स्नेह भरी मुस्कान

पिछले दिनों आंचल और पंकज के पापा का तबादला नए शहर में हुआ। दोनों बच्चों का दाखिला भी नए स्कूल में कर दिया गया। नए स्कूल का माहौल बेशक नया था लेकिन उनकी एक- दूसरे के साथ लड़ने की आदत पहले जैसी ही पुरानी रही। उसमें कोई बदलाव न था। पंकज सातवीं और आंचल पाँचवी की विद्यार्थी थी। दोनों जरा-जरा सी बात पर एक-दूसरे को चिढ़ाते और उलझ पड़ते, जोर-जोर से चिल्लाते और खूब रोते भी। लड़ाई का मुख्य कारण ज्यादातर इनकी यह चिढ़ाने की आदत ही रहता। उनकी एक दूसरे को लड़ाई से घर में हमेशा तनाव-सा बना रहता। इनकी बेतुकी लड़ाई के लिए माता-पिता से कई बार उन्हें चपत भी पड़ती। माँ उन्हें प्यार से समझाते हुए यही कहती, 'बच्चों, तुम मत लड़ा करो। तुम्हारी इस लड़ाई से मन हमेशा एक अजीब-सी चिंता में घिरा रहता है। तुम अब बड़े हो रहे हो। थोड़ी-सी तो शर्म कर लिया करो।'


पिता इनकी इस लड़ाई से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें अक्सर कई प्रकार के किस्से, कहानियाँ और घटनाएँ सुनातेबताते । परंतु वे दोनों इन्हें सिर्फ हल्के में लेकर अपनी आदत पर बने रहते। माता-पिता ने अब यह मान लिया था कि बड़े होने पर वे स्वंय ही सुधर जाएंगे।


आज स्कूल जाने से पहले तो हद ही हो गई। वे दोनों अपने-अपने गुब्बारों के रंग को बेहतर बताते हुए आपस में उलझ गए। बात हाथापाई तक पहुँच गई। पापा उस समय बाथरुम में नहा रहे थे। जब तक मम्मी उन्हे संभालती पंकज ने अपनी काँपी से आंचल की गर्दन में जोर की मार दी थी। आंचल खूब रो रही थी। घर का माहौल आज सुबह-सुबह ही बिगड़ चुका था।



स्कूल जाने के लिए पापा की गाड़ी मेंस्कूल जाने के लिए पापा की गाड़ी में बैठे दोनों भाई-बहन आज एक-दूसरे को जैसे खा जाने वाली नजरों से देख रहे थे। पापा को भी इन पर बहुत गुस्सा आ रहा था। परन्तु वे आज उन्हें ज्यादा कुछ नही बोले। चुपचाप गाड़ी चलाते हुए बस इतना कि कहा कि शाम को बात करते हैं।


दोनों भाई-बहन अजीब से भाव लिए गाड़ी से उतरे और जल्दी-जल्दी बिना बात किए सीधे ही अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गए। पंकज जैसे ही कक्षा के भीतर दाखिल हुआ तो वहाँ पहले से पहुँची पायल अपने पाँव को डेस्क के ऊपर रखकर चुपचाप उदास बैठी थी। पंकज के पूछने पर पायल ने बताया कि उसके पैर में मोच आई है।


इतने में प्रार्थना के लिए घंटी बज गई। सभी विद्यार्थी प्रार्थना हॉल में पहुँच गए। आंचल और पंकज भी एक-दूसरे की सामने वाली पंक्ति में अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो चुके थे। प्रार्थना बोलनी की शुरूआती गतिविधियों के बाद जैसे ही विद्यार्थियों ने प्रार्थना गानी शुरू की तो इसी बीच पंकज के आगे खड़ा शौर्य एकदम से जोर-जोर से रोने लग पड़ा। प्रार्थना गान रुक गया। सभी अध्यापकों व बच्चों का ध्यान शौर्य की ओर खींच गया था। शौर्य की आँखें भीग चुकी थीं। शौर्य के अचानक यूँ रोने पर अध्यापकों ने जब कारण पूछा तो वह सुबकते हुए बोला, 'मैंने पायल दीदी के पास जाना हैदीदी आज प्रार्थना में नहीं आई है। स्कूल आते हुए उसके पाँव में मोच आ गई थी। मुझे दीदी की फिक्र हो रही है। पता नहीं इस वक्त दीदी कैसी होगी? मुझे दीदी के पास जाने दो।'


नन्हे शौर्य का अपनी दीदी के लिए इतना प्यार और चिंता देखकर कई विद्यार्थियों की आँखें भर आईं थीआंचल और पंकज एक-दूसरे के सामने खड़े आपस में नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। दोनों के चेहरे पर उदासी पसर गई थी।


शाम को तय समय पर स्कूल से जबछुट्टी हुई तो पंकज स्कूल के आँगन में खड़ा आंचल का इंतजार कर रहा था। आंचल के बाहर आते ही वह उसका हाथ पकड़कर, उसे घर की ओर लेकर चल पड़ा। चलते-चलते वह बोला, 'आंचल, सुबह कॉपी की जोर से लगी न! मुझे माफ कर दो।' आंचल अपने चेहरे पर एक स्नेह भरी मुस्कान लिए गर्दन पर चोट के निशान को छुपाते हुए बोली, “भैया ज्यादा नहीं लगी है। गलती मेरी भी तो थी।'


गलती का अहसास लिए दोनों के कदम एक साथ घर की ओर बढ़ चले थे।