उदात्त जीवन-मूल्यों के प्रेरक

वल्लभभाई ने भारत के उन मूल्यों का पहले स्वयं आचरण किया, जिनसे भारतको नैतिक रूप से सुदृढ़ बनाया जा सके। वस्तुतः वह भारत की आत्मा थे, अतः देश की प्रत्येक धड़कन को अनुभव करते थे। ‘सादा जीवन उच्च विचार' भारत की एक उत्कृष्ट जीवन-पद्धति रही है। यह श्रेष्ठतम जीवन का आदर्श है। संतुष्टिपूर्ण जीवन आदर्श जीवन-दृष्टिकी राह है। अतः वे इस सूत्र को अपने व्यवहार में लाये।


सरदार वल्लभभाई पटेल भारत की ऐसी विभूति थे, जिन्होंने एक युग का निर्माण किया। वह भारत के आर्थिक, सामाजिक मूल्यों एवं राजनीतिक परिस्थितियों से भली-भाँति परिचित थे। उन्हें इस बात का भली-भाँति ज्ञान था कि ‘सोने की चिड़िया' कहा जानेवाला भारत किन कारणों और परिस्थितियों से गुलामी, निर्धनता और पतन के अतल में पहुँचता चला गया। वह ऐसे प्रकाश-स्तम्भ थे, जिन्होंने दासता और बुराइयों के गहन अंधकार में सैकड़ों वर्षों से डूबे राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त किया। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। वह क्षत्रिय लेवा जाति के थे। इस क्षत्रिय जाति को भगवान् श्रीराम के पुत्र लव का वंशज माना जाता है। सादा जीवन, कर्मठता और उच्च विचारों के पारिवारिक संस्कारों और वंश- परम्परा ने उनके व्यक्तित्व के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। दूरदर्शिता, साहस, अडिगता, संघर्ष-शक्ति, सहनशीलता, कर्मठता, सदाचरण, मानवता, राष्ट्रभक्ति और भारत की जनता से अदम्य प्रेम, आदि समन्वित गुणों ने उनके व्यक्तित्व का ऐसा निर्माण किया, जिनसे वे लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल बने। उन्होंने ऐसे युग का निर्माण किया, जिससे उन्हें राष्ट्रीय कर्णधार के रूप में युग- युगों तक स्मरण किया जाएगा। यदि वह भारत के प्रधानमंत्री होते और उनकी नीतियों और दिशा-दृष्टि का अनुपालन किया गया होता, तो आज भारत का स्वरूप और स्थिति कुछ और ही होती, इसमें कोई संदेह नहीं है।



सादा जीवन उच्च विचार 


भारत में सामाजिक और नैतिक मूल्यों के शिथिलीकरण के कारण राजनीतिक मूल्यों का ह्रास हुआ, सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस बात को बड़ी गहराई से समझा। भारतीयों का व्यक्तिगत स्वार्थ, अनैतिकता, जातीय अहंकार, द्वेष, विलासिता और आलस्य-जैसे कुसंस्कार भारत के समग्र पतन का कारण बने। श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करते हैं, वे जो कुछ प्रमाण कर देते हैं, समस्त लोक (मानव समुदाय) उसी के अनुसार व्यवहार करता है-


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।


स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते (3.21)


लोक में प्रचलित 'यथा राजा तथा प्रजा' की कहावत भी प्रसिद्ध है। अतः उन्होंने भारत के उन मूल्यों का पहले स्वयं आचरण किया, जिनसे भारत को नैतिक रूप से सुदृढ़ बनाया जा सके। वस्तुतः वह भारत की आत्मा थे, अतः देश की प्रत्येक धड़कन को अनुभव करते थे। ‘सादा जीवन उच्च विचार' भारत की एक उत्कृष्ट जीवन-पद्धति रही है। यह श्रेष्ठतम जीवन का आदर्श है। संतुष्टिपूर्ण जीवन आदर्श जीवन-दृष्टि की राह है। अतः वह इस सूत्र को अपने व्यवहार में लाये। उनके सादे जीवन ने लोगों को सहज ही आकर्षित कर उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया। वह स्वयं खादी का कुरता और धोती पहनते थे। जब उनका कुरता कुछ पुराना हो जाता था, तो वे उसे अपनी सुपुत्री मणि बेन के पास भेज देते थे। वह उसमें से अपना ब्लाउज बनाकर पहन लेती थीं। इसका उनके एक साथी नेता को पता चला तो उन्होंने सरदार पटेल से कहा कि आप देश के इतने बड़े नेता हैं, देश के उपप्रधानमंत्री हैं, फिर आपकी पुत्री ऐसा क्यों करती हैं, पुराने कपड़े के ब्लाउज सीकर पहनती हैं? इसे सुनकर सरदार पटेल ने उत्तर दिया कि मणि बेन देश के एक गरीब किसान की बेटी है। यदि वह ऐसा करती है तो इसमें बुराई क्या है? इसे  सुनकर वह सज्जन निरुत्तर हो गये। कारण बड़ा स्पष्ट-सा है, नेता का चारित्रिक बल और नैतिक दिशा-दृष्टि ही देश की जनता का सही मार्गदर्शन कर सकती है। वितयनाम के राष्ट्रपति हो-ची मिह्न का उदाहरण हमारे सामने है। वह अपने पहनने के लिए कपड़े स्वयं सीते थे। उनके सादा जीवन और नैतिक बल के कारण ही वियतनाम, अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश से बारह वर्ष तक लोहा लेता रहा। सरदार पटेल चाहते थे कि देश का प्रत्येक व्यक्ति चारित्रिक और नैतिक रूप से सुदृढ़ हो। समाज के अग्रणी लोगों की विलासिता और आडम्बरपूर्ण जीवन ने देश को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है। उनका अनुकरण कर भारतीय कहाँ तक पहुँच गए। देश की यह स्थिति उन्हें पीडित करती थी।



‘सादा जीवन उच्च विचार' के समर्थक होते हुए भी वह ‘कूपमण्डूकता के पक्षधर नहीं थे। जब वह बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गए तो उन्होंने पश्चिम के उस समाज और न्याय-व्यवस्था को जानने का भी प्रयास किया, जिससे इंग्लैण्ड विश्व के अनेक देशों पर राज कर रहा था। सर्वप्रथम उन्होंने इंग्लैण्ड के न्यायालयों में जाकर उनकी न्याय-व्यवस्था और कार्यप्रणाली को देखने और समझने का प्रयास किया। साथ ही वहाँ की न्यायालयी कार्रवाइयों को देखकर अंग्रेजों की न्याय-व्यवस्था की विभिन्न बारीकियों को जाना। इसके अतिरिक्त उन्होंने इंग्लैण्ड के सामाजिक परिवेश की गहराइयों तक जाने का प्रयास किया। उनके बीच में जाकर उन्होंने यह जाना कि इंग्लैण्ड के निवासी अपने अधिकारों के प्रति कितने जागरूक हैं। उन्हें अपने अधिकारों का तनिक भी हनन सहन नहीं है। पश्चिमी समाज मानव अधिकारों को कितना महत्त्व देता है। परंतु उसके चरित्र के दोहरे व्यवहार ने सरदार पटेल को अत्यन्त व्यथित किया; क्योंकि जो अंग्रेज इंग्लैण्ड में रहकर मानव-अधिकारों को महत्त्व देते थे, वह भारत में आकर कितने निरंकुश और मानव-अधिकारों का निर्ममता से हनन करनेवाले हो जाते हैं। उनके तौरतरीकों को समझने के लिए, उसमें सहज रूप से विचरण करने के लिए उन्होंने अंग्रेजी खान-पान और पहनावे को अपनाया। भारत हो या इंग्लैण्ड, उस समय ऐसी ही जीवन-शैली का आदर होता था और बैरिस्टर-जैसी व्यावसायिक सफलता के लिए यह आवश्यक भी था। परन्तु इससे अधिक ऐसा करके पटेल इंग्लैण्ड के सामाजिक परिवेश में प्रवेश करने में सफल हुए। उन्होंने खेड़ा के सत्याग्रह के समय इस वेश-भूषा का परित्याग कर दिया तथा खादी का कुरता-धोती उनका पहनावा हो गया।


आगे. ..