अनुपम उपहार

विपिन और विवेक बहुत अच्छे पिन और विवेक बहुत अच्छे दोस्त थे। लेकिन दोनों के परिवारों के रहन-सहन में जमीनआसमान का अंतर था। विपिन के पिताजी बहुत बड़े व्यापारी थे। वहीं विवेक के पिताजी की छोटी-सी परचून की दूकान थी। लेकिन विवेक के पिताजी ने अपनी गरीबी का प्रभाव कभी विवेक की पढ़ाई पर नहीं पड़ने दिया। उनका सोचना था कि उन्हें चाहे कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े, लेकिन वह विवेक की पढ़ाई-लिखाई में कोई भी बाधा उत्पन्न नहीं होने देंगे। विवेक भी अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने में पूरी तरह से जुटा था। वह अपना अधिकांश समय पढ़ाई में ही व्यतीत करता था। यही कारण था कि वह हर वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम आता था।


उस दिन रोज की तरह ही विपिन और विवेक मध्यावकाश में खाना खा रहे थे। अचानक विपिन ने विवेक से कहा, 'अगले सप्ताह मेरा जन्मदिन है। मैंने इस बार पापा से कह दिया है कि मैं अपना जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाऊँगा। अपने सारे दोस्तों को भी अपने जन्मदिन पर बुलाऊँगा। मेरी बात पापा जी ने मान ली है। उन्होंने कल एक सुन्दर से केक का ऑर्डर भी दे दिया है।'



कुछ पल रुककर विपिन ने फिर कहा, ‘तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो विवेक! इसलिए तुम उस दिन जरूर आना।'


विपिन की बात सुनकर विवेक खुश होते हुए बोला, 'अरे वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है। मुझे जन्मदिन की पार्टी बहुत अच्छी लगती है। मैं तुम्हारे जन्मदिन पर अवश्य आऊँगा।'


विवेक ने जन्मदिन की पार्टी में जाने की हामी तो भर दी थी, लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसके लिए कौनसा उपहार खरीदे। विपिन तो अमीर मातापिता का बेटा है, इसलिए उसके लिए छोटे और सस्ते उपहार का तो कोई मूल्य ही नहीं होगा। और महंगे गिफ्ट वह खरीद नहीं सकता, क्योंकि अनावश्यक रूप से वह पापा पर कोई बोझ नहीं डालना चाहता। इसी चिंता में सोचते-सोचते उसने कई दिन निकाल दिए। लेकिन हल कोई नहीं निकला।


रविवार की छुट्टी होने के कारण आज विवेक घर पर ही था। दोपहर को मम्मी ने उससे कहा, 'विवेक, यह लंच बॉक्स ले जाकर पापा जी को दूकान पर दे आओ। और जब तक पापा खाना न खा लें, तुम वहीं दुकान पर ही रहना। पापा जी को खाना खिलाकर लंच बॉक्स वापस ले आना।'


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