घुमंतू जनजातियाँ अभिन्न रहीं हमारे समाज का हिस्सा

राजस्थान में अरावली की तलहटी पर बसा सुरजनपुर निमडी नाम का एक छोटा-सा गाँव है। गाँव के पास ही बनजारों की एक बस्ती है जहाँ इस समुदाय के करीब 20-22 परिवार रहते हैं। सुल्तान का परिवार भी इनमें से एक है। उन्होंने हाल ही में यहाँ अपना घर दोबारा बनाया है। दोबारा इसलिए क्योंकि कुछ समय पहले गाँव के लोगों ने इस पूरी बस्ती में आग लगा दी थी। इस घटना के बारे में सुल्तान की पत्नी सुगना बताती हैं, ‘‘पिछली दीवाली की बात है।'' यहाँ पास में ही एक गौशाला बनी थी। मेरी माँ एक दिन वहाँ लगे हैंडपंप से पानी पीने चली गई। गौशाला वाले इस पर इतना भड़क गए कि उन्होंने पहले तो हमें पीटा और कुछ देर बाद गाँववालों के साथ आकर बनजारों की सारी झोपड़ियाँ फेंक दीं।



अपनी झोपड़ी में लगी आग को बुझाने में सुल्तान का बायाँ हाथ बुरी तरह झुलस गया था। इसके निशान आज भी साफ़ दिखाई पड़ते हैं। सुल्तान कहते हैं, 'हम बनजारे हैं। पीढ़ियों से घूमते ही रहे हैं। लेकिन अब घूमने से दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती, इसलिए एक जगह बस जाना चाहते हैं। पर बसने जाओ तो हमारे साथ ऐसा सलूक होता है। बसने से पहले ही लोग उजाड़ देते हैं। वे आगे कहते हैं, ‘हम यहाँ रहते भी हैं तो गाँववालों की दबंगई में ही जीते हैं। न उनके नालों से पानी ले सकते हैं और न किसी सार्वजनिक जगह का इस्तेमाल कर सकते हैं। हमारे जानवर अगर गाँव में चले जाते हैं तो वे लोग उन्हें वहीं रोक लेते हैं। फिर कभी पैसे लेकर जानवर लौटाते हैं और कभी लौटाते ही नहीं।' सुल्तान और उनकी बस्ती के अन्य बनजारों की आज जो स्थिति है, कमोबेश वही देश की सैकड़ों ‘घुमंतू जनजातियों के करोड़ों लोगों की भी है। सदियों से घुमंतू रही ये जनजातियाँ अब स्थायी तौर से बसना चाहती हैं। लेकिन वे सभी कमोबेश वैसी ही चुनौतियों का सामना कर रही हैं जैसी सुल्तान और उनके साथियों के सामने हैं।


अलवर जिले के भोजपुरी गाँव के पास आकर बसे नट समुदाय के लोग भी ऐसी ही स्थिति से गुजर रहे हैं। इनमें शामिल योगेश बताते हैं, “हम लोग तीन महीने पहले यहाँ आए हैं। हमने जब यहाँ अपना घर बनाना शुरू किया, तब किसी ने नहीं रोका। लेकिन गाँववालों को जब से पता लगा कि हम नट हैं तब से वे हमें भगाने पर तुले हैं।' योगेश के ही परिवार की मीना कहती हैं, 'करीब एक महीना पहले पास के मंडावर गाँव के लोग यहाँ आए और हमें मारते हुए ताड़ वृक्ष चौराहे पर ले गए। उन लोगों ने हमें धमकी दी है कि अगर हम यहाँ से नहीं गए तो हमें मार डालेंगे।


' सुल्तान, योगेश और मीना की कहानियाँ उन चुनौतियों के अपेक्षाकृत छोटे उदाहरण हैं जो आज घुमंतू जनजातियों के करोड़ों लोगों के सामने हैं। सिर्फ राजस्थान में ही इसके दर्जनों बड़े उदाहरण हैं। कुछ समय पहले ही अलवर के थानागाजी ब्लॉक में इन लोगों की 60 झोपड़ियाँ फेंक दी गयीं, उदयपुर जिले के लकड़वास में कालबेलिया समुदाय की बस्ती जला दी गयी, 


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