सोटों-सूकरक्षेत्र के बनजारे

सोरों-सूकरक्षेत्र, गंगाजी, सोरों जी और बनजारों का सम्बन्ध अति प्राचीन काल से है। यहाँ निवास करनेवाले तीर्थ-पुरोहितों के पास सुरक्षित इनकी नामावलियों, बहियों (पितृकीर्तन-ग्रंथावलियों) में इनका इतिहास 15वीं शताब्दी से अद्यतन सुरक्षित है। जब भी बनजारा लोग गंगाजी सोरों की यात्रा पर आते हैं, तब इन ग्रंथावलियों में अपने परिवारों के व्यक्तियों के नाम अंकित कराते हैं। इस अवसर पर ये लोग पुरोहितों को गाय, वृषभ, अश्व, गज तथा कड़ा कंठी के मूल्यस्वरूप मुद्रा भेट देते हैं। अब विगत लगभग डेढ़ शती से बनजारा लोग सोरों सूकरक्षेत्र में निवास कर रहे हैं। इनकी संस्कृति स्थानीय संस्कृति से बहुत कुछ प्रभावित हो चुकी है, फिर भी ये मूल स्वरूप को बचाए हुए हैं। स्थानीय बनजारा मोहन पहलवान मल्लविद्या के प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अनेक दंगल जीते हैं।



बनजारा को संस्कृत के 'वन' (जंगल) तथा ‘चर' (चरना या चलना) शब्दों से उत्पन्न मानकर उसे 'वन में चलनेवाला' इस अर्थ में प्रयोग करते हैं। बनजारा का फ़ारसी ‘वीरनजार' से सम्बन्ध जोड़कर बनजारा को चावल लेकर जानेवाला भी कहा गया है। भारतीय समाज में वाणिज्य (व्यापार) करनेवाले दो प्रकार के लोग हैं। जो स्थायी निवास के साथ व्यापार करते थे, वे वणिक (बनिया) कहलाये और जो लोग घूम-घूमकर व्यापार करते थे, वे बनजारे कहलाये। ‘वाणिज्य शब्द को ही हिंदी में ‘वणज' कहा जाता है। तथा वनज' से ही बनजारा शब्द की उत्पत्ति हुई है। ‘बणजारा’ को ‘गोर' भी कहा जाता है। यथोवेन के मतानुसार बनजारा की सही उत्पत्ति पंजाबी के बनज' या ‘वनज' शब्द से हुई है। पंजाबी के इस 'वनज' का अर्थ होता है ‘वाणिज्य' या 'व्यापार' । शब्दकोशों में ‘वनज' या ‘बनजारा' शब्द के अर्थ पर दृष्टिपात करतेहैं।


वनज (वि. सं.)- वन में उत्पन्न, पु. 1. कमल 2. वृक्ष, 3. वनस्पति, 4. हाथी, 5. सुगन्धयुक्त तृण विशेष, 6. नील कमल का पुष्प, 7. जंगली कपास।


वनज (संज्ञा, पु. सं.) 1. वन जंगल या पानी में उत्पन्न होनेवाला पदार्थ 2. कमल, 3. जंगली विजोरा जाति का नींबू, 4. मोथा, 5. तुंबुरू का फल, 6. वनकुलथी।


बनज- कमल, शंख, जंगल में होनेवाले पदार्थ, वाणिज्य-व्यवसाय।


बंजारा- विणजारा, बंजारौविणजारौ, विणजारा- स्त्री., बैलों पर सामान लादकर देशान्तर में व्यापार करनेवाली जाति।।


विणजारौ- पु.- (सं. वाणिज्य पर) (स्त्री., वणजारा, वणजारी) 1. उक्त जाति का व्यक्ति, 2. सौदागर।।


बनजारा (संज्ञा पु.) हि. 1. बैलों पर अन्न लादकर जगह-जगह बेचनेवाला, 2. व्यापारी सौदागर, बनजारा (हि. पु.) वह व्यापारी जो बैलों पर अन्न लादकर देश-देश में घूमकर बेचता है।


अब यदि बनजारा शब्द को बनजा + रा के रूप में बना हुआ मानकर देखें तो बनजा का अर्थ


वनजा- जंगली अदरक, जंगली कपास का पौधा (संज्ञा, स्त्री.) 1. मुगपर्णी, 2. निर्गुण्डी, 3. सफेद कंटकारि, 4. वन तुलसी, 5. अश्वगंधा, 6. वन कपास 


रा- वि. म. 1. षष्ठी चिह्न के 2.रै राउ, रा- रास, राय, राह।


रा- (सं. स्त्री.) विभ्रम दान, पु. शब्द धन।


रा- (अदा पर राति रात) देना, अनुदान देना, समर्पण करना- स रातु वो दुश्च्यवनो भावुकाना परम्पराम काव्य इससे बनजारा' शब्द की व्युत्पत्ति नहीं दिखाई देती।


इस तरह वह व्यक्ति, जो बैलों पर अनाज लादकर बेचने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता है, उसी व्यक्ति को ‘बनजारा' कहा जाता है। ‘बनजारा' वह व्यक्ति है जो जीवनपर्यन्त एक स्थान से दूसरे स्थान घूमता रहता है। बंजारों का न कोई ठौर-ठिकाना होता है न ही घर-द्वार। पूरी जिंदगी यह समुदाय यायावरी में निकाल देता है। (बंजारा लोक संस्कृति : एक अवलोकन, इकबाल, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय)।


बनजारा समाज का मूल सभी इतिहासकारों ने राजस्थान को ही माना। बंजारों के मूल उद्गम-स्थल के बारे में जे.जे. रॉय वर्मन ने अपनी पुस्तक ‘एथनोग्राफी ऑफ़ ए डीनोटीफाइटेड ट्राइब द लमान बनजारा' में बंजारा विद्वान् मोतीराज राठोड के हवाले से यह कहा हैकि बनजारा मूलतः अफगानिस्तान से तालुक रखते हैं। वहाँ ‘गोर' नामक एक गाँव है जो अपने आप में एक प्रान्त भी है। ‘गोर' गाँव से सम्बन्ध रखने की वजह से ही यह सम्भव है कि इनकी भाषा ‘गोरबोली' नाम से जानी जाती है। इनका मानना है कि ये राजपूतों के वंशज हैं। परन्तु मुझे इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला।


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