शर्तिया इलाज का राज

शहर में दूर-दूर तक सौभाग्य क्लीनिक और उसके पास ही चमत्कारी बाबा की तारीफे सुन-सुन कर मेरा मन इनको पास के देखने और इनके बारे में जानने के लिए मचल उठा। मैं अपना सब काम-धाम छोड़कर निकल पड़ी। इन दोनों नेक नामी लोगों की विशेषता जानने के लिए।


शहर के एक मशहूर मोहल्ले के अंदर गली में सौभाग्य क्लीनिक का बोर्ड लगा है। दो कमरे में चलने वाली क्लीनिक में, पहले वाले कमरे में तीन-चार बेंचों पर दस-बारह मरीज डॉक्टर साहब से इलाज करवाने के लिए इंतजार में बैठे हुए हैं। डॉक्टर साहब के पास हर मर्ज का इलाज है, मरीजों की मरहम पट्टी, इंजेक्शन लगाने के साथ-साथ जब जरूरी होता है, तो ऑपरेशन करने में भी महारत हासिल है। डॉक्टर साहब का नाम बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा है तथा अंग्रेजी के छोटे अक्षरों में न समझ में आ सकने वाली डिग्री लिखी है। डॉक्टर साहब के पास एक मोटा सा रजिस्टर है जिस पर बीमारी और उसके आगे दवा का नाम आदि सब कुछ लिखा है। एक रजिस्टर में मरीजों से सम्बंधित ब्यौरा लिखा जाता है। डॉक्टर साहब के इलाज से जो अच्छा हो जाता हैवह खुश किस्मत और जो अच्छा नहीं होता वह बदकिस्मत। डॉक्टर साहब के बगल में एक बेहद काबिल और मशहूर खिदमतगार बैठे हुए हैं, जनाब चौबीस घंटे में हर तरीके की परेशानी को दूर करने का दावा करते हैं। हर प्रकार की तकलीफों को शर्तिया दूर करने का बोर्ड भी लगा रखा है। जो मरीज डॉक्टर की दवा से ठीक नहीं हो पाते वो चौबीस घण्टे में हर तकलीफ दूर करने वाले इस चमत्कारी व्यक्ति के पास पहुंच जाते हैं।



मैंने सौभाग्य क्लीनिक और चमत्कारी बाबा की कामयाबी का राज जानने की नीयत से आस-पड़ोस के एक बुजुर्ग व्यक्ति से जानकारी लेना चाही, क्या खास बात हैइन दोनों में? तब नाम ना बताने की शर्त पर बुजुर्ग साहब ने फरमाया- सौभाग्य क्लीनिक का डॉक्टर हाई स्कूल फेल हैऔर उसका कंपाउंडर शायद ही कक्षा छः पास हो। डॉक्टर साहब का पढ़ने-लिखने में बिल्कुल मन नहीं लगता था जैसे-तैसे आठवां पास किया, दो बार फेल होने के बाद कक्षा नौ पास हुआ। हाई स्कूल में जब वह लगातार तीन बार फेल हुआ तो उसने पढ़ने का इरादा ही छोड़ दिया। बेरोजगारी का मारा दर-दर भटकता था, फिर किसी झोला छाप बगैर डिग्रीधारी कम पढ़े लिखे मगर अच्छी तादात में मरीज आने वाले डॉक्टर के पास जाकर उसका शार्गिद बन गया। झोलाछाप डॉक्टर ने पाँच साल उससे भरपूर सेवा लेने के बाद उसे अपना आशीर्वाद दिया, डॉक्टर साहब ने अपने उस्ताद के पैर छूकर सौभाग्य कलीनिक की शुरूआत आज से दस साल पहले शुरू की थीमोहल्ले से सरकारी अस्पताल चार किलोमीटर दूर है इतनी दूर कौन इलाज करवाने जाए, इसलिए सभी मरीज सौभाग्य क्लीनिक जाने लगे। सौभाग्य क्लीनिक से जो मरीज ठीक नहीं हो पाता, वह पास में ही जमे चौबीस घण्टे में शर्तिया तकलीफ दूर करने वाले के पास पहुंच जाता, पर होता यह कि- एक तकलीफ दूर होती तो दस तकलीफें नयी पैदा हो जाती, इस तरह जनम भर वह अपनी समस्या दूर करने में लगा रहता। सौभाग्य क्लीनिक में भी मर्ज घटती कम थी बढ़ती ज्यादा थीं इसलिए हमेंशा भीड़ लगी रहती।


बुजुर्ग साहब ने बताया चौबीस घण्टे में हर तकलीफ दूर करने वाला व्यक्ति किसी बहुत दूर शहर से आया हुआ हैकई बार तो उसके अपराधी होने की शक की वजह से पुलिस तक आ चुकी है मगर दोनों लोगों का धंधा इतना बढ़िया चल रहा है कि दोनों बहुत अधिक अमीर हो गये हैंउनकी पहुंच सांसद, विधायक, बड़े पुलिस अधिकारियों के बीच में है। मैनें बुजुर्ग साहब से पूछा दादाजी इन भोले-भाले, सीधे - साधे मरीजों और परेशान लोगों को इनके चंगुल से कैसे बचाया जा सकता है? तो बुजुर्ग साहब मुस्कराते हुए कहते हैंयदि आपको मरने का खौफ न हो और हाथ-पैर तुड़वाने का शौक हो, तो सौभाग्य क्लीनिक के डॉक्टर को और चैबीस घण्टे में शर्तिया तकलीफ दूर करने वाले खिदमतगाार को, लोगो को ठगने तथा नुकसान पहुंचाने से रोक सको तो रोक लो ! यदि तुम स्वर्ग सिधार गये तो तुम्हारा सौभाग्य, और बच गये तो सौभाग्य क्लीनिक में तुम्हारा आजीवन सेवासत्कार होगा। गूढ़ बात कहकर बुजुर्ग खिसक लिएहम भी शर्तिया इलाज का राज समझकर चुपचाप चलते बनेभइया! जान है तो जहान है