अन्तःकरण शुद्धिकरण है सोलह संस्कार

षोडशसंस्कार-संस्कारकाअर्थहै-परिष्कार अथवा शुद्धिकरण-इसके माध्यम सेव्यक्ति को समाज केएक योग्य नागरिक के रूप मेंतैयार किया जाता था- येसंस्कार जन्मपूर्व से लेकर मृत्युपर्यन्त चलते रहते है। गृह्यसूत्र के अनुसार षोडश संस्कार।(1) गभार्धान (2) पुंसवन (3) सीमान्तोन्नयन (4) जातकर्म (5) नामकरण (6) निष्क्रमण (7) अन्नप्राशन (8) वपन-क्रिया चूडाकर्म (9) कविध (10) विद्यारम्भ (11) उपनयन संस्कार (12) वेदारम्भ (13) केशान्तगोदान(14) समावर्तन (15) विवाह (16) अंत्येष्टिसंस्कार।


भारतीय सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद, युजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद है। वेदांग के रूप में से साहित्य का विस्तार हुआ जिसे निम्न विभागों में विभाजित किया गया. (1) श्रौतसूत्र (2) गृह्यसूत्र (3) धर्मसूत्र (4) शुल्बसूत्र इन्हीं शास्त्रों में आचार-विचार-व्यवहार की शक्तियाँ एवं विधान का उल्लेख भी मिलता है।



 श्रौतसूत्र- इसमें यज्ञों का विधान है।


धर्मसूत्र- इसमें सामाजिक, राजनीतिक नियमों का उल्लेख है।


शुल्बसूत्र- इसमें रेखिकीय गणित के नियमों को बताया गया है।


गृह्यसूत्र- गृहस्थ से सम्बन्धित नियमसंस्कारों का वर्णन इसमें मिलता है।


इतिहासकारों के अनुसार गृह्यसूत्र में 16 प्रकार के संस्कारों को मान्यता है। संस्कारों की संख्या में विद्धानों में पूर्वकाल से ही मतभेद रहा है। गौतमस्मृति में 48 संस्कार बतलाए गये है। महर्षि व्यास द्वारा प्रतिपादित प्रमुख संस्कार षोडश संस्कार हैं। महर्षि अंगिरा ने 25 संस्कारों को निर्दिष्ट किया है।


 षोडशसंस्कार- संस्कार का अर्थ हैपरिष्कार अथवा शुद्धिकरण- इसके माध्यम से व्यक्ति को समाज के एक योग्य नागरिक के रूप में तैयार किया जाता था- ये संस्कार जन्म पूर्व से लेकर मृत्यूपर्यन्त चलते रहते है। गृह्यस अनुसार षोडश संस्कार ।