गणित और कला का प्रथम सेतु गोल्डन रेश्यो

गोल्डन रेश्यो की खोज



गोल्डन रेश्यो से सम्बन्धित सबसे पहली घटना ग्रीस में लगभग 447 ई.पू. में बने ऐथेना के स्मारक/मन्दिर/पार्थेनन से जुड़ी हुई है। इस स्मारक के सम्मुख दृश्य की चौड़ाई एवं ऊँचाई के अनुपात में गोल्डन रेश्यो है। हालांकि इसके वास्तुकार फिडिक्स (490- 430 ई.पू.) ने कहीं इसका लिखित ज़िक्र नहीं किया। बाद में यूक्लिड (325-265 ई.पू.) नाम के यूनानी वैज्ञानिक ने इस प्रसिद्ध मन्दिर/पार्थेनन के सुन्दर स्थापत्य एवं नयनाभिराम शिल्प से आकर्षित होकर उसकी सम्पूर्ण आकृति तथा अंगोपांगों का शोधपूर्ण तथा विस्तृत अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इसके सम्मुख दृश्य के निर्माण की चौड़ाई व ऊँचाई के अनुपात में तीव्र आकर्षण है। उन्होंने इस अनुपात के हर पक्ष पर बहुत मनन किया।


पार्थेनन/मन्दिर की चौड़ाई एवम् ऊँचाई का अनुपात लगभग1.618... था। अर्थात् यदि चौड़ाई एक इकाई के बराबर थी तो ऊँचाई 0.618 इकाई थी। गणितीय सूत्र में इस बात को 1:0.618 = 1/(0.618)= 1.618... कहा जायेगा। यूक्लिड को पार्थेनन के कुछ अन्य अंगों की विमाओं में भी यही अनुपात मिला, उन्होंने इस अनुपात का जिक्र ‘एक्सट्रीम एण्ड मीन' नाम से किया है। जब गणितीय दृष्टि से इस संख्या का विश्लेषण हुआ, तब यह ऐसी संख्या के रूप में सामने आयी जो अपने आपमें बहुत ही विशिष्ट, अनूठी तथा पहेलीनुमा है। इस संख्या को 18वीं शती के आस-पास ‘गोल्डन रेश्यो' नाम मिला।


मानव मर्तिकला और गोल्डन रेश्यो



जिराफ की लम्बी गर्दन या हाथी की लम्बी नाक/सूड़ या मगरमच्छ के छोटे-छोटे पैर देखकर कुछ अटपटा या गलत होने का आभास होता है। ऐसी ही अनुभूति बारहसिंगा के बड़े-बड़े सींग देखकर होती है जो उसके अन्य अंगों की तुलना में बहुत बड़े लगते हैं। जबकि हिरन, घोड़े या चीते का कोई अंग इस तरह बेढब नहीं लगता। कुछ मानव-प्रतिमाओं को देखने पर ऐसा लगता है कि वह बोलने लगेंगी। ऐसी मूर्तियों के विभिन्न हिस्से, जैसे- सिर-धड़, हाथ-पैर, गर्दन, चेहरा, नाक, कान, आदि मनोरम तथा सजीव अनुपात में बने होते हैं। शरीरविज्ञानियो एवं कलाविदों ने पाया कि इन मूर्तियों के महत्त्वपूर्ण अंगों की माप एक खास अनुपात में होती है। केवल आँखों से देखकर अच्छा लगनेवाला अंगों का यह अनुपात, विशुद्ध गणितीय ‘गोल्डन रेश्यो' से काफी मिलता-जुलता है। तलवे से घुटने, तलवे से नाभि, नाभि से सिर के बीच की दूरियों तथा चेहरे, पंजे और उंगलियों, कान, दाँत आदि अंगों में गोल्डन रेश्यो के स्पष्ट प्रमाण पाए गए हैं। लियोनार्डो द विंसी (1452-1519) की महान् एवं विश्वप्रसिद्ध कृति 'मोनालिसा' में भी इस अनुपात का प्रयोग हुआ है। दूसरे शब्दों में मूर्ति को इस खास अनुपात का पालन करते हुए बनाया जाये तो वह सुन्दर तथा सजीव बन जाती है। ‘गोल्डन रेश्यो' की परिपाटी के अनुसार सुगढ़ एवं सुगठित मानव शरीर में निम्न बातें होनी चाहिए


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