शिवखोड़ी जहाँ शिव की स्तुति में रमते हैं। देवी-देवता...

जम्मू-कश्मीर राज्य में आस्था के अनेक पावन तीर्थस्थल हैं। कटरा में स्थित त्रिकूट पर्वत पर माँ वैष्णो देवी मन्दिर, शिवभक्तों के लिए बाबा अमरनाथ, शंकराचार्य मन्दिर, बाबा धनसर, नवदेवी मन्दिर आदि अपनी धार्मिक महत्ता के कारण विश्वभर में विख्यात हैं। आस्था के इन पावन स्थलों में से एक हैं शिवखोड़ी धाम, जिसका अपना पौराणिक महत्त्व है और जो शिवभक्तों की आस्था का केंद्रबिंदु है। इस चमत्कारी गुफा में अपने परिवार के साथ विराजते हैं देवों के देव महादेव भोले शिव शंकर। प्रकृति की गोद में बसी हुई यह एक ऐसी दुर्लभ जगह है जहाँ आदिकाल से ही अब तक भगवान् शिव की महिमा बनी हुई है, वह भी अपने आप।



शिवखोड़ी धाम जम्मू से करीब 140 कि.मी. एवं कटरा से 85 कि.मी. दूर उधमपुर जिले में स्थित है। पिछले वर्ष मुझे इस तीर्थस्थान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माँ वैष्णो देवी के दर्शन के पश्चात् मैं अपने परिवार के साथ कटरा से टैक्सी द्वारा रनसू (रणसू) पहुँची जहाँ से शिवखोड़ी की गुफा करीब 3.5 कि.मी. दूर रह जाती है। इसी स्थान से पैदल या खच्चर के द्वारा बाबा भोलेनाथ की यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। बरसात का मौसम होने के कारण हमने सुरक्षा की दृष्टि से खच्चर पर जाना ही उचित समझा। रनसू से थोड़ा आगे चलने पर नदी पर बना हुआ लोहे का एक छोटा-सा पुल आता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि इस नदी को 'दूधगंगा' कहते हैं। कारण यह है कि शिवरात्रि के दिन इस नदी का जल स्वतः ही दूध के समान सफेद हो जाता है।


क्रीड़ा करती प्रकृति के वैभव को निहारते हुए आगे चलने पर एक कुण्ड दिखाई दिया जिसे 'अञ्जनी कुण्ड' कहते हैं। इस कुण्ड के समीप ही भगवान् नीलकण्ठ की सवारी नन्दी के पैरों के निशान हैं। ऐसी मान्यता है कि नन्दी इस कुण्ड में पानी पीने आते थे। इस कुण्ड में छोटी-बड़ी काफ़ी मछलियाँ हैं, यात्रीगण मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाकर पुण्य कमाते हैं। हर-हर महादेव', 'बम-बम भोले’, ‘भोले तेरा रूप निराला-शिवखोड़ी में डेरा डाला'-जैसे जयकारों के साथ भक्तों के काफिले में हम भी आगे बढ़ रहे थे। हर कोई उमंग के साथ शिव गुफा को जल्दी से जल्दी छूने के प्रयास में दौड़े जा रहा था। करीब एक किलोमीटर आगे चलने पर लक्ष्मी-गणेश का मन्दिर आता है। इस मन्दिर के अंदर छोटी-सी गुफा में लक्ष्मी-गणेश की प्राचीन मूर्ति है। नीचे से बहती हुई दूधगंगा की कल-कल ध्वनि मन्दिर की शोभा को और बढ़ा देती है।


यहाँ से दर्शन के बाद प्रकृति की छटा को देखते-देखते हम शिवगुफा से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर रह गए। यहाँ से प्रसाद की दुकानें शुरू हो जाती हैं। हमने भी गंगाजल, बिल्वपत्र, प्रसाद आदि खरीदकर फिर से पैदल चलना प्रारम्भ किया। झूमते हुए वृक्ष, ठण्ढी-ठण्ढी हवा के झोंकों और बाबा के जयकारों के साथ जैसे ही हमें दूर से गुफा के दर्शन हुए, हमारे आनन्द की अनुभूति कई गुना बढ़ गयी। ऐसा लगा जैसे हम कैलास पर ही पहुँच गए हों। गुफा के बाहर हवन-कुण्ड है। यहाँ से थोड़ा दाएँ चलने पर हमने क्लॉक रूम में अपने मोबाइल, पर्स, जूते-चप्पल आदि जमा करा दिए। गुफा के लिए लगभग 50-60 सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचना होता है। गुफा के पास ही जम्मू-कश्मीर पुलिस की सुरक्षा चौकी है जो सुरक्षा की दृष्टि से यात्रियों की तलाशी लेने के बाद ही आगे बढ़ने देती है। गुफा की बायीं ओर बाबा रमेशगिरि जी (मुख्य व्यवस्थापक) की कुटिया है जहाँ अखण्ड ज्योति जलती रहती है।


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