मूर्तिनिर्माण की नयी सामग्री आर.सी.सी.

मूर्तिकला सभी कलाओं में प्रमुख स्थान रखती है। यह विभिन्न मनोभावों को अभिव्यक्त करने का चिरस्थायी एवं प्रभावी साधन रही है। साहित्य, संगीत एवं चित्र की तरह मूर्ति का प्रभाव भी प्रत्यक्ष तथा दीर्घकालिक होता है। पशु-पक्षी, देवी-देवता, महापुरुष तथा पूर्वजों से हमारा विशेष जुड़ाव-लगाव होता है। शायद इसीलिए दुनियाभर में इनकी मूर्तियाँ बड़ी संख्या में बनायी गयीं, ताकि इनको देखकर उनके प्रत्यक्ष होने का भान हो सके। कहा जाता है कि एक चित्र में 1,000 शब्दों को अभिव्यक्त करने की क्षमता होती है। इसी तरह से, यह भी कहा जा सकता है कि किसी मूर्ति में उसके चित्र से कई गुना अधिक व्यक्त करने की क्षमता होती है। सजीव एवं भावयुक्त मूर्ति बनाना एक कठिन विषय है। लाखों-करोड़ों में कोई एक ही सजीव-सार्थक मूर्ति बना सकता है। किसी चीज की सजीव मूर्ति बनाने का प्रयास कर इसकी गूढ़ता को व्यक्ति खुद समझ सकता है। बिना अच्छी कल्पना, कुशल कारीगरी  और अटूट श्रम-लगन-संयम के अच्छी मूर्ति बनाना सम्भव नहीं है। कुछ हद तक यह महंगा कार्य भी है, इसलिये मूर्तिकला में शिल्पकार की योग्यता के साथ-साथ मूर्ति बनाने के लिए चयनित की जानेवाली सामग्री की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।



पकी मिट्टी, चूना-मसाला, नरम पत्थर, कठोर पत्थर, धातु, लकड़ी - जैसे पदार्थों का प्रयोग मूर्ति बनाने के लिए काफी पहले से ही किया जा रहा है। वर्तमान में कुछ नयी महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ और इस सूची में जुड़ गई हैं, जैसे- मोम, प्लास्टर ऑफ पेरिस, सीमेंट-मसाला, आर.सी.सी. और प्लास्टिक इनमें भी कई गुणों के कारण आर.सी.सी. का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। जिस प्रकार पत्थर की मूर्ति को छेनी से टकाई-गढ़ाई करके, धातु, मोम, प्लास्टिक तथा प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति को साँचे में ढलाई करके; लकड़ी की मूर्ति को छिलाई-कटाई-घिसाई करके; गारे एवं चूना-मसाले की मूर्ति को हाथ से दबाकर-उभारकर तथा वाञ्छित स्थानों पर सामग्री से मोटाई घटा-बढ़ाकर बनाया जाता है, उस क्रम में आर.सी.सी. की मूर्ति को इसके पहले से तैयार आयात प्रतिमा पर मंदिर आहे कच्चे/अस्थायी प्रतिरूप पर सीमेंट-मसाले को चढ़ाकर/लेपकर/छापकर बनाया जाता है। आर.सी.सी. से स्थायी, मनोवाञ्छित और छोटे-से लेकर विशाल आकार की मूर्तियाँ एवं अन्य कलात्मक शिल्प अपेक्षाकृत आसानी से बनाए जा सकते हैं। आर.सी.सी. का प्रयोग कर शिल्प या मूर्ति को अंदर से सरलतापूर्वक खोखला बनाया जा सकता है, जिससे ये सस्ती एवं कम संसाधन में ही तैयार हो जाती है। इस पर कई प्रकार के रंग किये जा सकते हैं। आर.सी.सी. का पूरा नाम रेनफोरस्ड सीमेंट कंक्रीट' होता है। जब सीमेंट-मसाले की मजबूती बढ़ाने के लिए उसमें कोई सरिया या तार या रेशे या इनसे बना जाल डाल दिया जाता है, तब उसे आर.सी.सी. कहते हैं। दूसरे शब्दों में सीमेंट, पत्थर की गिट्टी, बालू/रेत एवं पानी के मिश्रण से तैयार मसाले तथा सरिया या तार के जाल के मेल से आर.सी.सी. बनती है। रेनफोर्सिंग सामग्री (जैसे- सरिया, तार, जाल) किसी नरम एवं अच्छी तनन क्षमतावाली धातु, प्लास्टिक, प्राकृतिक या कृत्रिम रेशों की हो सकती है।


आर.सी.सी. की शिल्पकारी में भी ‘शिल्प उद्देश्य एवं प्रेरकता (थीम क्रियेशन), द्रव्यमान केंद्र एवं गुरुत्व-रेखा के बिन्दुपथ का आकलन, ‘भूकम्पीय, वायु एवं जलदाब की परिस्थितिनुसार गणना तथा इनके प्रत्युत्तर में स्थायीत्व योजना का निर्माण', नाजुक हिस्सों का पश्च या पार्श्व अवलम्बन, अंगीय समानुपातन, भावप्रवणता-सहजतासजीवता, अलंकरण एव सतही चमक, लयबद्धता और परिदृश्य-सामञ्जस्य पूरकता'-जैसे पहलुओं पर उसी तरह विचार किया जाता है, जिस प्रकार पत्थर एवं धातु के शिल्प-कार्यों में किया जाता है। शिल्पकार्य के आदर्श परिणाम हेतु सामग्री के चयन के सन्दर्भ में आर.सी.सी. की सीमाओं को जानना आवश्यक है। जिसका वर्णन लाभ, हानि एवं सावधानियाँ शीर्षक के अंतर्गत आगे किया जा रहा है।


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