11वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन : आगे बढ़ते कदम

ग्यारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन भारत से बाहर भारत कहलानेवाले तथा हिंद महासागर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित विश्व के श्रेष्ठतम दर्शनीय द्वीपों में से एक मॉरीशस में 18 से 20 अगस्त के मध्य आयोजित किया गया। पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी वाजपेई जी के आकस्मिक निधन के फलस्वरूप पूर्व- निर्धारित अनेक कार्यक्रमों में अन्तिम समय पर परिवर्तन किए जाने के बावजूद सम्मेलन अनेक अर्थों में महत्त्वपूर्ण रहा। लगातार दूसरी बार सम्मेलन को भाषा पर केंद्रित रखा गया। इस बार सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति' था। सम्मेलन में भाग लेने बीस से अधिक देशों के दो हजार से भी ज्यादा प्रतिनिधि मॉरीशस पहुँचे थे।



आठ समानान्तर सत्रों में विभक्त इस सम्मेलन में विभिन्न विषयों पर सार्थक चर्चा हुई और प्रस्ताव पारित हुए। पहली बार प्रतिभागियों के लिए दिए गए विषयों पर आलेख-पाठन का दो-दिवसीय सत्र भी रखा गया जिसमें पूरे विश्व से 153 हिंदीसेवियों को चुना गया था। मुझे भी इस सत्र में हिंदी की सांस्कृतिक विरासत' पर आलेख-वाचन का अवसर प्राप्त हुआ। ‘प्रौद्योगिकी में हिंदी को भी इस बार सम्मेलन में प्रमुखता से स्थान मिला तथा भविष्य की प्रौद्योगिकी पर सारगर्भित विमर्श हुआ।


विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन ‘स्वामी विवेकानन्द अन्तरराष्ट्रीय सभागार में किया गया था जिसके परिसर को ‘गोस्वामी तुलसीदास नगर' नाम दिया गया था। मुख्य सभागार का नामकरण ‘मॉरीशस के प्रेमचन्द कहे जानेवाले साहित्यकार स्व. अभिमन्यु अनत के नाम पर किया गया था। अन्य कक्ष, जिनमें विभिन्न समानान्तर सत्रों का आयोजन किया गया था, गोपालदास 'नीरज', भानुमति नागदान, सुरुज प्रसाद मंगर भगत-जैसे हिंदीसेवियों तथा मणिलाल डॉक्टर, राय कृष्णदास, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, पं. नरदेव वेदालंकार तथा विक्रम सिंह रामलाला-जैसे विद्वानों के नाम पर रखे गए थे। आयोजन-स्थल पर ही भारत तथा मॉरीशस के अनेक प्रकाशकों और संस्थाओं ने अपने-अपने स्टॉल भी लगाए थे। माइक्रोसॉफ्ट और विकीपीडिया के स्टॉल आकर्षण के केंद्र थे। जिस हॉल में इस प्रदर्शनी को लगाया गया था, उसका नाम राय कृष्णदास के नाम पर रखा गया था।


सम्मेलन के उद्घाटन से दो दिन पूर्व, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी वाजपेयी के निधन के फलस्वरूप सम्मेलन की रूपरेखा में अन्तिम समय पर परिवर्तन करना पड़ा। मॉरीशस ने भी भारत के शोक में शामिल होकर तीन-दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी। सभी जगहों पर भारत और मॉरीशस के ध्वज झुके हुए थे। राष्ट्रीय शोक की छाया में हो रहे सम्मेलन के उद्घाटन-सत्र के प्रारम्भ में दो मिनट का मौन रखकर स्व. अटल जी को श्रद्धाञ्जलि दी गयी। तत्पश्चात् भारत और मॉरीशस के राष्ट्रगीत हुए। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और मॉरीशस की शिक्षामंत्री लीला देवी दुकन लटुमन ने दीप जलाकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के विदेशी छात्रों द्वारा सरस्वती वन्दना के पश्चात् महात्मा गाँधी संस्थान मॉरीशस के विद्यार्थियों ने हिन्दी-गान प्रस्तुत किया। इसके बाद लीला देवी दुकन लटुमन ने स्वागत भाषण दिया तथा प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने इस अवसर पर दो डाक-टिकट जारी किये। गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने 'गगनांचल के विशेषांक तथा विदेश राज्यमंत्री एम.जे. अकबर ने स्व. अभिमन्यु अनत की पुस्तक ‘प्रिया' का लोकार्पण किया।


विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज अपने उद्बोधन में कहा, “इस सम्मेलन एक साथ दो तरह के भाव उभरकर आ रहे हैं। पहला शोक का भाव, दूसरा संतोष का भाव। अटल जी के निधन पर शोक की छाया इस सम्मेलन पर है, किंतु दूसरी ओर संतोष का भाव भी है कि समूचा हिंदी-विश्व अटल जी को श्रद्धाञ्जलि देने के लिए यहाँ उपस्थित है। मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने अपने उद्घाटन-वक्तव्य अटल जी को भावभीनी श्रद्धाञ्जलि देते हुए कहा, “भारतमाता ने एक वीर राजनेता, बुद्धिमान, कर्तव्यपूर्ण हिंदीसेवी खो दिया है।'' उन्होंने आगे कहा कि अब मॉरीशस का साइबर टॉवर अटल विहारी के नाम से जाना जाएगा।


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