दूर्गीकरण के पारिभाषिक शब्द

दुर्गों में युद्धकालीन प्रयोग के लिये बुर्जा पर जो स्थान बनाये जाते थे, उन्हें 'कंगूरा' कहा जाता था। किले के चारों तरफ बनी खाई के लिये “खन्दक' शब्द इस्तेमाल किया जाता था। यह शब्द इसी अर्थ में आज भी प्रचलित है दुर्ग के लिये 'फसील' शब्द का प्रयोग भी होता था, अर्थात् किसी दुर्ग के भीतर बना लि उस प्लेटफार्म के लिये किया जाता था, जो किले की भीतरी दीवार के चारों और बना रहता था और जिस पर तोपें रखी जाती थी।



दुर्ग और दुर्गीकरण या किले और किलेबन्दी के विषय में अध्ययन करते समय इस संबंध में कुछ पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख विभिन्न संदर्भो में हुआ है। मध्यकाल में दुर्ग के समानार्थी के रूप में जो शब्द प्रचलित थे उनमें हिंसार, हसीन कल या किल और हिन्दी शब्द गढ़। छोटे किलों को, जो मुख्य किले के आसपास या मार्ग में बनाये जाते थे, 'कलाच' या 'गढ़ी' कहा जाता था। जो गढ़ घेरा जाता था उसे 'महसूर मह सुन शुदन' तथा घेरा डालने को 'मुहसिरा कर्दन' कहते थे। दीवारों को सामूहिक रूप से 'बुर्ज व वार' कहा जाता था। बुर्ज मीनार को कहा जाता था। वार या बाड़ा का अर्थ था, दीवार या परदा। किले की चहारदीवारी के लिये मध्य एशिया में 'बदन' शब्द का प्रयोग किया जाता था। दुर्गों में युद्धकालीन प्रयोग के लिये बुर्जा पर जो स्थान बनाये जाते थे, उन्हें 'कंगूरा' कहा जाता था। किले के चारों तरफ बनी खाई के लिये 'खन्दक' शब्द इस्तेमाल किया जाता था। यह शब्द इसी अर्थ में आज भी प्रचलित है। दुर्ग के लिये 'फसील' शब्द का प्रयोग भी होता था, अर्थात् किसी दुर्ग के भीतर बना हुआ मोर्चा या दीवार। परन्तु विलियम इरविन के मतानुसार इस शब्द का प्रयोग उस प्लेटफार्म के लिये किया जाता था, जो किले की भीतरी दीवार के चारों और बना रहता था और जिस पर तोपें रखी जाती थी या जिससे भीतरी सेना प्रतिरक्षा के लिये गोलियाँ छोड़ती थी। लेक और वायल के अनुसार वह शब्द यूरोपियनों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले फसील शब्द का समानार्थी है। शेक्सपियर के अनुसार 'सफील' शब्द इसी 'फसील' शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है। अशाव ने फोलियों 284-ए में शाहजहानाबाद के 'छत किला' का उल्लेख किया है। विलियम इरविन के मतानुसार संभव है कि शब्द छत के लिये ही प्रयोग किया गया हो। एक शब्द 'रबाफरेज' का उल्लेख किया गया है जिसका अर्थ हैदीवार या पैर या निचला सिराइरविन ने ऐसा मत व्यक्त किया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दुस्तान में इस शब्द का प्रचलन नहीं हुआ था। एक शब्द 'गंगा' है, संभवतः लेखकों ने इस शब्द का प्रयोग नहीं किया है केवल यूरोपीय लेखकों ने अपनी पुस्तकों में इस शब्द का प्रयोग किया है। हो सकता है वह शब्द 'कंगूर' का ही अपभ्रंश हो। मिलिट्री मेमायर्स ऑफ कर्नल रिकनर ने दिसम्बर 1807 में हाँसी किले में युद्ध का वर्णन करते समय एक स्थान पर लिखा है कि “हमने खोदना शुरू किया और उस स्थान से 10 गज की दूरी पर पहुँचें जिसे हिन्दुस्थानी में 'गूगास' कहा जाता है'' इसी पुस्तक में उसीशब्द को 'गुन्जू' लिखा गया है। लिखा गया अंश इस प्रकार है-मैंने उन बहादुर सिपाहियों को पूरे घण्टे भर 'गुन्जुओ पर खड़े रहते देखा है, जबकि चारों और से बन्दूकें एवं वड़ी तोपे अग्निवर्षा कर रही थी। यह उस समय का वर्णन है जब 1803 में लेक ने अलीगढ़ परघेरा डाला था। इसी तरह 'कमरगाह' शब्द का प्रयोग ब्लेकट ने दक्षिण भारत स्थित असीरगढ़ की सेना की पिछली रक्षक पंक्ति के लिये किया है। यह संभवतः उपमा के रूप में प्रयोग किया गया है। वैसे इसका शाब्दिक अर्थ है, वह स्थान जहाँ पेटियाँ बाँधी जाती हैं। जैसाकि लेक ने उल्लेख किया है कि इसे उचित रूप से 'कुमुरगाह' अर्थात् 'पेटी' कहा जाता है।



रोनी रैनी या रेन्नी शब्द के संबंध में फिटूजक्लेटेन्स ने अपनी पुस्तक के पृष्ट 110 में लिखा है कि उसने दीवार के निचले भाग को ढकने वाले बरगदनुमा स्थान की एक खुबसूरत कारीगरी को देखा जिसे इस देश में रैनी' कहा जाता है। इसी पुस्तक के पृष्ट 245 पर वह फिर लिखता है कि यद्यपि वे नहीं जानते कि फसीले की बनावट कैसी होती है और इससे क्या लाभ होते हैं, परन्तु इतना तो वे जानते थे कि दुश्मनों की गोलाबारी से बचने के लिये दीवार के निचले हिस्से को ढके रहना जरूरी है और इसीलिए वे प्रतिरक्षा के लिये एक प्रकार का मोर्चा बनाते थे, जो कि बहुत अंशों में युरोपियनों से मिलता-जुलता है, इसे 'रैनी' कहा जाता था। थार्न (पृ. 400 में) हाथरस के किले (जो कि अलीगढ़ जिले में है) का वर्णन करते हुए कहता है कि रैन्नी दीवार जिसके पीछे एक गहरी, चौड़ी और सूखी खन्दक है किले को घेरे हुए है। जान स्किनर ने अपने मिलिटरी मेमायर्स भाग 1 में इसे “रौनी' लिखा जाता है। फ्रेजर ने भ्रमवश इसका अर्थ बताया है सामना करने वाला जो कि यूल के अनुसार उतना ही गलत हैजितना मूर्खतापूर्ण। इरविन के मतानुसार रिकनर ने इन शब्दों में रोनी या रैनी की ओर ही संकेत किया है। उसने प्लेट 31 पर मल्ली गाँव की बनावट की योनना का जो नक्षा दिया है, उसमें इस प्रकार की एक दीवार प्रदर्शित की गयी है। इसकी ऊँचाई लगभग 20 फीट थी और मुख्य दीवार से लगभग 50 फीट की दूरी पर स्थित थी। फैला.. इस शब्द का अर्थ 'धुस या मिट्टी पुश्तह' बतलाया है। 'संग-अंदाज' शब्द का प्रयोग बदायूँनी ने सूरत के किले का वर्णन करते समय किया है। स्पष्टतः इसका अर्थ है सूराख और यही अर्थ लोवे ने भी पृ. 150 में दिया है। स्टीन गैस के अनुसार संग अंदाज या संग अफगन किलो में बने हुए छेदों को कहा जाता था जिनमें से बन्दूकची और तोपची भीतर से गोलाबारी करते थे। परन्तु मआसिर-उल-उमरा के एक अंश, जिसमें शाहजहाँ के शासन काल में दक्षिणी भारत के धारवाड़ पर हुए आक्रमण का वर्णन है, से प्रसंगानुसार ऐसा प्रतीत होता है कि संग अंदाज एक ऐसी सुरंग का नाम था जिसमें से किले के बाहर शत्रुओं पर पत्थर फेंके जाते थे। 'दमागाह' शब्द के लिये विलियम इरविन लिखते है कि जब हम अंग्रेजों ने सिन्धु पर अधिकार किया तो हमने पाया कि कराची एक लम्बी, दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें खूबसूरत पत्थर जड़े हुए थे और उसमें लम्बाकार थोड़ी-थोड़ी दूर पर नाक के आकार की रचना की गयी थी, जिसे पारसी लोग दमागहे कहते हैं जिनमें से गरम तेल या उबाला हुआ पानी दुश्मनों पर फेंका जाता था। अकबर द्वारा किये गये असीरगढ़ के घेरे में हमें गरम और उबाला हुआ तेल फेंके जाने का एक उदाहरण मिलता है।