एथलेटिक्स : इतिहास रचते जूनियर

श्री राम सिंह और स्पर्धा थी 800 मी० दौड़ 23 जुलाई को पहली हीट में दौड़ते हुए उन्होंने 1 मि) 45.86 से० का समय निकाला और अमेरिका के रिक वालहूटर के बाद समूह में दूसरे स्थान पर रहे अगले दिन हुए सेमीफायनल में वह अपनी तेजी बरकरार नहीं रख सके लेकिन फायनल में स्थान बनाने में सफल रहे उनका समय रहा 1 मिo 46,42 से और समूह में स्थान चौथा, 25 जुलाई को फायनल के दिन उन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन आठ धावकों के बीच केवल सातवां स्थान ही पा सके 1 मि० 45.77 से० का समय लेकर उन्होंने नया एशियाई कीर्तिमान रचा जो 1994 तक कायम रहा।



श्रीराम सिंह का सर्वश्रेष्ठभी पदक से दूर


दूर 12 वर्षों के अंतराल के बाद 1976 में मांट्रियल ओलिम्पिक खेलों में किसी भारतीय एथलीट को फायनल में पहुंचने का गौरव मिला। यह जांबाज एथलीट था श्री राम सिंह और स्पर्धा थी, 800 मी० दौड़ 23 जुलाई को पहली हीट में दौड़ते हुए। उन्होंने 1 मि० 45.86 से० का समय 45.86 से० का समय निकाला और अमेरिका के रिक वालहूटर के बाद समूह में दूसरे स्थान पर रहे। अगले दिन हुए सेमी फायनल में वह अपनी तेजी बरकरार नहीं रख सके, लेकिन फायनल में स्थान बनाने में सफल रहे, उनका समय रहा 1 मि० 46.42 से० और समूह में स्थान चौथा, 25 जुलाई को फायनल के दिन उन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। लेकिन आठ धावकों के बीच केवल सातवां स्थान ही पा सके। 1 मि० 45.77 से० का समय लेकर उन्होंने नया एशियाई कीर्तिमान रचा। जो 1994 तक कायम रहा, स्वर्ण पदक क्यूबा के अल्ब जुआंतोरेना ने 1 मि० 43.50 से० के नए विश्व रिकार्ड के साथ जीता। बेल्जियम के इवो वान डेम दूसरे और अमेरिका के रिक वालहूटर तीसरे स्थान पर रहे। इस स्पर्धा में 43 धावकों ने हिस्सा लिया था।


सेकेण्ड के सौवें हिस्से से चूकी उड़नपरी


1984 के लॉस एंजेल्स ओलिम्पिक में पी०टी० ऊषा ने उडन सिख मिल्खा सिंह की बराबरी की, और 400 मी० बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रही। वह पहली भारतीय महिला एथलीट थी, जिन्हें फायनल तक पहुँचने का श्रेय प्राप्त हुआ। ओलिम्पिक में पहली बार शामिल की गई इस स्पर्धा में 26 महिला धावकों ने, जिनमें ऊषा के साथ ही भारत की एक अन्य प्रतियोगी एम०डी० वलसम्मा भी शामिल थी, ने अपना खेल कौशल प्रदर्शित किया था। पी०टी० ऊषा ने पहली हीट में दौड़ते हुए इस दौड़ को 56.81 से० में पूरा किया और अमेरिका की जूडी ब्राउन (55.97 से०) के बाद दूसरा स्थान हासिल किया। चौथी हीट में वलसम्मा पाँचवें स्थान (1 मि० 00.03से०) पर रहते हुए अर्हता चक्र में ही बाहर हो गई।


सेमी फायनल में ऊषा ने अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए 55.94 से० में दूरी तय की और दूसरी हीट में पहले नम्बर पर रही और फायनल के लिए क्वालिफाय कर गई। 8 अगस्त को फायनल मुकाबला हुआ। ऊषा अधिकांश समय तक सबसे आगे रही, लेकिन निर्णायक क्षणों में वह पिछड़ गई और चौथे स्थान से ही उन्हें संतुष्ट होना पड़ा। उन्होंने एक बार फिर से अपना रिकार्ड बेहतर करते हुए 55.42 से० का समय निकाला था। रूमानिया की जिस खिलाड़ी क्रिस्टिना कोयोकारू ने कांस्य पदक जीता था। उनका समय था, 55.41 से० यानि कि ऊषा मात्र एक सेकेण्ड के सौवें हिस्से से पदक से दूर रह गई, स्पर्धा का स्वर्ण पदक आश्चर्यजनक रूप से 54.62 से० के साथ मोरक्को की नवल अल मुतावाकेल के खाते में गया।


इन्हीं खेलों में महिलाओं की 47400 मी० रिले स्पर्धा में भी भारतीय टीम फायनल तक पहुँची, जहाँ उनको सातवाँ स्थान मिला। इस टीम में शामिल धाविका थीं - एम०डी० वलसम्मा, वंदना राव, शाइनी अब्राहम और पी०टी० ऊषा।


अंजूभी पदक नहीं जीत सकीं


इसके बाद बहुत समय तक कोई भी भारतीय एथलीट फायनल मुकाम तक नहीं पहुँच सका। इस खामोशी को 2004 के एथेंस आलिम्पिक खला में अंजू बॉबी जॉर्ज तोड़ने में सफल रही। उन्होंने यह सफलता लम्बी कूद में अर्जित की। इससे पूर्व वह विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीत चुकी थीं, अतएव उनसे पदक जीतने की काफी उम्मीदें भारतीय खेल प्रेमियों को थीं।


39 खिलाडियों ने इस स्पर्धा के अर्हता दौर में भाग लिया, फायनल में स्थान बनाने हेतु अर्हता का मापदण्ड 6.65 मी० निर्धारित किया गया था, अपनी पहली ही छलांग में 6.69 मी० की दूरी नाप कर अंजू ने फायनल के लिए आसानी से क्वालिफाय कर लिया। 27 अगस्त को सम्पन्न फायनल में अंजू ने 6.83 मी० की पहली छलांग लगाकर उम्मीदों को परवान चढ़ा दिया, लेकिन इसके बाद की पाँच छलांगों में वह इससे आगे नहीं बढ़ सकीं, और पाँचवें स्थान पर रहीं। पहले तीन स्थानों पर रूस की प्रतियोगी- तात्याना लेबेदेवा (7.07 मी०), आयरीना सिमागिना (7.05 मी०) और तात्याना कोतोवा (7.05 मी०), रहीं। इस प्रकार एक बार फिर भारत के हाथ निराशा ही लगी।


दो डिस्कस थ्रोअर फायनल में पर पदक फिर भी दूर


2012 लंदन ओलिम्पिक खेलों में पहली बार दो भारतीय खिलाडियों ने व्यक्तिगत स्पद्धाओं में फायनल में प्रवेश किया लेकिन पदक से दूरी बनी रही। ये खिलाड़ी थे, पुरुष वर्ग में विकास गौड़ा और महिला वर्ग में कृष्णा पूनिया, 41 खिलाडियों वाले पुरुष समूह में क्वालिफाइंग मार्क 65.0 मी० रखा गया था। विकास गौड़ा ने अपने दूसरे प्रयास में 65.20 मी० दूरी तक डिस्कस प्रक्षेपित कर अंतिम 12 में जगह पक्की कर ली, एक दिन बाद 7 अगस्त को फायनल निर्धारित था। विकास गौड़ा इस दिन थोड़े विचलित नजर आए और अपने छह प्रयासों में एक बार भी 65 मी० की रेखा भी पार नहीं कर सके, 64.79 मी० की दूरी के साथ वह छठवें स्थान पर रहे। जर्मनी के रोबर्ट हार्टिग 67.79 मी० के साथ पहले स्थान पर रहे।


के साथ पहले स्थान पर रहे। महिला वर्ग में यही कहानी कृष्णा पूनिया ने भी दोहराई 63 मी० का अर्हता स्तर उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में पार कर लिया और फायनल में पहुँच गई, अंतिम मुकाबले में वह 63.62 मी० की दूरी तक ही डिस्कस प्रक्षेपित कर पाईं और विकास की ही तरह छठवें स्थान पर रहीं, स्पर्धा में कुल 35 खिलाडियों ने शिरकत की थी, तथा क्रोएशिया की सांद्रा पर्कोविच 69.11 मी० के साथ पहले स्थान पर रही।


गत ओलिम्पिक खेलों - 2016 रियो डि जानीरो, में महिलाओं की 3000 मी० स्टीपलचेज में ललिता बाबर फायनल में पहुँचने में सफल रहीं। किंतु 9 मि० 22.74 से० के समय के साथ दसवें नम्बर पर रहीं हीट मुकाबलों में उन्होंने 9 मि० 19.76 से० का नया राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाया था। इस रेस में कुल 52 खिलाडियों ने हिस्सा लिया था।


तित मार्दा में भारत के नाम मात्र एक पदक


विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता की शुरूआत 1983 में हेलसिंकी, फिनलैण्ड में हुई थी। प्रारम्भ में यह स्पर्खा हर चौथे साल आयोजित की जाती थी। लेकिन 1991 के बाद हर दूसरे वर्ष आयोजित की जाने लगी। भारतीय एथलीट प्रथम स्पर्धा से ही इसका हिस्सा रहे हैं, लेकिन उनके खाते में अब तक आयोजित सोलह स्पर्धाओं में मात्र एक कांस्य पदक ही दर्ज है। यह पदक 2003 की पेरिस विश्व स्पर्धा में महिलाओं की लम्बी कूद में अंजू बॉबी जॉर्ज ने जीता था। उन्होंने यह सफलता 6.70 मी० की कूद लगाकर अर्जित की थी। स्पर्धा का स्वर्ण पदक फ्रांस की एनिस बार्बर (6.99 मी०) तथा रजत पदक रूस की तात्याना कोतोवा (6.74 मी०) ने जीता था बाद में कोतोवा को प्रतिबंधित ड्रग लेने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया और अंजू को रजत पदक विजेता घोषित किया गया। लेकिन एथलेटिक्स की ऑफिसियल वेबसाइट पर अभी भी अंजू के नाम कांस्य पदक ही प्रदर्शित हो रहा है।


डिस्कस थ्रोअर विकास गौड़ा तीन बार विश्व स्पर्धाओं में फायनल तक पहुँचने में सफल रहे। लेकिन एक बार भी पदक के नजदीक नहीं पहुंच सके। 2011 में डेगू, द० कोरिया में वह सातवें (64.05 मी०), 2013 में मॉस्को में पुनः सातवें (54.03 मी०) और 2015 में बीजिंग में नौवें (62.24 मी०) नम्बर पर रहे। उनके अतिरिक्त तीन अन्य खिलाड़ियों को भी फायनल में स्थान बनाने का श्रेय प्राप्त है। ये खिलाड़ी हैं - मयूखा जॉनी (लम्बी कूद 6.37 मी0 नौवाँ स्थान, डेगू द० कोरिया 2011), ललिता बाबर (3000 मी० स्टीपलचेज 9:29.64 आठवाँ 2015 बीजिंग) तथा देविंदर सिंह केग (जेवलिन थ्रो 12वाँ 80.02 मी०, 2017 लंदन)।


जूनियर एथलीटों का धारदार प्रदर्शन


सीनियर खिलाड़ियों की अपेक्षा जूनियर खिलाड़ियों ने विश्व स्पर्धाओं में शानदार प्रदर्शन किया है। उनके नाम अब तक दो स्वर्ण और दो कांस्य पदकों सहित कुल चार पदक अंकित हो चुके हैं। भारत के लिए पहली स्वर्णिम सफलता नीरज चौपड़ा ने हासिल की थी 2016 में बिडगोस्जक्ज, पोलेण्ड में सम्पन्न स्पर्धा में उन्होंने 86.48 मी० तक जेवलिन फेंक कर न केवल स्वर्ण पदक जीता अपितु नया कीर्तिमान भी बनाया। भारत का दूसरा स्वर्ण पदक जीतने का गौरव स्प्रिण्टर हिमा दास के नाम रहा। 18 वषीर्या इस धाविका ने टेम्पेरे, फिनलैण्ड में आयोजित गत स्पर्धा में 400मी० दौड़ में 51.46 से० का समय निकालते हुए यह अप्रतिम सफलता हासिल की। हिमा पहली भारतीय एथलीट हैं जिन्हें ट्रेक स्पर्धाओं में पदक जीतने में कामयाबी मिली।


यहाँ यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि नीरज चौपड़ा और हिमा दास से पूर्व सीमा अंतिल ने 2000 में सेण्टियागो, चिली में सम्पादित जूनियर स्पर्धा में डिस्कस थ्रो में स्वर्णिम सफलता दर्ज की थी लेकिन 16 साल की इस उदीयमान खिलाड़ी से प्रतिबंधित दवा के सेवन के आरोप में पदक वापस ले लिया गया। अगली विश्व स्पर्धा में, जो किंगस्टन, जमैका में हुई थी, वह पुनः मैदान में थीं और इस बार कांस्य पदक जीत कर भारत की पहली पदक विजेता बनने में सफल रहीं उन्होंने 55.27 मी० तक डिस्कस प्रक्षेपित कर यह सफलता हासिल की थी। दूसरा कांस्य पदक 2014 में यूजीन, अमेरिका में नवजीत कौर ने डिस्कस थ्रो में ही जीता उन्होंने 56.36 मी० की दूरी नाप कर यह कामयाबी अपने नाम लिखी थी।