जहाँ खामोशी बोलती है.... मणिकर्ण

नामकरण के पीछे चाहे जो भी तथ्य रहा हो, यह तो सर्वविदित है कि ईश्वर में आस्था रखने वाले को प्रकृति की इस अनमोल देन में ईश्वर का साक्षात दर्शन होता है-द्रुमों की कतार को चीरती किरणों में, बफीर्ली पहाड़ियों के पीछे डूबते सूरज में, पार्वती नदी की उफनती धाराओं में या फिर घनघोर वन में तपस्या में लीन मुनियों में। ऐसा सम्मोहन केवल भगवान ही पैदा कर सकते हैं। यहीं पर करीब ११००० वर्ष पुराना शिव मंदिर है। मणिकर्ण के मंदिरों में राम मंदिर का विशेष उल्लेख है।


यादों के दस्तगाह में लम्हों के मोती हैं। हर लम्हा कुछ सीख देता है। यहाँ जिस अविस्मरणीय लम्हे की बात हम करेंगे उसे याद कर आज भी मन सुकून से भर जाता है और रोमांचित हो जाता है। यूँ तो सूर्यास्त उगते सूरज का संदेश होता है, पर यह सूर्यास्त कुछ ऐसा था जिसे देख कर लगता था कि पृथ्वी अपना भ्रमण रोक दे और मैं बफीर्ती चोटियों के पीछे छुपते सूरज और पहाड़ों से टकरा कर बिखरने वाले सातों रंगों को आँखों में बसा लँक्या विलक्षण नजारा था! घने जंगलों से आच्छादित घाटियाँ, जिनके पीछे सफेद गगनचुम्बी चोटियाँ जिन पर मेष की आकृति वाला मेघ किलोलें करता था और नीचे बहती सफेद धाराओं में निहुरता आकाश। मानो कोई अलग ही दुनिया हो। ओधिसा का झारसुगुडा प्रान्त अपनी चिलचिलाती गर्मी के कारण विख्यात है.. वर्षों से हमारा वहीं बसेरा है। धरा की आग से बचने के लिए हमने पर्वतीय स्थल में कुछ दिन बिताने का निर्णय लिया और फिर शुरू हुआ इन्टरनेट पर होटलों की तलाश और कम समय में आराम से वहाँ पहुँचने का जरिया। सभी कुछ फटाफट हो गया। बच्चों ने यह जिम्मेवारी ले ली थी। शिमला, कुल्लू और मनाली के साथ-साथ रोहतांग की यात्रा भी सुखद और यादगार रही। ज्यादातर यात्री इन्हें देख कर लौट जाते हैं। पर हमने मणिकर्ण जाने का फैसला किया। यह स्थान कुल्लू से ४५ किलोमीटर दूर है। कुल्लूमनाली की यात्रा में व्यास नदी ने रास्ते भर हमारा साथ दिया। जब मन हुआ गाड़ी रुकवा कर रिवर राफ्टिंग का मजा लिया और जब मन हुआ वहाँ की नैसर्गिक सुदरता को कैमरे में समेट लिया।



मणिकर्ण में पार्वती नदी हमारी हमसफर बन गयी। व्यास और पार्वती नदी के संगम पर बसा यह एक महत्त्व पूर्ण नगर है, जिसके बारे में पर्यटकों को कम ही पता है। भुंतर पार्वती घाटी का प्रवेश-द्वार है। रास्ते में कसोल घाटी भी आती है जहाँ मलाना संस्कृति विद्यमान है। चारों ओर चीड़, अनार, सेब आदि फलों के पेड़, तेजी से उठती पहाड़ियाँ, प्रदूषणरहित जलवायु तथा स्वच्छ जलधारा इस देवनगरी को मनोरम बनाते हैं। कसोल होते हुए दोपहर में हम मणिकर्ण पहुँचे जो कसोल से ४ किमी की दूरी पर बसा हुआ है। पार्वती नदी के दाहिनी ओर बसे मणिकर्ण पहुँचने के लिए दो पूल पार करने होते हैं। यहाँ इसकी धारा बेहद तीव्र हो जाती हैकौन जाने यह उसका रोष रूप है या प्रेम रूप। कहाँ से इतनी खूबसूरती समेटी हुई है यह धरती? आकाशलोक में केवल एक स्वर्ग है पर धरती की बंद परतों को झांके तो अनेक स्वर्ग मिलेंगे। तन्हाई को किसने देखा है? यह तो महसूसने की चीज है लेकिन मणिकर्ण आ कर देखें, शरीर तन्हाई दिखाई देगी। 


पुरानी कहावत के अनुसार एक दिन पार्वती जी इस स्थान पर जलक्रीड़ा कर रही थीं। तभी उनके कान की मणि गिर गयी जो पृथ्वी पर न टिक कर पाताललोक में मणियों के स्वामी शेषनाग के पास पहुँची। शेषनाग ने उसे अपने पास रख लिया। शिवजी के गणों ने सब ओर ढूँढा पर मणि नहीं मिलीक्रोधवश शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला जिससे प्रलय आने लगा। तब शेषनाग ने जोर से फुकारा और पार्वती की मणि को जल के बहाव के साथ पृथ्वी की ओर फेंका। इसलिए इस स्थान का नाम मणिकर्ण पड़ा। जल को विष्णु और शिव को अग्नि का रूप माना गया है।


नामकरण के पीछे चाहे जो भी तथ्य रहा हो, यह तो सर्वविदित है कि ईश्वर में आस्था रखने वाले को प्रकृति की इस अनमोल देन में ईश्वर का साक्षात दर्शन होता है- द्रुमों की कतार को चीरती किरणों में, बफीर्ती पहाड़ियों के पीछे डूबते सूरज में, पार्वती नदी की उफनती धाराओं में या फिर घनघोर वन में तपस्या में लीन मुनियों में। ऐसा सम्मोहन केवल भगवान ही पैदा कर सकते हैं। मणिकर्ण में गर्म पानी के चश्मे जगह-जगह निकलते हैं जो चट्टानों के नीचे से निकलते हैं और भारी दबाव के कारण ऊपर की और आते हैं। प्रवाह स्थल पर कठोर पपड़ी की परत मिलती है जो काबोर्नेट की उपस्थिति का प्रमाण है। यहाँ पानी का तापमान ८८ डिग्री से ९४ डिग्री सेल्सियस तक है। इनमे पोटली में बाँध कर चावल और दाल रख कर लोग पकाते हैंऔर प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करते हैं।


मणिकर्ण में नौ शिवमंदिर पहले भी थे और अब भी हैं। यहीं पर करीब ११००० वर्ष पुराना शिव मंदिर है। प्रवेश द्वार के सामने शिवलिंग स्थापित है। पृष्ठ भूमि में शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंदिर के नीचे एक बंद कमरा है जिसमे गर्म पानी के चश्मे हैं और नहाने की सुविधा है। इस उबलते जल को शिव का रूद्र रूप माना गया है। दन्त कथा के अनुसार इसी स्थान पर शेष नाग द्वारा पाताल लोक से उछाली गयी कर्ण मणि प्रकट हुई थी। मणिकर्ण के मंदिरों में राम मंदिर का विशेष उल्लेख है। यह शिखर शैली का मंदिर है जिसके ऊपर स्लेट की छत है। इसे राजा जगत सिंह ने १६५३ ईस्वी में बनवाया था। मंदिर परिसर के साथ एक खुला तालाब है जिसमे केवल पुरुष स्नान कर सकते हैं। हनुमान मंदिर, नयना भगवती मंदिर, कृष्ण मंदिर और रघुनाथ मंदिर भी आस्था के केंद्र हैं। रघुनाथ मंदिर में कमलासन पर विष्णु जी विराजमान हैं। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर एक ठन्डे पानी की वाबली है। पूरे मणि कर्ण में सिर्फ यहीं पर ठंडी जल वाबली मिलती है, बाकी सभी जगहों में गर्म जल के चश्मे हैं पार्वती की ठंडी धाराओं के नीचे या बगल में अगर गर्म चश्मे का मुँह मिलता है तो सारा वातावरण इस मेल से धुंआ-धुंआ हो जाता है। एक से डेढ़ दिन इन मंदिरों को घुमने के लिए काफी हैं


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