वर्तमान राजनीति में गिरते मूल्य का कारण एवं समाधान-एक समीक्षा

भारत की ज्वलंत समस्या है, नैतिकता में हास विशेषतः राजनीति है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान युग राजनीतिक विकास का युग रहा है। श्रीकृष्ण से लेकर चाणक्य विदुर और अशोक तथा स्वतत्रंता पूर्वे से पश्चात् तक बदलते परिवेश में राजनीति ने भी अपना स्वरूप बदला हैं। राजनेताओं का चिंतन कार्यशैली या दायित्वो में समय के साथ परिवर्तन हुआ है समाज सेवा देश सेवा से विश्व सेवा की भावना लेकर चलने वाले जनप्रतिनिधियों ने अपने रूप बदले, चोले बदले और विचार और कार्यशैली में भी परिवर्तन किये व राजनीति को विरासत समझने वाले भी आये और स्वसंघर्ष एवं जनपसंद बन राजनीति को लक्ष्य बनाने वाले लोग भी अवतरित होते रहे। राष्ट्र भक्ति जनसेवा कब स्वयं सेवा और परिवार केन्द्रित बनने लगा हम समझ ही नहीं पाये राजनीती त्याग-तपस्या-बलिदान के स्थान पर स्वार्थ स्वयंभू और सत्तालोलूपता बन गयी इसके जिम्मेदार कौन है नेता, जनता या परिस्थितियाँ? इस पर एक दृष्टिपात करने की जिज्ञासा और जड़े खोदने की आतुरता ने मुझे यह विषय दिया हम कहाँ से चले थे। किन-किन रास्तो से गुजरकर वर्तमान में कहाँ हैं चाहे विश्व राजनीति की बात करें भारतीय राजनीति या स्थानीय की, पूरे विश्व में राजनीति एक समस्या क्यों नजर आने लगी समझना आवश्यक है। समझना ही नहीं वरन उस कैंसर की जड़े खोजना एवं निदान करना अति आवश्यक है।


इसके लिये हमने देश के कुछ वरिष्ठ विद्वान एवं जागरूक व्यक्तियों से चर्चा की एवं उनके विचारे ओं द्वारा इस परिचर्चा का उद्देश्य सफल करने का प्रयास कर रही हूँ।


इंदौर (म.प्र.) निवासी भारत के जाने माने इतिहासकार एवं कालमर्मज्ञ नर्मदाप्रसाद उपाध्यायजी का उस विषय पर कहना है कि विगत कई दशको से राजनीतिकी स्थिति में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है, वरन नई तकनीकियों के कारण विकृतियाँ औ जन्मी है। मेरी पीढ़ी के राजनीतिज्ञों ने निराश किया है। किन्तु कुछ समय से जो आशास्पद स्थिति बनी है कहीं वह भी दिया स्वप्न न बन जायें। पतन का कारण हमारा स्वयं का मूल्यहीन होना हैहम अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए तदर्थ हल खोज लेते हैं मूल्य आधारित विकास की अवधारणा हमारे लिये हमारे चरित्र में नहीं रही एवं दूसरों पर दोषारोपण हमारी आदत बन चुकी है। हम आत्म विश्लेषण करना ही नहीं चाहते। सुझाव की बात पर उनका मानना है कि जबतक हममे गुणात्मक सुधार नहीं होगा तब तक हम समाज में उदाहरण नहीं बनेंगे। सुधार संभव नहीं है स्वच्छ राजनीतिज्ञों का चयन निःस्वार्थ योगदान स्वयं तथा समाज की जागरूकता आवश्यक है राजनीति में खुले विचार रखें हैं। यह हमारा क्षेत्र नहीं है यह न कहें वरन हमारी सेवा भावना सक्रियता ही राजनीति के अवमूल्यन में सकरात्मक बदलाव ला सकता हैं।



मीरा स्मृति प्रतिष्ठान के निदेशक एवं चित्तौड़ (राजस्थान), वरिष्ठ संपादक 'मीरायन' के एस.एन. समदानी जी के राजनीति के अवमूल्यन पर वेहद स्पष्ट विचार है। पहले राजनीति में ‘नीति' प्रमुख थी अब ‘राज' प्रमुख हो गया है। नीतियों को राजनीतिज्ञ भूल गये हैं केवल राज ही रह गया जिसके लिये कितने ही मूल्यों की अवहेलना करना पड़े। आजादी के पश्चात् से ही ‘मूल्यप्रधान भारत' मूल्यविहीन होता गया। इसका प्रमुख कारण जो समदानी जी मानते हैं संविधान की गलत व्याख्या है जो कर्तव्य प्रधान लोकतंत्र होना चाहिये था वह अधिकार प्रमुख लोकतंत्र में परिवर्तित कर दिया गया है वहीं से अवमूल्यन आरंभ हुआ। आजादी के पहले एक ही लक्ष्य था स्वतंत्रता। वह बाद के दशकों में स्वछंदता में बदल गयाइस अवमूल्यन से बचाव करना है तो छोटी उम्र से ही मूल्य प्रधान शिक्षा प्रदान की जाना चाहिये। परिवार समाज एवं देश का वातावरण मूल्य आधारित होना चाहिये हम नैनिकता का आचारण करें अधिकारों की चर्चा न करके कर्तव्यों पर बल दें बिना चिंतन एवं निर्णय किये मिलने वाले अधिकार देश में विकृति पैदा कर रहे हैं इसमें सुधार तभी संभव है जब संविधान एवं व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन किये जाये। नवीन पुनः विचार और पुनः निर्माण की आवश्यकता हैं। समाज हित देशहित में कठोर नियम सजा का प्रावधान एवं उन पर कठोरता से पालन अतिआवश्यक हैं। जिस देश की संस्कृति सभ्यता का अनुसरण विश्वकरता आ रहा है उसे देश के नेताओं का विजन ऐसा होना चाहिये कि हमारे रीति-रिवाज संस्कृति परंपराओं का पुनः मूल्य निर्माण हो सके और भारत पुनः सांस्कृतिक देश कहलाने लगे।



सांस्कृतिक पत्रिका 'आदिज्ञान' के मुख्य संपादक मुंबई (महाराष्ट्र) निवासी जीतसिहं जी चौहान के विचार में भी वर्तमान राजनीति के अवमूल्यन का कारण नैतिकता का ह्यस होना है। भारतीय राजनीति का गिरता स्तर चिंता का विषय है। सैद्धांतिक रूप से लगभग समस्त राजनीतिक व्यक्तियों की भाषा का स्तर निम्न होता जा रहा है। असंसदीय भाषा, भावों, आलोचना और अपशब्दों का प्रयोग व्यक्तिगत आक्षेप, राजनीतिक मर्यादा का खत्म कर रहा है। राजनीति के कारण शिक्षा, चिकित्सा, सेवा आदि सभी क्षेत्रों का स्तर गिर रहा हैइसका कारण अपराधी किस्म के व्यक्तियों का राजनेता बनना भ्रष्टाचार, घृणित राजनीति क्षेत्रवाद, जातिवाद का बढ़ना है। यह आने वाले समय के लिये घातक सिद्ध होगा इसे रोकने के लिए आवश्यक है कि उम्मीदवार की पृष्ठभूमि की जाँच हो एक ही स्थान से चुनाव लड़ने की बाध्यता हो, अपराधी या अयोग्य व्यक्ति को अवसर न दिया जाये। संस्कारी और शिक्षित व्यक्तियों को ही चुनाव लड़ने का अवसर दिया जाये तथा सरकारी संस्थाओं को स्वतंत्रता दी जाये। तब ही हम नैतिकता को राजनीति में पुनः प्राप्त कर सकेगे।


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