इस्लाम और योग

आध्यात्मिक साधना के दृष्टिकोण से ‘नमाज़' से मेरा लगाव बचपन से ही रहा है। योग का तो मैं छोटा-सा विद्यार्थी हूँ, इसलिए मैं खासकर नमाज़ के उन मुद्दों की चर्चा करूंगा जो योग से मिलते-जुलते हैं।



योग की मेरी शुरूआत


योग की शुरूआत मैंने कैसे की, यह एक दिलचस्प घटना है। तब मैं महज़ 13 वर्ष का लड़का था। मैं एक योगी को बड़ी अजीब-अजीब यौगिक क्रियाएँ, आसन आदि, करते देखता था। लोगों की भीड़ उसे अचम्भे से देखती रहती। योगी के प्रति सबको बहुत आदर और आकर्षण था। मेरे बालक मन में बड़ा शौक हुआ और मैं भी घर आकर उन आसनों को आज़माने लगा। जोश था कि एक इंसान ऐसा कर सकता है। तो मैं क्यों नहीं। मेरे दिल में बड़ी ख्वाहिश थी और पक्की लगन। योगासन की कोई किताब मिलते ही मैं कोशिश शुरू कर देता था। एक किताब में लिखा था कि योग सभी धर्मों से परे है। मुझे अचम्भा लगा और तब मैंने ज्यादा तत्परता से भिड़कर कई आसनों को एकदम कर लिया। और, अब तो मैंने अपने परिवारवालों को भी आसन सिखा दिए हैं।


नमाज क्या है?


अरबी जुबान में नमाज़ को ‘सलात' कहते हैं। सलात बना है ‘सिला' से। सिला का मतलब होता है 'मिलना'। नमाज़, इसलिए, अल्लाह से मिलने का एक ज़रिया है। नमाज़ के समय बंदे (साधक) की अर्जी और खुदा की मर्जी का मेल होता है। मालिक की दुआ से मुहम्मद साहब नेनमाज़ के कायदे की इजाद की। दिन में पाँच बार नमाज़ करना होता है, यथा- सूर्योदय से पहले, मध्याह्न में, अपराह्न में, सूर्यास्त के तुरंत बाद और रात में सोने से पहले।


नमाज में 'रक्अत' शामिल है। हर रक्अत सात आसनों का एक श्रेणी-क्रम है। जैसे, सूरज निकलने से पहले दो रक्अतें या 14 आसन करना ज़रूरी होता । है। इस तरह हर मुसलमान को, लाजिमी तौर पर, रोज 119 आसन करने पड़ते हैं, महीने में 3,570 और एक साल में 42,840 आसन हुए। मान लीजिए कि हम औसतन 50 साल की उमर तक जिंदा रहते है। नमाज़ की दीक्षा 10 साल में हो जाती है। यानी, इस जिंदगी में इस हिसाब से हम कुल 42,840x40, यानी 17,13,600 (सतह लाख, तेरह हजार, छह सौ) आसन कर चुकते हैं। नमाज़ का अभ्यास अगर और ठीक ढंग से किया जाए तो देह, दिमाग और दिल की तन्दुरुस्ती अपने आप बनी रहेगी। इसके बारे में अलकुरान (29:45) में लिखा है- इन्नास सालात तन्हा फुस्याये वालमुन्कार। इसका अर्थ है- ‘नमाज़ी के दिमाग में गंदी भावना और कमजोर विचार नहीं आ सकते।


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