बनजारा समाज के गौरव : गुरु गोविन्दगिरी

भारतभूमि ने विभिन्न समाजों, समुदायों और जातियों में अनगिनत स्वातन्त्र्य वीरों को जन्म दिया है। बनजारा समाज में जन्मे ऐसे ही एक स्वातन्त्र्य वीर थे गुरु गोविन्दगिरी। इनका जन्म राजस्थान की डूंगरपुर रियासत के बाँलिया गाँव के बनजारा परिवार में 20 दिसम्बर, 1858 को हुआ था। उनके पिताजी का नाम श्री बेचरगीर और माताजी का नाम कमलाबाई था।


छप्पनिये अकाल में गोविन्दगिरी की पत्नी और पुत्रों की मृत्यु हो गई, तब उन्होंने गनी नामक विधवा से संसार बसाया, जिससे दो पुत्र हरि और अमरू ने जन्म लिया। अब हरि महाराज का परिवार बाँसिया गाँव में और अमरू महाराज का परिवार बाँसवाड़ा में बसा है।



उस कालखण्ड में वनवासी और बनजारे दोहरी गुलामी की बेड़ियों से जकड़े हुए थे। उनके शारीरिक श्रम का दोहन होता था। कुछ समय पश्चात् राजगिरी नामक एक गृहस्थ गोसाईं से दीक्षा लेकर अपनी पत्नी सहित साधु हो गया। गोविन्दगिरी को राजगिरी ने अपना शिष्य बनाया और राजगिरी की पत्नी ने गोविन्दगिरी की पत्नी को अपनी शिष्या बनाया। गोविन्दगिरी श्रद्धा से नतमस्तक हुए और जीवन में रोशनी का रास्ता दिखाने हेतु करबद्ध प्रार्थना की। स्वामी राजगिरी वनवासी घुमक्कड़ बनजारा जाति के इस युवक की ज्ञानपिपासा और समाजसेवा की दृढ़ इच्छा जानकर प्रसन्न हुए और वनवासियों की बुराइयों को दूर करने, समाज को भक्तिभाव से एकजुट करने की प्रेरणा दी।


गुरु गोविन्दगिरी जातिगत संस्कार से भी भ्रमणशील व्यापार करनेवाले बनजारे थे। वह आदिवासियों में ज्ञान का व्यापार करने के लिए आदिवासी क्षेत्र के डगर-डगर, बस्ती-बस्ती, झोपड़ी-झोपड़ी तक व्यापक, सम्यक्, एकता, संस्था, शुद्धता, स्वतंत्रता का महत्त्व समझाते रहे। 


आगे और----