पुस्तकों में सरदार पटेल

लाैहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माता के रूप में सरदार पटेल की भूमिका निर्विवाद है। प्रख्यात कवि हरिवंशराय बच्चन ने पटेल को कठोर किन्तु सत्य बोलनेवाला और हिंदी की जबान निरूपित किया है।



सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद नामक स्थान पर झवेरभाई पटेल एवं लाडबा के चतुर्थ पुत्र के रूप में हुआ था। उनके बड़े भाई सोमाभाई, नरसी भाई और विट्ठलभाई से उन्हें अपार स्नेह प्राप्त हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशालाओं में हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की। अध्ययनशील प्रवृत्ति के कारण वह निरन्तर स्वाध्यायरत रहे। लन्दन में रहने के कारण प्रारम्भ में उनके रहन-सहन और उनकी वेषभूषा पर पाश्चात्य प्रभाव था। प्रारम्भ में वह फौजदारी वकालत करके धन अर्जित करना चाहते थे। गाँधी जी से मिलने के पहले तक वह गुजरात क्लब में ब्रिज खेलते हुए अपनी शामें बिताते थे; क्योकि सरदार पटेल ब्रिज के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे।


गाँधी जी के सम्पर्क में आने के बाद सरदार पटेल की विचारधारा में आमूलचूल परिवर्तन हुआ। खेड़ा-सत्याग्रह (1918) में सरदार पटेल और गाँधी जी ने प्राकृतिक आपदाओं को झेल रहे किसानों का साथ दिया और उन्हें ऐसी कठिन परिस्थिति में कर न देने को प्रेरित करके किसानों के इस आंदोलन । का नेतृत्व किया। अन्ततः अंग्रेज़ सरकार को झुकना पड़ा। इस प्रकार खेड़ा-सत्याग्रह में सरदार पटेल को पहली बड़ी सफलता मिली और 'सरदार' की उपाधि भी। इसके बाद पटेल को बारडोली सत्याग्रह में सफलता मिली। देशी रियासतों के एकीकरण का कार्य जिस कौशल से सरदार पटेल ने किया, उसका कोई दूसरा उदाहरण पूरे विश्व इतिहास में नहीं है। 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी। जूनागढ़ और हैदराबाद के रियासतों के विलय में उन्हें अधिक परिश्रम करना पड़ा। काश्मीर के मसले पर नेहरू से उनका मत-वैभिन्य था। सरदा पटेल काश्मीर में जनमत-संग्रह और इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने के विरोध में थे। स्वतंत्र भारत के उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये।


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