सरदार

हिदी-सिनेमा में महत्त्वपूर्ण लोगों के जीवन-चरित्र पर केन्द्रित फिल्मों का निर्माण किया गया है। इस श्रृंखला में 1993 ई. में निर्मित 'सरदार' फिल्म एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इस फिल्म में भारत के महान् स्वाधीनता सेनानी, समाज-सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, इतिहास- निर्माता और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए सदा समर्पित रहनेवाले स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर विशेष रूप से प्रकाश डालने का सफल प्रयास किया गया है। निर्माता एच.एम. पटेल, निर्देशक केतन मेहता, पटकथा-लेखक विजय तेंदुलकर-जैसे लोगों की टीम ने परिश्रमपूर्वक सरदार पटेल के जीवन के अन्तिम पाँच वर्ष (1945 से 1950) के अविस्मरणीय कार्यों को उजागर करने का सराहनीय एवं प्रशंसनीय दिम उठाया। फ़िल्म में सरदार पटेल को वकील के रूप में आधुनिक रंग-ढंग से दिखाया गया है। बड़े भाई द्वारा महात्मा गाँधी से परिचय कराने और गाँधी का भाषण सुनने के बाद वल्लभभाई पटेल की धारणा बदल गई और वह गाँधी के अनुयायी हो गये। इसके बाद उन्होंने गुजरात में कई सत्याग्रह-आन्दोलनों का सफल नेतृत्व किया। इससे वह लोगों में प्रसिद्ध हो गये। उनकी चर्चा बारडोली- सत्याग्रह (1927-28) से हुई। परतंत्र देश के ग्रामीण, अंग्रेजों के अत्याचार से पीड़ित थे। ग्रामीण मूकदर्शक बने रहते थे। उनको अपनी जमीन जब्त होने का डर लगा। इसके निदान के लिए वे वल्लभभाई के पास गये। वल्लभभाई पटेल ने ग्रामीण किसानों को अंग्रेज सरकार की स्वेच्छाचारिता के विरुद्ध आन्दोलन करने के लिए प्रेरित किया। इस आन्दोलन की सफलता के बाद वल्लभभाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि मिली। 



फिल्म में वायसराय एक बैठक में सभी दल के नेताओं से देश की 40 करोड़ जनता की भलाई के निमित्त एकजुट होने की अपील करते हैं। मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान की मांग करते हैं। पंजाबी अलग सिख सूबा मांगते हैं। हरिजन नेता 6 करोड़ की एससी आबादी की उपेक्षा नहीं चाहते हैं। समस्या सुलझने के बदले उलझती नज़र आती है। कैबिनेट मिशन के बाद संविधान सभा में मुस्लिम लीग भी शामिल होना चाहती थी। जिन्ना को गुस्सा था कि 1937 के प्रांतीय चुनाव के बाद संयुक्त प्रांत में मुस्लिम लीग को शामिल नहीं किया गया था। त्रिस्तरीय प्लान को नेताओं के सामने प्रस्तुत किया गया। ऐसी राजनीति को परखकर सरदार पटेल ने दृढ़ निश्चय दिखाया। फिल्म में उनका यह संवाद महत्त्वपूर्ण है- “राजनीति असम्भव को सम्भव बनाने की कला है।'' कैबिनेट मिशन के 16 मई और 16 जून के प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद सत्ता सौंपने की प्रक्रिया होती। ग्रपिंग के सिद्धान्त का विरोध काँग्रेस में हो रहा था। मुस्लिम लीग और जिन्ना का रवैया उचित नहीं लग रहा था। अंग्रेजों ने तीन प्रस्ताव रखे- एक यूनियन हो, दो मुल्क हों, राजे-रजवाड़ों को अपनी इच्छा से किसी मुल्क में रहने की आज़ादी हो। उस समय विरोध के बावजूद दृढ़ निश्चयी सरदार पटेल ने कहा, ''लीग को सत्ता हथियाने से रोकना होगा और काँग्रेस को सत्ता में लाना होगा। सत्ता हमारे सामने है, हाँ करने की देर है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अंग्रेज़ अब यहाँ नहीं रहना चाहते।'' उन्होंने पं. नेहरू को भी समझाया कि सिर्फ सिद्धान्त के बल पर राजनीति नहीं हो सकती। स्थिति और समय की चाल को समझना होगा। फिल्म में गाँधीजी और नेहरूजी पर फोकस किया गया है। उठा-पटक के बाद संविधान बनाने की कार्यवाही शुरू हो गयी। 


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