‘कल्याण' और उसके विशेषांक

सनातन हिंदू-धर्म एवं संस्कृति को पूरे विश्व में प्रचारितप्रसारित करने में गीताप्रेस की अग्रणी भूमिका है। जो कार्य बड़े-बड़े मठ-मन्दिर, बड़े-बड़े धार्मिक-सामाजिक संगठन, बड़े-बड़े साधु-सन्त, बड़े-बड़े धर्माचार्य मिलकर भी नहीं कर पा रहे हैं, वह कार्य अकेले गीताप्रेस विगत 95 वर्षों से कर रही है। गीताप्रेस का मुखपत्र 'कल्याण' है जो गोरखपुर से ही प्रकाशित होता है और देश-विदेश में अपने सवा दो लाख से अधिक ग्राहकों के पास विगत 91 वर्षों से पहुँच रहा है। इतनी लम्बी अवधि शायद ही कोई पत्रिका नियमित प्रकाशित हो रही हो। गीताप्रेस के संस्थापक तो जयदयालजी गोयन्दका (1885-1965) थे, लेकिन उनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं; ‘कल्याण' के संपादक हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ही गीताप्रेस के संस्थापक माने जाते हैं।


'कल्याण' के संस्थापक और आदि संपादक श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार ने 1926 में बम्बई से ‘कल्याण' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसके प्रवेशांक के मुखपृष्ठ पर 'वन्दौ चरन सरोज तुम्हारे पद छपा था। सम्पादकीय पृष्ठ पर ‘कल्याण' का उद्देश्य लिखित था- ‘कल्याण की आवश्यकता सब को है। जगत् में ऐसा कौन मनुष्य है जो अपना कल्याण नहीं चाहता। उसी आवश्यकता का अनुभव कर आज यह ‘कल्याण' भी प्रकट हो रहा है।



अगले वर्ष (1927) इसका पहला विशेषांक ‘भगवन्नामांक' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। पोद्दार जी ने प्रत्येक वर्ष जनवरी मास में ‘कल्याण' का विशेषांक प्रकाशित करने की परम्परा रखी, जिसका आज तक पालन हो रहा है। प्रत्येक वर्ष अलग-अलग विषयों पर प्रकाशित, विश्वकोशीय महत्त्व के 90 विशेषांकों ने ‘इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका' को बहुत पीछे छोड़ दिया है। मात्र 25 वर्षों में ही ‘कल्याण' ने वह प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी कि पं. गोविन्द वल्लभ पंत जी ने श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार से 'भारत रत्न' की पेशकश की थी, पर पोद्दार जी ने अत्यन्त विनम्रता से उसे अस्वीकार कर दिया था। इतना बड़ा त्याग कोई विरला ही कर सकता है।


बीसवीं शताब्दी का शायद ही ऐसा कोई बड़ा लेखक हो, जो 'कल्याण' में न छपा हो। सर्वश्री महात्मा गाँधी, पं. मदनमोहन मालवीय, डॉ. सम्पूर्णानन्द, पं. सूर्यनारायण व्यास, स्वामी करपात्रीजी महाराज, सभी पीठों के पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य, जगद्गुरु रामानन्दाचार्य, जगदुरु माधवाचार्य, जगद्गुरु रामानुजाचार्य, जगदुरु वल्लभाचार्य, श्रीमाँ, माधवराव सदाशिवराव गोळवळकर, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, बी.आर. रामचन्द्र दीक्षितार, डॉ. कैलासनाथ काटजू, माधव श्रीहरि अणे, पं. श्रीपाद दामोदर सातवळेकर, पं. गोपीनाथ कविराज, अम्बिका प्रसाद वाजपेयी, मोरारजीभाई देसाई, श्रीप्रकाश, पं. गोविन्द वल्लभ पंत, डॉ. सर्वपल्ली राधाष्णन, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, चिंतामणि विनायक वैद्य, महन्त दिग्विजयनाथ, शिवकुमार गोयल, रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर, शास्त्रार्थमहारथी पं. माधवाचार्य शास्त्री, पं. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, महन्त अवेद्यनाथ, पं. किशोरीदास वाजपेयी, प्रो. रामदास गौड़, बाबू गुलाबराय, जुगल किशोर बिड़ला, राजीवलोचन अग्निहोत्री, आचार्य रामनाथ सुमन, आचार्य बलदेव उपाध्याय, पं. भगवद्दत्त, लक्ष्मीनारायण गर्दै, सुदर्शन सिंह 'चक्र', अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध', पं. रामगोविन्द त्रिवेदी-जैसे बड़े-बड़े लेखक, राजनीतिज्ञ, साहित्यकार, इतिहासकार और पत्रकार ‘कल्याण' में प्रकाशित होकर गौरवान्वित हुए हैं। पोद्दार जी ने अनेक विरक्त साधु-सन्तों, महात्माओं से ‘कल्याण के लिए लिखवाया, अनेक लोगों को सम्पादन-कला सिखाई और बड़े-बड़े लेखक निर्माण करके हिंदी-साहित्य की उल्लेखनीय सेवा की। अनेक अहिंदी-भाषी लेखकों से उन्होंने उनकी भाषा में लेख लेकर उनके हिंदी-अनुवाद ‘कल्याण' में प्रकाशित किये। महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज जी से प्रतिदिन निबन्ध लेने के लिए पोद्दार जी ने उनके यहाँ (काशी में) एक बंगाली सज्जन को लगा रखा था। महामना मालवीय जी के पास बैठकर स्वयं पोद्दारजी उनसे प्रवचन सुनकर लेखबद्ध करते थे। ‘कल्याण' ने सदैव मध्यम-मार्ग का अनुसरण किया। उसने किसी सम्प्रदाय विशेष की आलोचना से अपने को सदैव दूर रखा। ईसाई, पारसी, मुसलमान- सभी मजहब के लेखक बिना किसी भेदभाव के ‘कल्याण' में प्रकाशित हुए।


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