हिंदू-धर्मशास्त्रों का पहला प्रकाशक श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय

सनातन हिंदू-धर्म से सम्बन्धित साहित्य के प्रकाशकों की चर्चा होते ही सर्वप्रथम गीताप्रेस, गोरखपुर का नाम कौंधता है। गीताप्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी। उससे 55 वर्ष पूर्व सन् 1871 में बम्बई में ‘श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय की स्थापना हुई थी। यह वह समय था जब यूरोपीय विद्वानों और अन्य लोगों के बीच प्राचीन और मध्ययुगीन ग्रंथों के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुकता थी। उस दौरान उभरनेवाले अग्रणी प्रकाशन-घरों में से एक श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय था। इस संस्थान ने हिंदू-धर्मशास्त्रों, कर्मकाण्डों, ज्योतिष, आयुर्वेद, आदि से सम्बन्धित छोटे-बड़े 2,800 से अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ प्रकाशित किए हैं, जो गीताप्रेस से 1,000 अधिक हैं। इनमें से अनेक ग्रंथों को कई बार पुनर्मुद्रित किया गया है।



मुम्बई के 91/109, खेतवाड़ी 7वीं गली, खम्बाटा लेन (सम्प्रति ‘खेमराज श्रीकृष्णदास मार्ग' ) पर स्थित ‘श्रीवेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय' (खेमराज श्रीकृष्णदास) चुरू, राजस्थान के दो मारवाड़ी | भाइयों- सेठ गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास बजाज और सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास बजाज द्वारा स्थापित किया गया था, जो 1868 में बम्बई आए थे। प्रारम्भ में ये भाई घूम-घूमकर अन्य प्रकाशकों की पुस्तकें बेचते थे। 1871 में उन्होंने बम्बई के मोती बाज़ार में एक छोटे प्रेस की स्थापना की। 1880 में वे खेतवाड़ी चले गए और औपचारिक रूप से ‘श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय की स्थापना की। 1893 में भाइयों में बँटवारा हो गया और यह फर्म ‘खेमराज श्रीकृष्णदास' तथा ‘गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास' में विभाजित हो गयी। सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास बजाज के पास ‘श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय' आया और सेठ गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास बजाज के पास ‘लक्ष्मीवेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय' ।। 


इस प्रकाशन-समूह ने विशाल परिमाण में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का संग्रह करके कई शास्त्रीय हिंदी और संस्कृत-ग्रंथों को प्रकाशित करके अपार ख्याति अर्जित की। इनमें विश्व की सबसे छोटी गीता समेत उन्होंने कई दशकों तक साप्ताहिक वेंकटेश्वर समाचार भी प्रकाशित किया। बहुत कम लोग जानते हैं कि सन् 1926-1927 के दौरान गीताप्रेस के मुखपत्र ‘कल्याण' के भी प्रारम्भिक अंक इसी प्रेस में मुद्रित होते थे।


श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय ने हिंदू-धर्म से सम्बन्धित 2,800 से अधिक ग्रंथ प्रकाशित करके बीसवीं शती के प्रारम्भ में, जब गीताप्रेस का जन्म भी नहीं हुआ था, हिंदू-धर्म, हिंदू-संस्कृति एवं हिंदू-धर्मशास्त्रों की अमूल्य सेवा की। इस प्रकार इस संस्थान का योगदान गीताप्रेस से कम नहीं है। हिंदू-धर्म के सभी अंगों पर यहाँ से ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं।


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