सम्पादकीय : भारतीय दुर्ग : संस्कृति रक्षा के आधार स्तम्भ

किलों / दुर्गों का निर्माण, नगर-बस्तीयों को बाहरी आक्रमणों से बचाने के लिए शुरू किया गया था। जमीनी लड़ाईयों में यह बचाव का प्रभावी साधन सिद्ध हुआ। यह, युद्ध-सुरक्षा, से जुड़ा हुआ निर्माण था, इसलिए जैसे-जैसे युद्ध तकनीक उन्नत हुईं वैसे-वैसे इसका निर्माण भी बहुआयामी तथा क्लिष्ट होता गया। आरंभिक काल के किलों की संरचना बहुत सरल होती थी, इसमें बस्ती के चारो तरफ मिट्टी या पत्थर की एक दीवार चिन दी जाती थी, और बाहर निकलने के लिए कुछ स्थानों पर मजबूत फाटक युक्त द्वार बना दिए जाते थे। समय के साथ किलों की निर्माण शैली में थोड़े-थोड़े सुधार होते रहे, परन्तु कुछ अंग अपेक्षाकृत अधिक उन्नत हो गए जैसे- मोटी तथा पक्की दीवार, बहुस्तरीय परकोटे, सुरक्षित पलायन के लिए गुप्त सुरंगे, बड़े जलाशय, महीनों तक हजारों लोगों के पोषण के लिए अन्न भण्डार, अस्त्र-शस्त्र निर्माणशाला, सुविधासम्पन्न आवास, स्वावलम्बी जन-समुदाय, परकोटों से बाहर निकलने के लिए अधिक सुरक्षित द्वार। आक्रमणों से अच्छी सुरक्षा देने के साथ-साथ दुर्ग, कालान्तर में राज्य की समृद्धि, वैभव तथा शिल्पकला की उच्चता का भी प्रतीक बनते गएऔर एक समय ऐसा भी आया जिसमें दुर्गों को सुरक्षित बनाने में जितना प्रयास किया जाता था, उतना ही उसे सुन्दरतम बनाने के लिए। इससे शिल्पकारों को अपना हुनर दिखाने के अवसर प्राप्त हुए और वास्तुकला समृद्ध हुई। उक्त बातों के सम्मलित प्रभावों से किलों की एक अलग ही संस्कृति विकसित हो गई। इसी कारण किलों की निर्माण शैली से तत्कालीन संस्कृति, युद्ध तकनीक तथा वास्तुकला की परिपाटी का भी अंदाज लग जाता है। फिलहाल इस किला-संस्कृति पर विराम लग चुका है, क्योंकि हवाई जहाज तथा मिसाइल जैसी आसमानी युद्धक प्रणालियों के आने से किलों की भूमिका खत्म हो गई है। इसके इतर, प्रचलन से बाहर होने के बाद भी किले, युद्ध कौशल और देशप्रेम के भावों का संचार करने में अग्रणी सिद्ध हो रहे हैं। भारत के किले, तो उस महान परंपरा के प्रतीक के रूप में उभरे हैं, जिसमें देश के लिए लड़ने का जज्बा, पराक्रम और अनगिनत बलिदान देने वाले जीवन्त इतिहास की खुशबू आती है। निर्माण तकनीक की दृष्टि से भी कई भारतीय किले विश्वभर में अनूठे हैं। महाराष्ट्र का मुरूद जंजीरा किला दुनियाँ के सबसे अधिक पाँच दुर्भेद्य किलों में से एक है। कुम्भलगढ़ तथा कालिंजर के किले पूरे इतिहास में प्रत्यक्ष आक्रमणों द्वारा कुछ बार ही विजित हुए हैं। पहाड़ी पर बने चित्तौड़गढ़ किले की दीवार के कुछ हिस्से को जलरोधी बाँध की तरह बनाया गया है, और इसके पीछे बारिश का पानी एकत्र किया जाता है। कुम्भलगढ़ किले की सुरक्षा दीवार 36 कि.मी. लम्बी है। दुनियाँ में किसी भी किले की दीवार इतनी लम्बी नहीं है। लम्बाई की कसौटी पर भी यह चीन की दीवार के बाद दूसरे नम्बर पर आती है। जौहर कुण्ड भारतीय किलों के अलावा किसी और देश के किलों में नहीं पाए जाते। 'दी कोर' का यह अंक इस आशा के साथ प्रस्तुत है कि, यह भारतीय किलों के ऐसे गौरवशाली आयामों को संजोने और स्मरणीय बनाने में उपयोगी रहेगा।