बनजारो के चार धाम

चॆत्र शुक्ल अष्टमी, विक्रम संवत् 2072 के शुभ दिवस पर, ब्रह्मलीन सद्गुरु श्री सेवालालजी महाराज की समाधि-स्थित ग्राम पोहारादेवी में ‘बनजारा धर्मपीठ' का निर्माण हुआ।। चै


आद्य शंकराचार्य जी का अभिमत था कि मानव का मूल धर्म है, वह आचार्य पर निर्भर है; क्योंकि सामान्य जन को धर्म के तत्त्वों का ज्ञान नहीं होता, धर्माचार्य लोग अपने अनुभूतिजन्य ज्ञान से कर्तव्य का उपदेश देते हैं, इसलिए आचार्यरूपी अनमोलमणि का शासन सर्वोपरि है। अतः सर्वतोभावेन उदारचरितवाले आचार्य का शासन सभी को स्वीकार करने हेतु धर्मगुरु ब्रह्मचारी संत श्री रामरावजी महाराज को पीठाधीश्वर का मुकुट पहनाया गया। यह राजमुकुट धारण करनेवाले धर्माचार्य को पद्मपत्र की तरह निर्लिप्त रहकर इस वैभव का निर्वाह करना चाहिए। राजमुकुट धारण करने का पात्र केवल पीठ का अधिपति ही है। धर्मरक्षार्थ देवराज इन्द्र की भाँति छत्र, चँवर, सिंहासन और राजमुकुट धारण करने का अधिकार केवल पीठाधिपतियों को ही है।



बनजारा धर्मपीठ से धर्मसन्देश देते हुए आचार्य धर्मगुरु रामरावजी महाराज ने सम्बोधित किया कि जिस आचरण से मन एवं हृदय का विकास होता है, उस आचरण को ‘धर्म' कहते हैं। इसलिए सज्जनों तथा श्रेष्ठ जनों के आचरण तथा उपदेशों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना आचरण रखना चाहिए। सुख की इच्छा तो सभी करते हैं। हर कोई सुख को ढूँढ़ता है, यह सुख ‘धर्म से ही उत्पन्न होता है। धर्म में मानव जीवन तथा राष्ट्र का कल्याण है। राष्ट्र की उन्नति धर्म से अर्थात् श्रेष्ठ आचरण से सम्भव है। धर्म यह सुखी जीवन का मूलमंत्र है।


‘बनजारा धर्मपीठ' क्षेत्र को ‘भक्तिधाम' कहते हैं। यहाँ पर श्रीश्रीश्री भगवान् हमुलाल, संत धावजी बापू, ‘साती भवानी प्रतिष्ठाना (शक्तिपीठ) तथा सद्गुरु संत सेवालालजी की स्वर्ण-प्रतिमा के साथ गराशा' वृषभराज तथा ‘तोलाराम' अश्व की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। पाँच एकड़ क्षेत्रफल में फैले ‘भक्तिधाम' में भक्तों के निवास हेतु सौ से अधिक खोलियों का निर्माण हुआ है। दो सभागार तथा बनजारास्टूडियो भी है। चार हजार लोगों की क्षमतावाला भोजनगृह बनाया गया है। पानी का टैंक एक लाख लीटर का बना हुआ है। यहाँ पर बीस सार्वजनिक स्वच्छतागृह तथा बीस स्नानगृह हैं। शताधिक वृक्षों के साथ अनेक प्रकार की वनस्पति औषधियाँ तथा फूल-पौधे लगाए गए हैं। भव्य रोशनाई से यहाँ का दृश्य बड़ा सुन्दर लगता है। भक्तों के लिये यहाँ पर हर दिन अन्नदान होता है।


धर्मपीठ से धर्म की शिक्षा दी जाती है। धर्म ही जीवन का मूलाधार है। सभी धर्मग्रन्थ, सभी महापुरुष मानवमात्र के कल्याण के लिए धर्म के श्रेष्ठतम आचरण का ही संदेश देते हैं। श्रीश्रीश्री भगवान् हमुलाल, सदुरु संत सेवालाल जी महाराज, संत श्री धावजी बापू, संत श्री तळचीसाद महाराज, संत श्री ईश्वरसींग बापू आदि महान् तपस्वियों ने धर्मस्वरूप आचरण करने का ही मार्ग बताया है। इसलिए इस ‘भक्तिधाम' बनजारा धर्मपीठ के माध्यम से चरित्रशिक्षण, ज्ञान और विज्ञान के प्रचार के साथ दिव्य भावनाओं का प्रचार, अतिथि सेवा, आध्यात्मिक गुणों का विकास तथा अनाथों की रक्षा- इन सामाजिक आवश्यकताओं के लिए बनजारा धर्मपीठ ‘भक्तिधाम' का निर्माण किया गया है।


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