उमामहेश्वर-प्रतिमा के विविध आयाम

भारतीय धर्माध्यात्म में भगवान् शिव का अत्यधिक महत्त्व है। शिव के विविध रूपों से भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्ष अनुप्राणित हैं। शिव का आरम्भिक रूप मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा में अंकित है, जिसमें विविध पशुओं के सान्निध्य में श्रृंगधारी पशुपति शिव शिल्पित किये गये हैं। शिव का वैदिक वाङ्मय में रुद्र के रूप में वर्णन किया गया है। भारतीय विद्या के विभिन्न विभागों के जनक अथवा प्रवर्तक के रूप में भी शिव का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में शिव के विभिन्न रूप प्राप्त होते हैं, जिनमें उमामहेश्वर का विग्रह सर्वाधिक ललित और अभिराम है। उमामहेश्वर-प्रतिमा का तात्पर्य शिव-पार्वती के सम्पृक्त एवं ललित रूप को कला के पटल पर अवतरित करने से है। मत्स्यपुराण, विष्णुधर्मोत्तरपुराण और बृहत्संहिता में उमामहेश्वर-प्रतिमा का उल्लेख किया गया है। विष्णुधर्मोत्तरपुराण में उमामहेश्वर-प्रतिमा का लक्षण इस प्रकार वर्णित है


वामार्धे पार्वती कार्या शिवः कार्यश्चतुर्भुजः। अक्षमालां त्रिशूलं च तस्य दक्षिणहस्तयोः॥


दर्पणेन्दीवरौ कार्यो वामयोर्यदुनन्दन। एकवकत्रो भवेच्छम्भुर्वामा च दयिता तनुः॥


द्विनेत्रश्च महाभाग सर्वाभरणभूषितः । अभेदभिन्ना प्रतिः पुरुषेण महाभुज॥


गौरीशर्वेति विख्याता सर्वलोकनमस्ता। कारणं कथितं पूर्वं शूलादीनां मया तव॥


ईशानरूपं कथितं तवेदं रूपं तथाग्नेः शृणु धर्मनित्यम्। वेदा यदर्थं जगति प्रवृत्ता मुखं च यत्सर्वसुराऽसुराणाम्॥


-विष्णुधर्मोत्तरपुराण, 3.55.2-6



भारतीय मनीषा के मूर्तविग्रह डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय कला' (पृ. 316) में उमामहेश्वर की कुषाणकालीन एक पाषाण-प्रतिमा का उल्लेख किया है, जिसमें भगवान् शिव भगवती पार्वती के वाम भाग में खड़े हैं। ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी के रूप में प्रदर्शित शिव का वाम हस्त पार्वती के स्कन्धदेश से होते उन्हें अपने परिष्वंग में लिये हुए है। दक्षिण हस्त वरदमुद्रित है।


भारतीय मूर्ति-वैभव उमामहेश्वर की अद्वितीय प्रतिमाओं से समृद्ध है। उमामहेश्वर की प्रतिमाएँ अपनी अद्वितीय सुषमा से मन्दिरों एवं संग्रहालयों को सुशोभित कर रही हैं। उमामहेश्वर की अनेक प्रतिमाएँ ब्रिटिश म्यूजियम में भी हैं। उमामहेश्वर की प्रतिमाओं का निर्माण कई रूपों में हुआ है। कतिपय प्रतिमाएँ स्थानक मुद्रा में हैं और कतिपय बैठी हुई स्थिति में। मथुरा संग्रहालय में रखी गयी उमामहेश्वर-प्रतिमा (30 : 2084) दोनों ओर उत्कीर्ण है। इस प्रतिमा के निर्माण में लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है। यहाँ भी शिव ऊध्वरेत रूप में हैं। अलंकरण और भाव की दृष्टि से उमामहेश्वर की प्रतिमा प्रशंसनीय है।


आगे और----