कुम्भलगढ़ किला : जिसकी दीवार पर दौड़ सकते हैं एक साथ दस घोड़े

राजपूताना शान की अनगिनत शौर्य गाथाओंसे जुड़ा राजस्थान का अजय किला कुम्भलगढ़ दुर्ग है जो विश्व धरोहर स्थल भी है जिसकी खूबसूरत प्राचीरों से एक तरफ तो मेवाड़ के रेत के टीलों का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है तो वही दूसरी तरफ पाली तथा राजसमंद जिलों के दूर-दूर तक फैले हुए मैदान हैं। कुम्भलगढ़ किला राजस्थान ही नहीं अपितु भारत के सभी दुर्गों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। उदयपुर से 70 कि.मी. दूर समुद्र तल से करीब 1017 मीटर ऊँचा और 30 कि.मी. व्यास में फैला अति विशाल दुर्ग का निर्माण मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने अपने वास्तु सलाहकार मंडन की देखरेख में करवाया



आपने 'द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना' के बारे में तो जरूर सुना होगा जो कि चीन में स्थित दुनियाँ की सबसे बड़ी दीवार है, पर यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि चीन की दीवार के बाद राजस्थान राज्य में एक दीवार ऐसी भी है जिसे विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार कहा जाता है। यह है 'कुम्भलगढ़ किले की दीवार' राजस्थान के राजसमंद जिले में अत्यंत मनमोहक अरावली पर्वत श्रृंखला की चोटी पर स्वर्णिम इतिहास तथा महाराणाओं की वीरता व शक्ति का एकमात्र गवाह स्थित है। राजपूताना शान की अनगिनत शौर्य गाथाओं से जुड़ा राजस्थान का अजय किला कुम्भलगढ़ दुर्ग है जो विश्व धरोहर स्थल भी है जिसकी खूबसूरत प्राचीरों से एक तरफ तो मेवाड़ के रेत के टीलों का अद्भुत दृश्य दिखाई देता हैतो वही दूसरी तरफ पाली तथा राजसमंद जिलों के दूर-दूर तक फैले हुए मैदान हैं। कुम्भलगढ़ किला राजस्थान ही नहीं अपितु भारत के सभी दुर्गों में अपना विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से 70 कि.मी. दूर समुद्र तल से करीब 1017 मीटर ऊँचा और 30 कि.मी. व्यास में फैला अति विशाल दुर्ग का निर्माण मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने अपने वास्तु सलाहकार मंडन की देखरेख में करवायाइस दुर्ग का निर्माण राजा ने सम्राट अशोक के दूसरे पुत्र सम्प्रति के बनाए दुर्ग के अवशेषों पर करवाया था। इतिहास साक्षी है कि इस दुर्ग के निर्माण में 15 साल (1443 -1458) लगे थे। किले का निर्माण पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के बनवाए थे जिन पर किला और इसका नाम अंकित था। कुम्भलगढ़ किले की विशाल दीवार जिसकी लम्बाई 36 कि.मी. है वहीं इसकी चौड़ाई 25 फीट तक है जिस पर एक साथ दस घोड़े दौड़ सकते हैं। दरअसल इस दीवार का निर्माण शत्रुओं से किले की चारों तरफ सुरक्षा के लिए किया गया थादुर्ग की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह किसी एक पहाड़ी पर बना हुआ नहीं बल्कि इसे कई घाटियों और पहाड़ियों को मिलाकर गढ़ा गया है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारतें बनाई गईं और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वहीं ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वावलंबी बनाया गया है। इस दुर्ग की विशाल दीवार के अंदर एक और गढ़ हैजिसे कटारगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुदृढ़ प्राचीरों से सुरक्षित हैकिले के अंदर प्रवेश के लिए सात द्वार जिसमें राम द्वार, पग्र द्वार, हनुमान द्वार आदि प्रसिद्ध हैंइस किले के भीतर कुल 360 मंदिर हैं, जिसमें 300 जैन मंदिर और 60 हिन्दू मंदिर सम्मलित हैं। इनमें से नीलकंठ महादेव मंदिर की मान्यता यहाँ सबसे अधिक है। मंदिर के पास ही यहाँ पर शाम के समय लाइट एंड साउंड शो दिखाया जाता है जिसमें बेहद खूबसूरती के साथ कुम्भलगढ़ किले के पूरे इतिहास के बारे में पर्यटकों को बताया जाता है। चारों ओर ऊँची-ऊँची अरावली पर्वतमालाएं, घोड़ों के दौड़ने और बंदूकों की गोलियों की आवाज शो के माध्यम से आज भी पर्यटकों को प्राचीन समय का आभास कराती है।


किले के शीर्ष पर बादल महल है जिसे 'बादलों के महल' के नाम से भी जाना जाता है। दो मंजिला महल का सम्पूर्ण भवन दो आंतरिक रूप से जुड़े हुए खण्डों, मदान महल और जनाना महल में विभाजित हैं। इस महल के कमरों की दीवारों पर हरे, फिरोजी एवं पीले रंगों से भित्ति चित्रों को उकेरा गया है। पुराने समय में महल के इस परिसर में ऐसी रचनात्मक वातानुकूलित प्रणाली निर्मित की गई थी जो आज भी देखने वालों को आश्चर्य में डाल देती है। इसमें पाइपों की एक श्रृंखला है जो इन सुन्दर कमरों को ठंडी हवा प्रदान करती है। पर्यटक जनाना महल में पत्थर की जालियों से बाहर का नजारा कैद कर फोटोग्राफी का आनंद उठाते हैंये जालियां रानियों द्वारा राजदरबार की कार्यवाही देखने के लिए काम में लायी जाती थीं।


कुम्भलगढ़ किले की दीवार को भेदना किसी भी शत्रु राजा के वश की बात नहीं रही। यहाँ तक की शहंशाह अकबर भी इसको जीत पाने में असफल रहा। एक बार मुगल आक्रमणकारियों ने किले में घुसने के लिए तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर इसमें जाने का गुप्त रास्ता पूछ लिया जिससे महिलाएं डर गईं और महल में प्रवेश का मार्ग बता दिया। फिर भी आक्रमणकारी अंदर आने में सफल नहीं हो पाए। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राजसिंह के काल तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राज परिवार इसी दुर्ग में रहा। महाराणा प्रताप का जन्म इसी किले में हुआ इसके अलावा पृथ्वीराज चौहान और महाराणा सांगा का बचपन भी यहीं बीता था। महाराणा उदयसिंह को भी पन्नाधाय ने छिपाकर इसी किले में उनका पालन-पोषण किया। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी किले में रहे। महान प्रतापी एवं वीर योद्धा महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका।


इस दीवार का निर्माण कार्य पूरा ही नहीं हो पा रहा था ऐसे में राजा चिंतित हो गए और उन्होंने एक संत को बुलाया व उनको पूरी समस्या बताकर समाधान पूछा। संत को सपने में देवी ने दर्शन दिए और उन्होंने संत को दीवार का निर्माण कार्य पूरा होने का रहस्य बताया। संत ने राजा को बताया कि देवी इस काम को आगे तभी बढ़ने देंगी जब स्वेच्छा से कोई व्यक्ति बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए तैयार होगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद इस बलिदान के लिए तैयार हैं और उन्होंने इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी। संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहाँ वो रुके वही उसकी बलि चढ़ा दी जाए। ठीक ऐसा ही हुआ और 36 कि.मी. तक चलने के बाद संत रुक गए। रूकते ही उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहाँ पर उनका सिर गिरा वहां किले का मुख्य द्वार हनुमान पोल है। और जहाँ पर उसका शरीर गिरा वहां पर किले का दूसरा द्वार है। संत के बलिदान के बाद राजा ने किले में देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।


दिल्ली से कुम्भलगढ़ 600 किलोमीटर दूर है जबकि मुम्बई से 850 तथा जोधपुर से यह 235 किलोमीटर दूर हैइसके सबसे करीब स्थित रेलवे जंक्शन उदयपुर तथा फालना दोनों 90 किलोमीटर दूर हैं। करीबी घरेलू हवाई अड्डा भी उदयपुर है।


(लेखक जानी-मानी वास्तुविद् हैं)1