बनजारा जाति का इतिहास

बनजारा घुमक्कड़ समाज है और ये । किसी स्थान विशेष के नहीं हैं- - सर्व भारतीय हैं। बनजारा 4 प्रकार सर्व भारतीय हैं। बनजारा 4 प्रकार के हैं


1. सैनिक परिवहन- सेना के लिये खच्चर (गर्दभिल्ल) या गर्दभ से सामान ढोनेवाले तथा मनुष्यों के लिए भी परिवहन।।


2. व्यापार परिवहन सुरक्षा व्यापार के लिये सामान ढोनेवाले। इसके साथ रास्ते में सुरक्षा का भी दायित्व। गर्दभिल्ल से बिहार, उत्तरप्रदेश में गदहेड़ा हो गया है।



3. मृत सैनिकों के अनाथ परिवार- राणा प्रताप के सैनिक। राणा प्रताप ने शपथ ली थी कि जब तक चित्तौड़ को नहीं जीतेंगे, तब तक वे थाली में भोजन नहीं करेंगे तथा पलंग या गद्दे पर नहीं सोयेंगे। उनके साथ कई सैनिकों ने भी इस नियम का पालन किया और मुगलों का विरोध करने के कारण कहीं बस नहीं पाये। इसी प्रकार रानी दुर्गावती के पराजित होने पर गोण्ड लोग दलित हो गये।


4. मुस्लिमों द्वारा गुलाम बनाए गए लोग- सेना या सामान्य जनता के बन्दी बनाए लोग जो मुस्लिम शासकों द्वारा गुलाम बनाकर बेचे गये। उनमें कई लोग भागकर भारत या यूरोप तक खानाबदोश जीवन बिताते रहे।


बनजारा शब्द का मूल- संस्कृत वाणिज्य से प्राकृत बनजारा अर्थात् व्यापारी।


वनचर-वन अर्थात् जंगल में घूमनेवाला।


बंजर या अनुत्पादक भूमि (संस्कृत वन्ध्या) में रहनेवाला।


फ़ारसी में चावल का व्यापारी। बिरंज = चावल। या बिरिंज = पीतल के बर्तन व्यवहार करनेवाला।।


बाध्यता के कारण कई लोग बनजारा हुए। इसका मूल फ़ारसी का शब्द ‘ब- नाचारी' (लाचारी) है जिसका अर्थ है विवशतापूर्वक, लाचारी की हालत में। (फारसी शब्दों के लिये देखें-मुस्तफा खां मद्दाह का उर्दू-हिन्दी शब्दकोश- उत्तर प्रदेश हिन्दी समिति)


पुराणों में गर्दभिल्ल राजवंश के 13 राजाओं का उल्लेख है (विष्णुपुराण, 4.24.51, भागवतपुराण, 12.1.29)। इनमें एक राजा उज्जैन के जैनगुरु कालकाचार्य (599-527 ई.पू.) के समय था जिसने उनकी बहन सरस्वती का अपहरण किया था। लोगों के कहने पर भी उसने नहीं छोड़ा, तो कालकाचार्य सहायता के लिए हिन्दुग देश (वर्तमान अफ़गानिस्तान) गये जहाँ के 56 सामन्तों की सहायता से गर्दभिल्ल को पराजित किया। कालकाचार्य कुमारिल भट्ट (557-493 ई.पू.) के गुरु थे (जिनविजय महाकाव्य)। उन्होंने जैन- शास्त्रों का उद्धार किया, अतः उनको वीर कहा गया और उनके निधन 527 ई.पू. से वीर संवत् आरम्भ होता है। कई लोग वीर को महावीर मान लेते हैं जिनका जन्म 1905 ई.पू. में हुआ था और सिद्धार्थ बुद्ध (1887-1807 ई.पू.) के गुरु भी थे। सिद्धार्थ बुद्ध को भी गौतम बुद्ध (563 ई.पू.) बनाकर दोनों को एक मान लिया है। महाभारत अनुशासनपर्व (4.59) में विश्वामित्र के 62 गोत्र-प्रवर्तक पुत्रों में 1 का नाम है- गर्दभि। मत्स्यपुराण (199.16) के अनुसार यह कश्यप वंश के गोत्रकार ऋषि थे। देवीभागवत पुराण (4.14.51) के अनुसार पराजित होने के बाद गर्दभ रूप में राजा बलि रहते थे। वायुपुराण (67.83) के अनुसार बलि के प्रधान 4 पुत्रों में से एक गर्दभाक्ष था। कई असुरों के नाम खर थे- जैसे रावण सेना के खर-दूषण जिनका श्री राम ने दण्डकारण्य में वध किया था। ऐतरेयब्राह्मण (4.9) में गर्दभ द्वारा खींचे गये रथ का उल्लेख है। महाभारत-युद्ध में भी घटोत्कच के रथ में गर्दभ जुते हुए थे। तैत्तिरीयसंहिता (5.1.2.1-2) में उसे उत्तम भारवाही (भारभारितम) कहा है।


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