बिरयानी मुफ्त में बंट रही है,
कही शराब कट रही है,
शायरी अदांज बिक जाते है
लोकतंत्र का मजाक उड़ाते
कई दिख जाते है,
जो अंदेशा लेकर मन में
वो सच में बहुत बड़ा है
लोकतंत्र का स्तम्भ
ना जाने कहाँ खड़ा है,
गरीब जनता की बेबसी
बिक रहे है।
बस झूठ और बेईमानी
अब दिख रहे है,
लोकतंत्र का नारा देकर
लोकतंत्र को मारा है
देखना अब चाहेगे
इस दलदल का
कहाँ किनारा है।