बलिण्डा घाट गागरोन) के अदभुत गणेशजी

विश्व धरोहर जलदुर्ग गागरोन के ठीक पीछे बहती नदी के आगे अरावली की मुकन्दरा पर्वतमाला स्थित है। यह पर्वतमाला एक लम्बी श्रृंखला के रूप में है, परन्तु यह दो भागों में बँटी हुई है जिसके मध्य गागरोन दुर्ग में आती नदी इसी भाग से होकर उत्तर की ओर प्रवाहित हो जाती है। दो भागों में बँटी इस पर्वतमाला को बलिण्डा पर्वत कहा जाता है। दरअसल किसी समय यह पर्वतमाला नदी के जलप्रवाह में अत्यन्त बाधक थी और जलप्रवाह अवरुद्ध हो जाता था। लगभग 200 फीट से अधिक ऊँची इसकी पाषाणी चोटियों के मध्य 20 फुट का फासला था, जिस पर मेहनतकश मज़दूर लकड़ी का मज़बूत गट्ठर पहाड़ों की दोनों सर्वोच्च चोटियों पर एक दूसरे को मजबूती से बाँधकर आवागमन पथ के रूप में अपने सिर पर बोझ ढोते हुए निकल जाया करते थे। ऐसी आश्चर्यचकित करनेवाली ऊँचाई के कारण ही इसे ‘बलिण्डा घाट' कहा जाता है।



इस प्रकार बलिण्डा घाट दो पहाड़ों की पाषाणी चोटी में विभक्त हो गया, जिसके पश्चिमी सिरे के मध्य उत्तरामुखी विशाल पाषाणी पर्वतमाला प्राकृतिक रूप से बने हैं अद्भुत गणेशजी। इन्हें बलिण्डा घाट के गणेशजी के नाम से जाना जाता है। प्रकृति की इस अद्भुत कृति को देखते ही व्यक्ति स्तब्ध रह जाता है। वेगवती नदी के जलप्रवाह व भूतल से लगभग 25 फीट ऊँची काली व भूरी चट्टानों के मध्य प्राकृतिक रूप से बने इन गणेशजी को देखते ही प्रतीत होता है मानो स्वयं पर्वतराज ने इन्हें अपने हाथों से गढ़ा है।


इस पाषाणी पर्वतमाला के विशाल व भारी-भरकम अनगढ़ पत्थर शिलारूपी है, परन्तु आश्चर्य है कि इस मूर्ति के 5 विशाल पाषाण-खण्ड ऐसे हैं जो गणेशजी को यहाँ विशाल शीश, भाल, मुख, कर्ण और लम्बी सूण्ड प्रदान करते हैं। इसे देखते ही लगता है। कि यह प्रकृति की अलौकिक कृति है अथवा प्राचीन मानव की युगयुगीन श्रद्धा?


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