संस्कार और शिष्टाचार से निखरता जीवन

हमारे देश की समृद्ध संस्कृति, आचार-विचार, जीवनमूल्य और दर्शन हमारे ग्रंथों में समाहित हैं। भारत के परिदृश्य में संस्कृति, संस्कार व शिष्टाचार तीनों परस्पर घुले-मिले हैं। सामाजिक लोकाचार में सही-गलत क्या है, इस निर्णय में इन्हीं ग्रंथों के उदाहरण पथ प्रर्दशक बनते रहे हैं। बचपन से ही माता-पिता व गुरू बच्चों में अच्छे संस्कार भरने का प्रयत्न करते हैं जिससे प्रभावित होकर बच्चे अच्छा आचरण करते हुए सम्मानीय व सुखद जीवन व्यतीत करते हैं।



हमारे आचरण से हमारे व्यक्तित्व का सही आंकलन होता है। समाज में व्यक्ति की पहचान शिष्टाचार से ही बनती है। यदि हम सभी से अच्छा व्यवहार करते हैं तो हम सभ्य कहलाते हैं और सबको अच्छे लगते है व समाज में सम्मान पाते हैं और यदि हम इसके विपरीत दूसरों से बुरा व्यवहार करते हैं तो असभ्य माने जाते हैं और लोग हमें हेय दृष्टि से देखते हैं व हमसे दूरी बना कर रहते हैं। शिष्टाचार हमारे जीवन का दर्पण है। जिसमें हमारी अच्छाइयाँ व बुराईयाँ साफ दिखाई पड़ती हैं।


परस्पर बातचीत, आदर सहित संबोधन, दूसरों की सेवा, त्याग, सम्मान युक्त भावनाएं आदि अच्छे संस्कारों के ही प्रतिरूप हैं। जिसका दिन प्रतिदिन अभाव होता चला जा रहा है। आज के हमारे अपने समाज में कुछ संस्कृति व संस्कारविहीन लोग मयार्दाओं का उल्लंघन करना अपनी श्रेष्ठता समझते हैं। वे लोगस्वयं के अहंकार में अकड़े दिखाई पड़ते हैं। झुकना शब्द ही उन्हें पिछड़ेपन का सूचक लगता है। तो भला वे झुककर किसी का अभिवादन या सम्मान कैसे कर सकते हैं। आज के अधिकतर बच्चे, युवा अपने संस्कारों को भूलते जा रहे हैं, जिसके लिए बच्चे ही नहीं माता-पिता व शिक्षण संस्थाएँ भी जिम्मेदार हैं। लोग लाभ-हानि, ऊँच-नीच आदि देखकर ही व्यवहार करते हैं, जो कि अनुचित है। अपनी संस्कृति और संस्कार खोने का मतलब है, अपनी अस्मिता खो देना, अपना सम्मान खो देना है।


शिष्टाचार व्यक्ति के आचरण का नैतिक मापदंड है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना सहानुभूति सहयोग की भावना शिष्टाचार के मूल आधार हैं। इन मूल भावनाओं से ही प्रेरित होकर व्यक्ति दूसरों के प्रति नम्र, विनयशील, आदरपूर्ण व उदार आचरण करता है। शिष्टाचार का क्षेत्र उतना ही व्यापक है, जितना हमारे जीवन व्यवहार कासमाज में जहाँ-जहाँ व्यक्ति का परिचय होता है वहीं शिष्टाचार की आवश्यकता पड़ती है। घर परिवार हो या बाहर, जहाँ भी एक से अधिक लोगों से परिचय होता है वहीं शिष्टाचार की आवश्यकता होती है। हमारे संपूर्ण जीवन में कार्य-व्यापार, मिलना-जुलना तथा सभी क्रिया-कलापों में शिष्ट व्यवहार की आवश्यकता होती है। शिष्ट व्यवहार से दूसरों की आत्मीयता व सहयोग की प्राप्ति होती है साथ में समाज में लोकप्रियता भी बढ़ती है। अच्छे व सरल व्यवहार से विरोधी भी अपने बन जाते हैंशिष्टाचार के प्रभाव में कटुता, विरोध, और शत्रुता जैसे दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं अशिष्ट व्यवहार दूसरों में घृणा, द्वेष पैदा करता हैतथा कोई भी सहयोग की भावना नहीं रखता। अशिष्टता से व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को समाज अकेला छोड़ देता है, अपने भी पराये हो जाते हैं। इसीलिए आवश्यक हैकि अपने परिवार, समाज व स्वयं के हित के लिए अपने स्वभाव व आचरण में शालीनता लाएँ। हम सब समाज का एक हिस्सा हैं इसलिए समाज के नियमों का पालन करें।


शिक्षा, संपन्नता एवं प्रतिष्ठा की दृष्टि से कोई व्यक्ति कितना भी ऊँचाई पर हो, पर उसे लोगों से उचित वर्ताव करना ही न आये तो लोग उसके प्रति अच्छी धारणा नहीं रखेगें। शिष्टाचार और लोक-व्यवहार का यही अर्थ है कि अवसर के अनुकूल छोटों व बड़ों से उचित वर्ताव करें, सभी का सम्मान करें, तथा समाज में अपनी सुन्दर अमिट छाप छोड़ें। जिसे लोग अनुकरण कर गौरवान्वित हो सके।