कौन थे बनजारो के पूर्वज?

कौन थे बनजारों के पूर्वज? इस न थे बनजारों के पूर्वज? इस प्रश्न पर बनजारा समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों का उत्तर । होगा- "हम राजपूत हैं। राजस्थान की विभिन्न रियासतों के भूतपूर्व शासक हमारे जातिबन्धु थे। दिल्ली पर हमारा शासन था। मुसलमानों के आक्रमण के समय जो । राजपूत बचे, जंगलों में भाग गये और आदिम जातियों का जीवन बिताने लगे। हम लोग स्वतन्त्रता के लिए वनवासी बन गये।'' इस तरह के वक्तव्य का सार यह है कि स्वतन्त्रता बहुत बड़ा मूल्य लेती है। जो लोग आज़ादी के लिए संघर्ष करते हैं, उन्हें ही नहीं, उनकी अनेक पीढ़ियों को भी दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट अभिशापस्वरूप मिलते हैं।


कुछ समाजशास्त्री कहते हैं- बनजारा-समाज के बहुत से घटक मूलतः भारतीय नहीं हैं। वे शक-हूण अथवा इसी प्रकार की किसी विदेशी जाति के वंशज हैं। चौथा मत है- बनजारा भारत के पूर्वज द्रविड़ थे।



पाँचवाँ मत है- बनजारे भारत की आदिम जातियों के वंशज हैं। वे विदेशी नहीं हैं। बनजारों के कुछ समूह भारत से दूसरे देशों में गये।


राजपूत और बनजारा


बनजारों और राजपूतों की अभिन्नता बताते हुए बलीराम ने लिखा है- 'राजपूत क्षत्रियों में सूर्य का जो मान है, वही मान बनजारों में भी है। आज भी ये लोग झोपड़ी या घर बनाते हैं, तो द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है।' भोजन के समय बनजारे भी राजपूतों की तरह गोलाकार बैठते हैं। पंचायती और सार्वजनिक समारोहों में ये लोग गोलाकार बनाकर बैठते हैं।


बलीराम ने अपने पूर्वजों की चर्चा करते हुए एक कहानी का उल्लेख किया है- 'किसी समय बीकानेर और जोधपुर के बीच हाकड़ा नदी बहती थी। उसका तट हरा-भरा था। संयोग से नदी का प्रवाह बदल गया। पानी मुल्तान की ओर बहने लगा। बीकानेर और जोधपुर के बीच का क्षेत्र सूख गया।'


नदी का प्रवाह एक बनजारे ने बदला था। उन दिनों लाख बैलों का स्वामी लक्खी बनजारा कहलाता था। मंडोर के राजा ने लक्खी बनजारे की स्त्री को जबर्दस्ती छीन लिया था। लक्खी बनजारे ने राजा को सबक सिखाने का निश्चय किया। उसने बीकानेर की ओर नदी में बैलों पर लाद-लादकर मिट्टी डाल दी। नदी का प्रवाह बदल गया।


बलीराम ने बनजारों के गोत्रों तथा पाड़ों का उल्लेख करते हुए राजपूतों के पाड़ों को लम्बी सूची छापी है। उनका कथन है- 'राजपूत भारत के प्राचीन क्षत्रियों के वंशज हैं, अतः बनजारों का समावेश आर्यों के चातुर्वर्ण्य में होता है।


एक विद्वान् ने लिखा है- 'वे सम्भवतः उत्तर भारत में लड़े गये लगातार युद्धों के कारण अपने निवासस्थान से खदेड़े गए हैं। उन्हें ईमानदारी के साथ किये जानेवाले परम्परागत रोजगार से वंचित किया गया है। वे सैनिक के रूप में अपनी आजीविका उपार्जित करते थे। अंग्रेजों ने देश पर अधिकार करके जब शान्ति और कानून की स्थापना की, तो उनके लिए किसान या कारीगर के रूप में भी रोजी कमाना असम्भव हो गया। ये अपमानित सैनिक अपराधी बन गये। ये (बनजारे) मूलतः अनाज के व्यापारी नहीं हैं। ये लोग बहुत कुछ अपदस्थ राजपूतों से मेल खाते हैं।


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