जब खाक में मिला दिए गए सिकन्दरिया और नालन्दा के पुस्तकालय

सातवीं  शती में अरबी मुसलमान मतांधता में अंधे होकर हाथ में तलवार लिये और सिर पर कफ़न बाँधे अपने दीन के प्रसार के लिए निकल पड़े। आसपास के देशों के निवासियों को बलात् मुसलमान बनाने लगे। जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने से इंकार किया, उन्हें तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया। उनमें बहुत थोड़े ही व्यक्ति अपनी जान बचाकर भाग सके। भारत में बसनेवाले पारसी, ईरान से भागे हुए ऐसे ही लोगों के वंशज हैं। इस प्रकार अरबों ने एशिया, अफ्रीका और यूरोप में मार-काट की धूम मचा दी। न मालूम कितने बच्चे अनाथ हो गए, कितनी स्त्रियों की इज्जत लुटी और न जाने कितने स्त्री-पुरुष-बच्चे दास बनाकर भेड़-बकरियों की भाँति बाजारों में कौड़ियों के मोल बिके।


इतिहास से यह जानकारी मिलती है कि मुस्लिम-आक्रान्ता पुस्तकालयों तथा ज्ञानवर्धक पुस्तकों से घृणा करते थे। इसलिए उन्होंने दुनिया के बड़े-बड़े पुस्तकालय जलाकर राख कर दिये, जिसमें अनेक विषयों की पुस्तकें संरक्षित थीं। उनका उद्देश्य था कि मुहम्मद ने सीधे अल्लाह से हासिलकर जो कुछ ज्ञान दिया, उसके अलावा किसी ज्ञान का अस्तित्व नहीं रहना चाहिये। इसलिए मुस्लिम-आक्रान्ताओं ने उन विद्वानों को मार डाला, जिनके पास ज्ञान का भण्डार था और जो इस मुस्लिम-अहंकार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि धरती पर कुरआन के पृष्ठों के सिवा कहीं और ज्ञान है।



प्राचीन काल से विभिन्न देशों में नष्ट किए ग्रन्थ-भण्डारों का विस्तृत विवरण रूसी-मूल के ऑस्ट्रेलियाई लेखक एवं शोधकर्ता एण्ड्रिउ टॉमस (1906-2001) ने अपनी विख्यात पुस्तक ‘वी आर नॉट द फ़र्स्ट' में दिया है। इस ग्रन्थ में लेखक ने स्पष्ट किया है। कि जिस प्रकार की शास्त्रीय प्रगति पर वर्तमान पीढ़ी को गर्व है, वैसी ही शास्त्रीय प्रगति या उससे भी अधिक प्रगति के युग अतीत में भी बीत चुके हैं।


अरबों ने मिस्र पर आक्रमण करके मिस्त्रियों को परास्त कर दिया। अरब-सेना सिकन्दरिया के पुस्तकालय में आग लगाने बढ़ी। सिकन्दरिया का पुस्तकालय मिस्र में सबसे बड़ा था। यह अनुमान लगाया जाता है। कि एक समय में उस पुस्तकालय में असीरिया, यूनान, फारस, भारत और कई अन्य देशों से लगभग 5 लाख ग्रंथ एकत्र किए गए थे। अनुसन्धान, लेखन, व्याख्यान और अनुवाद करने और ग्रंथों की प्रतिलिपि बनाने के लिए पुस्तकालय में शताधिक विद्वान् नियुक्त किए गए थे। 


सिकन्दरिया के पुस्तकालय के विद्वान्, अरब-सेनानायक के पास पहुँचे और हाथ जोड़कर बोले- ‘महाराज, पुस्तकालय की  रक्षा हो। इसमें सहस्रों पुराने अमूल्य ग्रंथ हैं। उनके नष्ट होने से हमारे पूर्वजों का युगों का एकत्र किया हुआ ज्ञान और अनुभव लोप हो जायेगा। यह जलाया न जाये। आप इसके बदले में जितना धन चाहें, हमसे ले लें।' सेनानायक कुछ समझदार था। उसने खलीफा से इस विषय में आज्ञा मांगी। उसने उत्तर दिया, “तुम कहना क्या चाहते हो? क्या इस पुस्तकालय की पुस्तकों में कुरआन पाक से अधिक कुछ अधिक और विशेष है? यदि तुम हाँ करते हो, तो कुफ्र के अपराध में दण्ड के भागी होते हो, और यदि उनमें कुछ विशेषता नहीं है, तो फिर उनके रहने का ही क्या प्रयोजन है? उन्हें छोड़ दोगे तो कुफ्र में ही तो वृद्धि होगी?' और वह विशाल पुस्तकालय जलाकर राख का ढेर कर दिया गया।


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