यह जग एक उड़ता पन्ना है।

यह जग एक उड़ता पन्ना है।


जहां जीवन इतना आसान नहीं।


इस उड़ते कोरे पन्ने


में स्याही का नाम निशान नहीं।


 


यहां इंसान पलता है घमंडो में


कहीं रिश्तो में कहीं धर्मों में।


रिश्तों का तो पता नहीं पर


धर्मों में भगवान नहीं


यह जग एक उड़ता पन्ना है


जहां जीवन इतना आसान नहीं। ।


 


एक बात गर्व की होती है।


अपनों का सर मुंडवाने में।


एक बात शर्म की होती है।


 


अपनों का सर तुड़वाने में।


जहां त्यौहार मनाए जाते हों।


इस दुनियाँ में ऐसा श्मशान नहीं।


यह जग एक उड़ता पन्ना है ।


जहां जीवन इतना आसान नहीं।


 


यहां इंसानों से इंसानों के।


पेंच लड़ाए जाते हैं।


अपनी इज्जत के खातिर ही।।


कई बलि चढ़ाए जाते हैं।


इस इज्जत के लिए ही तो


यहां खुशियों का नाम निशान नहीं


यह जग एक उड़ता पन्ना है


जहां जीवन इतना आसान नहीं।


 


21वीं सदी की बेटी


आकांक्षा यादव


 


जवानी की दहलीज


पर कदम रख चुकी बेटी को


माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य


ठीक वैसे ही


जैसे सिखाया था उनकी माँ ने


पर उन्हें क्या पता


ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है


जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते


अपने आँसुओं को


चुपचाप पीना नहीं जानती है


वह उतनी ही सचेत है


अपने अधिकारों को लेकर


जानती है


स्वयं अपनी राह बनाना


और उस पर चलने के


मानदण्ड निर्धारित करना।


 


थकन।


नीरज त्यागी


भटकता फिर रहा सूरज, सुबह से शाम हो गई।


सुबह की तपन, दिन ढले थक कर लाल हो गई।


अभिमान से भरा मस्तक शाम ढले तक झुक गया।


उसका गुरुर अपनी ही थकन के आगे झुक गया।।


उम्र का ढलाव भी कुछ इस कदर ही इंसान को झुकाता है।


अपने शरीर से थका इंसान अपनो के आगे सर झुकाता है।


कुछ भी हो, कैसा भी हो, समय बदलता जरूर है।


कितनी भी हो हरियाली पतझड़ आता जरूर है।


समय का पहिया यूँ ही चलता रहता है।


अच्छा बुरा वक्त यूँ ही निकलता रहता है।


 


ये जीवन ढलता जाता है।


सुषमा दुबे


कुछ भूली बिसरी यादें हैं, कुछ टूटे फूटे वादे हैं


हमको सिखलाता जाता है, ये जीवन ढलता जाता है


प्यारा प्यारा एक बचपन था, एक जिम्मेदार जवानी है


कुछ उम्मीदों के सब्जबाग, कुछ सपनों की वीरानी है


गिर गिर कर रोज सम्हलना है, फिर जुड़ना और बिखरना है


पल पल बिखराता जाता है, ये जीवन ढलता जाता है..


कुछ अहसासों के मंजर है, कुछ तकलीफों के खंजर है


कभी अहसान परायों के, कभी अपनों में ही अंतर है।


कहीं भर देता झोली पूरी एकंही रह जाती ख्वाहिशें अधूरी


चंद्रकला सा घटता-बढ़ता जाता है, ये जीवन ढलता जाता है..


मेरे अहसास न जाने कोई, मन की थाह जा जाने कोई,


बिखरन मे भी प्रेम कही, कही प्रेम मे उलझन कोई।


कहीं महफिलों के दौर सुहाने, कंही मौत भी रोये अकेली


वक़्त गुजरता जाता है, ये जीवन ढलता जाता है..।


बरसातों से हैरान है कोई, अश्क भी सूखे किसी नैनो के


जिससे जुड़े दिल के तार, वही न समझे मन की थाह


कहीं सुगंध को तरस गए, कहीं दे देता केसर कस्तूरी


तड़पन में भी मुस्काता जाता है, ये जीवन ढलता जाता है..