सफलता का मूलमंत्र

*'टिंग.. टिंग.. टिंग.. अरे बाप रे! सात बज गए.. आठ बजे तो पेपर शुरू है.. बैंक्स यार ! तेरा फोन नहीं आता तो मैं सोता ही रह जाता.. रात तीन बजे आँख लग गईथी.. अच्छा अब रखता हूँ.. भागू.. शाम को बात करता हूँ..'' प्रणव अपने कोचिंग फ्रेंड अमित को बैंक्यू कहते हुए फटाफट बाथरूम की ओर लपका। आज उसका जेईई एडवांस का एग्जाम है।


'उफ्फ! इसे भी आज ही नाराजगी दिखानी थी.. मुँह सिकोड़ के बैठी है।' प्रणव ने पंचर मोटरसाइकिल को देखकर माथा पीट लिया. तभी सामने वाले पड़ौसी अंकल गार्डन में पानी लगाते दिखाई दिए।


'अंकल प्लीज! पंद्रह मिनट में मेरा पेपर शुरू होने वाला है.. मेरी बाइक पंचर है.. अपना स्कूटर दे दीजिये ना..' प्रणव ने अनुनय की।


'दे तो देता लेकिन मुझे अजेंट कहीं जाना है.. चल ऐसा करता हूँ, तुझे ड्रॉप कर देता हूँ.. तू भी क्या याद रखेगा..' अंकल ने अहसान जताते हुए कहा तो प्रणव कृतज्ञ हो गया।


'उफ़्फ! परीक्षा केंद्र का मेन गेट तो बंद हो गया' प्रणव के होश उड़ गये। हाँफते- हांफते चौकीदार से मिन्नत की तो उसने तरस खाते हुए उसे भीतर जाने दिया। घबराया हुआ प्रणव अपनी सीट पर आ बैठा।


'ये लो! सारी पनोती आज ही लगनी हैं.. जेब को भी अभी फटना था.. पेंसिल तो गिर गई.. अब दूसरी पेंसिल कहाँ से लाऊँ..' प्रणव ने जेब टटोली तो हाथ आरपार हो गयाये तो परीक्षक सहृदय था, पास वाले स्टूडेंट की पेंसिल को तोड़ कर एक टुकड़ा प्रणव को दिया और उसने किसी तरह अपना प्रश्नपत्र हल किया।


आश्चर्यजनक रिजल्ट आया। प्रणव ने इस एग्जाम में टॉप किया थाकोचिंग सेंटर ने उसके सम्मान में एक कार्यक्रम रखा 


'मिस्टर प्रणव! आपने इस एग्जाम में पूरे देश में टॉप किया है.. आप अपनी सफलता का क्रेडिट किसे देना चाहेंगे?' एक समाचारपत्र के प्रतिनिधि ने उससे पूछा तो प्रणव जैसे सपने से जागा। एकाएक कई चेहरे उसकी आँखों के सामने तैर गए। अमित.. पड़ौसी अंकल.. चौकीदार.. परीक्षक.. और माँ-पापा भी..


प्रणव ने एक निगाह अपने हाथों पर डाली.. फिर आसमान की तरफ निगाहें उठाई और मुस्कुराया। 'सफलता न तो भाग्य से मिलती है और ना ही महज कर्म करने से.. इसके लिए तो बहुत से साझे प्रयासों को एकजुट हो कर एक ही दिशा में पूरी शक्ति के साथ जुटना पड़ता है.. यही सफलता का मूलमंत्र है।'


कच्ची डोट


'कभी-कभी तो काम वाली मधु और खुद में कोई फर्क ही नहीं लगता... वह तो माना कि अनपढ़ और गंवार है... उसे महिलाओं के अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है... मगर हम पढ़ी लिखी नौकरी पेशा महिलाएं तो सब कुछ जानते-समझते हुए भी हर जगह शोषण का शिकार हो रही हैं... क्या घर और क्या दफ्तर... हमेशा पुरुषों ने अपनी ही चलाई है...' हमेशा की तरह लंच में विनीता ने टिफिन के साथसाथ अपने मन के भीतर दबी हुई पीड़ा का पिटारा भी खोल दिया।



'आज क्या हुआ? लोकेश से फिर कहासुनी हो गई क्या? वह तो तुम्हारे प्रमोशन पर खुश हो रहा होगा ना...' मैंने उसे शांत करते हुए पूछा।


यहीं से तो समस्याओं की शुरूआत होती है... जैसे मधु की अपने पति से ज्यादा कमाई उसके अपने पति से पिटने का कारण बनती है, वैसे ही मेरा प्रमोशन भी लोकेश को कहाँ रास आता है... बस! प्रताड़ना का तरीका जरा सभ्य हो जाता है। विनीता के स्वर में कड़वाहट साफ झलक रही थी।


जब तुम इतनी ही परेशान हो तो तलाक क्यों नहीं ले लेती? तुम आज की नारी... आत्मनिर्भर हो... तुम्हारे पास अपना फ्लैट और गाड़ी है...' मैंने न चाहते हुए भी उसे सलाह दे डाली।


'मैंने भी कई बार सोचा... लेकिन हिम्मत नहीं हुई... पतंग जब तक डोर से बंधी हुई रहती हैतभी तक आसमान की ऊँचाइयाँ नाप सकती है... डोर से टूटते ही लोग उसे लूट लेते हैं...' कहते हुए विनीता ने अपना टिफिन और मुंह बंद कर लिये।