा राजपुताने की कला में आधार बनाया जा सकता है।


शुजालपुर में पश्चिम की ओर 2 किमी दुर राणोजीगंज क्षेत्र में निर्मित इस छत्री का निर्माण ग्वालियर के संस्थापक राणोजी सिन्धिया की यहाँ हुई मृत्यु की स्मृति में उनके वंशजों ने करवाया था। राणोजी का शासनकाल मालवा में बड़ा प्रभावी रहा। राणोजी महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित कान्हेरखेड़ा के पाटिल जनकोजीराव के पुत्र थे। उस समय महाराष्ट्र पर पेशवा बाजीराव का प्रभाव था तथा पूरे देश में उस समय मराठा संघ की शक्ति का परचम लहरा रहा था। राणोजी सिन्धिया सन् 1726 ई. में मराठों के विजयी अभियान के मुख्य प्रबन्धक के रूप में चर्चित थे। उन्होंने सन् 1731 ई. में मालवा के उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया तथा वहाँ के महाकालेश्वर मन्दिर का जीणोद्धार करवाकर उसे विशाल स्वरूप देने में महती भूमिका निभायी। उन्होंने ग्वालियर शहर का निर्माण करवाया और वहाँ सिन्धिया- राजवंश की स्थापना की। उन्होंने अपने राज्यकाल में उस समय के मालवा प्रदेश को मुगलों के आतंक से मुक्त कराने में अहम् भूमिका निभाई थी, अतः वे हिंदूपति बाजीराव पेशवा के 3 विशिष्ट सेनापतियों में प्रमुख थे। बाजीराव ने उन्हें कई हजार घुड़सवारों का प्रधान बनाकर एक योग्य सेनानायक का दायित्व प्रदान किया था। मालवा की प्रशासनिक व सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा करनेवाले इस सिन्धिया नरेश की मृत्यु 19 जुलाई, सन् 1745 ई. को उक्त स्थल पर हुई थी और विवेच्य छत्री वाले स्थल पर उनका अन्तिम संस्कार हुआ था। मराठा-संघ के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले इस सिन्धिया-शासक की यह छत्री पर्यटकों और मूर्तिकला व स्थापत्य पर शोध करनेवालों के लिये आज भी आकर्षण का केन्द्र है।



शुजालपुर के राणोगंज क्षेत्र में स्थित राणोजी सिन्धिया की यह छत्री भव्य, कलात्मक एवं विशाल है। भूतल से लगभग 20 फीट ऊँची जगती पर निर्मित यह 12 लाल बलुआ पाषाणी छत्री तेरह फीट ऊँचे कलात्मक स्तम्भों पर टिकी है। इन अष्टकोणीय कलात्मक स्तम्भों पर अर्धपुष्पपत्तियों व पूर्णपुष्पों की लहरवल्लरियों तथा उनके शीर्ष आधारों पर कलात्मक कमलाकृति व पुष्पांकन उत्कीर्ण है। स्तम्भों के शीर्ष भागों को आबद्ध करने हेतु पाषाणी कलात्मक मेहराबों का प्रयोग किया गया है। मेहराबों के ऊपर विशाल एवं अष्टकोणीय परन्तु गोलाकार आकृति में गुम्बद निर्मित है। यह शिखर उल्टे कमल पुष्प की पंखुरियों की आकृति से सुशोभित है। शिखर के बाह्य गोलाकार भाग पर पक्की चूना- मिट्टी की सुन्दर मोटी परत अलंकृत कर सजाई गई है जिससे इसका स्वरूप अतिसुन्दर दिखाई देता है। जबकि आंतरिक गोलाकार भाग कलात्मक और पाषाण पर की गई नक्काशी से सुसज्जित है।


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