चिकन के परिधान, लखनऊ की शान

वस्त्र हमारे व्यक्तित्व का आइना होते हैं। व्यक्ति के क्षेत्र ओहदे व कार्य की पहचान उसके पहनावे से सहज ही हो जाती हैं। जिस प्रकार हमारे देश के हर क्षेत्र की भाषा, भोजन व रहन-सहन में विविधिता है, उसी प्रकार हमारे पारंपरिक परिधान भी अलग-अलग तरह के हैं। बहुत से तो वस्त्रों का नामकरण ही स्थान के नाम पर हैं और कुछ वस्त्रों के नाम से स्थान की पहचान हो जाती है। उसी में हैं चिकन की कारीगरी। चिकन का नाम आते ही लखनऊ की शान-शौकत लोगों की निगाहों में घूम जाती है। चिकन की कढ़ाई और कशीदाकारी लखनऊ की प्रसिद्ध शैली है। महीन कपड़े पर तरह-तरह के टांकों से की गई हाथ की कारीगरी ही लखनऊ की चिकनकला है। गोमती किनारे स्थिति ऐतिहासिक नगर लखनऊ अपनी तहजीब, अपनी संस्कृति और लजीज व्यंजनों के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही अपनी चिकन की कारीगरी के लिए विदेशों तक प्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग चिकन की कढ़ाई की साड़ी, कुर्ती, कुर्ता, शेरवानी आदि खरीदने आते हैं। चिकन के वस्त्र अपनी अलग ही छटा बिखेरते हैं। छोटे स्तर से शुरू हुआ यह उद्योग आज विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है। चिकन के वस्त्रों का बड़ी मात्रा में बाहर निर्यात होना उसकी उपयोगिता व महत्तवता को दशार्ता है। लखनऊ की प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत इमामबाड़ा से चिकन की कढ़ाई का गहरा संबंध है। इमामबाड़े की नक्काशीदार कारीगरी से चिकन की कढ़ाई को मानो पर लग गये। अद्भुत बेल बूटों की डिजाइनें सर्वप्रथम यहीं से लीं गईं। लगभग एक सौ पचास वर्ष तक यहीं से डिजाइनों को चिकन के वस्त्रों पर उकेरा गया। आज भी इमामबाड़े की मलिन व टूटी-फूटी दीवारों से चिकन की कारीगरी के लिए फूल- पत्तियों के डिजाइन लिए जाते हैं। साम्राज्ञी नूरजहां इरानी का दिया हुआ सुन्दर तोहफा “चिकन का कारोबार" जहां एक ओर अपने देश के लोगों के मन-मस्तिष्क में रह बस चुका है, वहीं दूसरी ओर अंर्तराष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त कर चुका है। अतः लखनऊ का नाम चिकन की कारीगरी के लिए हमेंशा चमकेगा ।



चैक की गलियों से शुरू हुआ यह उद्योग अमीनावाद, आलमबाग, कपूरथला, हजरतगंज के बड़े-बड़े शोरूमों में ही सुशोभित नहीं है, बल्कि लखनऊ की हर छोटी बड़ी गलियों में भी फैला है। चिकन की महीन बेल-बूटे से कढ़े वस्त्रों से सजी दुकाने बरबस ही लोगो का मन मोह लेती हैं। कपड़ों की कटाई, सिलाई, कढ़ाई, घुलाई, रंगाई और सुखाने का बहुत ही बड़ा कारोबार है। चिकन के धुले वस्त्र लगभग चालीस डिग्री तापमान पर सुखाये जाते हैं। प्रसिद्ध पक्के पुल नीचे गोमती के किनारे लाइन से अधिकाधिक मात्रा में सूखते कपड़े बहुत ही सुन्दर लगते हैं। सतरंगी छटा बिखेरते हुए यह कपड़े सभी का मन लुभाते हैं। कई फिल्मी गाने इन्हीं कपड़ों की पंक्तियों के बीच फिल्माये गये हैं। कई अभिनेता व अभिनेत्रियां चिकन की कढ़ाई की प्रेमी रही हैं, वे अत्यधिक व्यस्तता के बीच भी चिकन की खरीददारी करने के लिए लखनऊ आती रही हैं। अपनी विशिष्टता के कारण ही यह कला सैकड़ों बर्षों से अपनी लोकप्रियता के साथ अनगिनत लोगों को रोजगार दिये हुए हैं। मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा आदि छत्तीस प्रकार की चिकन की शैलियां हैं जिनका कार्य बहुत ही बारीकी व सफाई के साथ किया जाता है। चिकन के महीन कपड़े पर कढ़ी यह घनी, भारी भरकम डिजाइने वस्त्र की कीमत चैगुनी हो जाती है। इस हस्तशिल्प उद्योग में बड़ी संख्या में महिलाएं कार्यरत हैं। चिकन की कारीगरी कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए रोजगार का जरिया भी है। चिकन की कढ़ाई का कार्य अब लखनऊ तक ही सीमित नहीं है, लखनऊ के आस-पास के गांवों में भी फैला हुआ है। इस कार्य में अधिकतर कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ घरेलू महिलाएं कार्य करती हैं। घर के काम निवटा कर, बचे हुए समय का वे बखूवी सद्पयोग करती हैं और कुछ पैसे भी कमा लेती हैं। बहुतों की तो जीविका इसी पर निर्भर है।


वैसे तो स्टाइलिस्ट ड्रेस की बाजार में भरमार है, आज के आधुनिक पहनावे से लोग प्रभावित भी हो रहे हैं, परन्तु चिकन अपनी शालीनता व सुन्दरता के लिए उतना ही प्रसिद्ध है। चिकन की अपनी अलग पहचान है जिसे आधुनिक पहनावे की चकाचैध कम नहीं कर पायी है। यह सच है कि चिकन की बारीक कढ़ाई से सजे सुन्दर वस्त्रों से व्यक्तित्व निखरता है। चिकन की कारीगरी अपने लखनऊ की अलग ही पहचान बनाती है।