पुराणों में योगदर्शन

ग्राणों में लोकोपयोगी अनेक विद्याओं राणों में लोकोपयोगी अनेक विद्याओं का वर्णन उपलब्ध होता है, जैसे- अश्वशास्त्र का ज्ञान, रत्नपरीक्षा का ज्ञान, वास्तुविद्या का ज्ञान, धनुर्विद्या का ज्ञान आदि। इसी प्रकार पुराणों में योगविद्या का भी वर्णन विस्तार से मिलता है। ग्राणों में लोकोपयोगी अनेक विद्याओं राणों में लोकोपयोगी अनेक विद्याओं का वर्णन उपलब्ध होता है, जैसे- अश्वशास्त्र का ज्ञान, रत्नपरीक्षा का ज्ञान, वास्तुविद्या का ज्ञान, धनुर्विद्या का ज्ञान आदि। इसी प्रकार पुराणों में योगविद्या का भी वर्णन विस्तार से मिलता है।


योग की परिभाषा 


विष्णुपुराण के अनुसार आत्माज्ञन के विष्णुपुराण के अनुसार आत्माज्ञन के प्रयत्नभूत यम, नियमादि की अपेक्षा रखनेवाली मन की विशिष्ट गति है, उसका ब्रह्म के साथ संयोग होना ही योग हैप्रयत्नभूत यम, नियमादि की अपेक्षा रखनेवाली मन की विशिष्ट गति है, उसका ब्रह्म के साथ संयोग होना ही योग है


आत्मप्रयत्नसापेक्षा विशिष्टा या मनोगतिः।।


तस्या ब्रह्मर्षि संयोगो योग इत्याभिधीयते॥


आत्मप्रयत्नसापेक्षा विशिष्टा या मनोगतिः।।


तस्या ब्रह्मर्षि संयोगो योग इत्याभिधीयते॥


-विष्णुपुराण, 6.7.31 -विष्णुपुराण, 6.7.31



भागवतपुराण के अनुसार बहिर्गामी उच्छृखल इन्द्रियों को सांसारिक विषयों से हटाकर इनकी प्रवृत्ति को अन्तर्मुखी करना योग हैभागवतपुराण के अनुसार बहिर्गामी उच्छृखल इन्द्रियों को सांसारिक विषयों से हटाकर इनकी प्रवृत्ति को अन्तर्मुखी करना योग है


आहुः शरीरं रथामिन्द्रियाणि हयानभीषून् मनइन्द्रियेशम्।।


वर्मनि मत्राधिष्णां च सूतं सत्वं वृहद् | बन्धुरमीशसृष्टम्॥


आहुः शरीरं रथामिन्द्रियाणि हयानभीषून् मनइन्द्रियेशम्।।


वर्मनि मत्राधिष्णां च सूतं सत्वं वृहद् | बन्धुरमीशसृष्टम्॥


-भागवतपुराण, 7.15.41 -भागवतपुराण, 7.15.41


अग्निपुराण के अनुसार चित्त की एकाग्रता ही योग है और चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है जो जीवात्मा और परमात्मा से परे रहा करता है। पातञ्जल योग के अनुसार चित्तवृत्ति का निरोध ही योग hd अग्निपुराण के अनुसार चित्त की एकाग्रता ही योग है और चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है जो जीवात्मा और परमात्मा से परे रहा करता है। पातञ्जल योग के अनुसार चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है


 ब्रह्मप्रकाशकं ज्ञानं योगस्तत्रेकचित्तता। चित्तवृत्तिनिरोधश्च जीवब्रह्मात्मनोः परः॥ 


ब्रह्मप्रकाशकं ज्ञानं योगस्तत्रेकचित्तता। चित्तवृत्तिनिरोधश्च जीवब्रह्मात्मनोः परः॥


अग्निपुराण, 372.1-2 अग्निपुराण, 372.1-2


पुराणों में भी पातञ्जल योगसूत्र के अनुसार योग का लक्षण दिया गया है, परन्तु पुराणकारों ने चित्त का अर्थ इन्द्रियाँ लिया है। अग्निपुराण और योगसूत्र का लक्षण एक समान है, लेकिन अग्निपुराण में चित्त की एकाग्रता, यहाँ पर नयी भंगिमा लाने की कोशिश की गई है। पुराणों में भी पातञ्जल योगसूत्र के अनुसार योग का लक्षण दिया गया है, परन्तु पुराणकारों ने चित्त का अर्थ इन्द्रियाँ लिया है। अग्निपुराण और योगसूत्र का लक्षण एक समान है, लेकिन अग्निपुराण में चित्त की एकाग्रता, यहाँ पर नयी भंगिमा लाने की कोशिश की गई है।


मार्कण्डेयपुराण के अनुसार ज्ञान के द्वारा वैराग्य की उत्पत्ति होती है तथा वैराग्य के द्वारा दुःखों का नाश। इसी प्रकार कहा मार्कण्डेयपुराण के अनुसार ज्ञान के द्वारा वैराग्य की उत्पत्ति होती है तथा वैराग्य के द्वारा दुःखों का नाश। इसी प्रकार कहा गया है ज्ञान के द्वारा ही योग प्राप्त होता है। जो मोक्ष को देनेवाला होता है


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