जीवन में आहार

इस चराचर जगत् में मनुष्य मात्र ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्राणियों के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु मानव के लिये भोजन की सार्थकता का विशेष महत्त्व है। खाना जीने के लिए है तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिये है, न कि सारा जीवन मात्र स्वादिष्ट भोजन के लिए है। एक पुरानी कहावत है कि जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन। हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिये हमें पौष्टिक, सात्त्विक, संतुलित एवं शाकाहारी भोजन की आवश्यकता है।


आज का मनुष्य भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान न देकर स्वाद की लोलुपता में अधिक रुचि रखता है। जबकि हम सबको स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए यह जरूर जानना चाहिए कि हमें क्या खाना चाहिए, कितना खाना चाहिए, कैसे खाना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए। आप गम्भीरतापूर्वक विचार करें कि अगर यह जानना आवश्यक न होता तो सोचो, भगवान् श्रीकृष्ण को रणभूमि में युद्ध से संबंधित उपदेश देते समय भोजन के विषय में बताने की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने अर्जुन को तीन प्रकार के भोजन सात्त्विक भोजन की महत्ता को क्यों बताया।



आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविर्वधनाः। रस्याः स्निगधाः स्थिराः हृद्या आहारा सात्त्विकप्रियाः॥ -गीता, 17.8


हमारा जन्म प्रकृति में हुआ है। अतः हमारे जीवन की हर अवस्था प्रकृति की सत्ता में अर्थात् प्रकृति की गोद में ही परिपूर्ण होती है। तो फिर हमारा भोजन, रहन-सहन प्राकृतिक ही होना चाहिए। परन्तु यह वर्तमान सभ्यता का भोजन अप्राकृतिक क्यों? क्यों हम प्रकृतिप्रदत्त उपहारस्वरूप हरी शाक-सब्जियों, फलों, अनाजों, दालों को इनके वास्तविक स्वरूप की दुर्गति कर उनकी गुणवत्ता को नष्ट करके, उन्हें भूनकर, तलकर, मसालेयुक्त बनाकर खाते हैं, और कुछ समय बाद इस भरी जवानी में या खेलते बचपन में गैस, एसीडिटी, अजीर्णता, कब्ज, मोटापा, मधुमेह, गठिया वात, उच्च रक्तचाप, दमा आदि रोगों की चपेट में आने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इस भागदौड़ की ज़िन्दगी में मनुष्य को स्वाद ने अपंग बना दिया है। यह आजकल डिब्बाबंद भोजन, तले-भुने पकवान, मैदे की बनी वस्तुएँ, चाउमीन, बर्गर, ब्रेड, पीजा, कुल्चे, भटूरे, चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक, नाना प्रकार की मिठाइयों जैसे मृत भोजनों ने हमारे शरीर को रुग्ण एवं जर्जर कर दिया है। इतना ही नही फलों में कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव, हरी साग-सब्जियों में टीकाकरण, दूध में यूरिया, घी में मृत जानवरों की चर्बी, उस पर दूषित जल, प्रदूषित वायु- अपनी मौत के समान मनुष्य स्वयं ही तैयार कर रहा है।  


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