राजधर्म के प्रणेता को शत-शत नमन

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, महान् राजनीतिज्ञ, भारत रत्न श्री अटल विहारी वाजपेयी जी का गत 16 अगस्त, 2018 को निधन हो गया। अटल जी के अवसान से भारतीय राजनीति के गौरवशाली युग का अंत हो गया है। अटल जी भारतीय जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक-सदस्य तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रहे। अटल जी एकमात्र सांसद थे, जो चार राज्यों उत्तर प्रदेश (लखनऊ और बलरामपुर), मध्यप्रदेश (ग्वालियर और विदिशा), गुजरात (गाँधीनगर) और दिल्ली (नयी दिल्ली) से चुने गए थे। श्री मोरारजीभाई देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल (1977-1979) में वह भारत के विदेश मंत्री रहे। वह 3 बार प्रधानमंत्री (1996-1996, 1998-1999, 1999-2004), 10 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सदस्य रहे।



दिनांक 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर में शिन्दे की छावनी में ब्राह्ममुहूर्त में अटल विहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था। इनके पिता पं. कृष्ण विहारी वाजपेयी उत्तरप्रदेश में आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी थे और मध्यप्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापन-कार्य करते थे। पं. कृष्ण विहारी एक अध्यापक के अलावा हिंदी व ब्रज-भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटल जी की माँ का नाम श्रीमती कृष्णा वाजपेयी था।


अटल जी की स्नातक की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (सम्प्रति लक्ष्मीबाई कॉलेज़) में हुई। कॉलेज जीवन में ही इन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना आरम्भ कर दिया था। शुरू में वह छात्र संगठन से जुड़े। 1943 में वाजपेयी जी कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने। ग्वालियर में रहते हुए अटल जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा-प्रभारी के रूप में अपने दायित्वों की पूर्ति की। ग्वालियर से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर आ गए और यहाँ उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने कानपुर में ही एलएल.बी. की पढ़ाई भी शुरू की, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म' निकालने के लिए उन्होंने यह पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने के दौरान 1942 में उन्होंने जेलयात्रा भी की।


श्री अटल विहारी वाजपेयी, भारतीय जनसंघ के संस्थापक-सदस्यों में से थे। उन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के निजी सचिव के रूप में भी कार्य किया। डॉ. मुखर्जी के निधन के पश्चात् भारतीय जनसंघ का काम अटल जी प्रमुख रूप से देखने लगे। 1975-77 में आपातकाल के दौरान भी उन्हें हिरासत में रखा गया था। आपातकाल के पश्चात् हुए चुनाव में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटल जी विदेश मंत्री बनाए गये। अटल जी ने कई देशों की यात्राएँ कीं और भारत का पक्ष रखा। अटल जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके तत्कालीन फौजी शासक ज़िया-उल-हकू से वार्तालाप के दौरान ‘फरक्का-गंगाजल' बँटवारे का मसौदा तय किया। इसके अतिरिक्त भारत और पाकिस्तान के मध्य रेल-सेवा की बहाली भी तय की गई। उन्होंने विदेश मंत्री के तौर पर भारतीय अणुशक्ति के सम्बन्ध में नीति स्पष्ट की और आणविक ऊर्जा को भारतीय आवश्यकताओं के लिए जरूरी बताया। 4 अक्टूबर, 1977 को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिंदी में सम्बोधन दिया। इससे पूर्व किसी भी भारतीय नागरिक ने राष्ट्रभाषा का प्रयोग इस मंच से नहीं किया था।


आगे और----