बदलाव जरूरी है।

 माँ ने राकेश को समझाते हुए कहा कि बेटा अब तुम बड़े हो गये हो। ऊपरवाले की कृपा और तेरी लगन से नौकरी भी अच्छी मिल गई है। अब तुम्हारे रिश्ते भी आने लगे हैं। मैं भी चाहती हूँ कि तुम्हारा विवाह करके मैं अपनी इस ज़िम्मेदारी को भी पूरा करूं। मेरी भी उम्र बढ़ रही है। मुझसे अब ज्यादा काम नहीं होता। बहू आ जाए तो घर सम्हाले। राकेश कुछ कहने ही वाला था कि माँ बीच में ही बोल पड़ी- देखो बेटा मैं कम पढ़ी-लिखी होने के बाद भी खुले विचारों की हैं। यदि तुम्हें कोई लड़की पसन्द हो तो मुझे बता सकते हो। मैं अपनी पसन्द तुम पर नहीं थोपूँगी। दान- दहेज की भी मेरी कोई मांग नहीं। ईश्वर का दिया सब कुछ है मेरे पास और अब तो तू भी कमाने लगा है। तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है। बस मेरी एक ही शर्त है कि लड़की अपनी जाति-बिरादरी की ही हो। दूसरी जाति या दूसरे धर्म की लड़की मैं नहीं स्वीकार कर पाऊँगी।



राकेश जो अभी तक माँ वचन सुन- सुनकर गद्गद हुआ जा रहा था, अचानक सन्न रह गया। उसे माँ की ऐसी शर्त का जरा भी अंदाजा नहीं था। माँ की कोई बात उसने आज तक नहीं काटी थी। फिर भी हिम्मत जुटाकर कहा- माँ अब कहाँ कोई जाति-बिरादरी देखता है। बस लड़की पढ़ी-लिखी तथा । काम में निपुण होनी चाहिए। माँ ने उसे रोकते हुए कहा, कोई नहीं देखता होगा पर मैं देखती हूं। तुम चाहे जैसी लड़की पसन्द करो, हमें मंजूर होगी, लेकिन अपनी जाति से बाहर की लड़की की मुझसे बात भी न करना। माँ का निर्णय सुन राकेश बुरी तरह तड़प उठा। वह खुद से ही प्रश्न करने लगा। अब क्या कहूँगा सौम्या से। आज ही माँ से मिलाने का वादा करके आया था। कितना खुश थी वह। अरे वह तो तैयार हो रही होगी । मैं यह सच उसे कैसे बताऊँ कि माँ नीची जाति की लड़की को अपनी बहू नहीं बना सकतीं। वह तो मुझसे ज्यादा मेरे घर के आचार-विचार से प्रभावित थी। वह तो इस निर्णय से पूरी तरह टूट जायेगी। मैं भी उसके बिना कैसे रह पाऊँगा। राकेश इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था कि फोन की घंटी बजी। उसका दिल धक से हो गया। उफ़! अब क्या करूँ, सौम्या को क्या जवाब दें? किसी तरह खुद को सम्हालते फोन उठाया और बुझी हुई आवाज में कहा सौम्या मैं आज नहीं मिल सकेंगा (कुछ देर रुककर)... आज क्या अब कभी नहीं मिल सकेंगा। सौम्या के पैरों तले मानों ज़मीन खिसक गयी। वह रो पड़ी। क्या हुआ राकेश? क्या मुझसे कोई गलती हो गई, आखिर अचानक तुमने अपना इरादा क्यों बदल दिया? नहीं सौम्या, मैं अपना इरादा कभी नहीं बदलता, पर माँ की शर्त के आगे मजबूर हो गया हूँ।


माँ अपनी बिरादरी से अलग मेरा विवाह नहीं करना चाहतीं। मैं उनका दिल नहीं दुखा सकता। तुम तो जानती हो बाबूजी के जाने के बाद कितनी मुश्किलों से माँ ने मुझे इस काबिल बनाया कि मैं उनके लिए कुछ कर सकें। उन्होंने मेरी हर छोटी-बड़ी मर्जी का ध्यान रखा। अब मैं अपनी मर्जी उन पर कैसे थोपूँ? भरभराए गले से इतना ही कह सका- प्लीज़ सौम्या मुझे माफ़ कर दो। फोन हाथ से छूट गया और वह आँख बन्द करके वहीं जमीन पर धम से बैठ गया। सौम्या के साथ बिताया समय और ढेरों वादे उसे बेमानी से लगने लगे। वह अपनी ही नज़रों में एक गुनहगार हो गया। अपने बेटे का त्याग सुन पीछे खड़ी माँ


अपने बेटे का त्याग सुन पीछे खड़ी माँ के आँसू छलक पड़े। प्यार से बेटे को गले लगा लिया और सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- अच्छा तो तू सौम्या से प्यार करता है। पगले क्या मैं तेरे साथ अन्याय करूंगी? तू मेरे लिए अपना प्यार छोड़ सकता है तो क्या मैं अपनी शर्त नहीं छोड़ सकती। जा सौम्या से कह कल माँ शगुन लेकर आ रही हैं। दोनों घरों में शहनाई बज उठी।


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