गाँधी जी का स्किल डेवलपमेंट

महात्मा गाँधी ने विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था की बात की, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बात की। उस सबके मूल में स्किल डेवलपमेंट, कौशल विकास ही है। गाँधीजी पर हम आरोप लगाते रहे हैं कि वह टेक्नोलॉजी के खिलाफ थे, वह हिन्दुस्तान को बहुत पीछे ले जाएंगे लेकिन ऐसा कोई लेख या उदाहरण नही मिलता है जिसमें गाँधीजी ने टेक्नोलॉजी के खिलाफ थे, वह हिन्दुस्तान को बहुत पीछे ले जाएंगे लेकिन ऐसा कोई लेख या उदाहरण नहीं मिलता है जिसमें गाँधीजी ने टेक्नोलॉजी का विरोध किया हो।



स्किल कल डेवलमेंट कहें या कौशल विकास या उद्यमिता विकास कहें। इसकी इस देश को महती आवश्यकता है। देश का संतुलित आर्थिक विकास करना है तो स्किल डेवलपमेंट को केन्द्र बिंदु में रखना पड़ेगा। आज खालिस आर्थिक विकास की बात चलती है। देश की आर्थिक प्रगति को विकास दर के माध्यम से नापा जाता है। विकास दर बढ़ रही है तो आर्थिक विकास हो रहा है, लेकिन यह काफी नहीं है क्योंकि देश के दस बीस लोगों का आर्थिक विकास होने से भी विकास दर में वृद्धि हो जाएगी। लेकिन वह सही अर्थों में विकास नहीं है। क्योंकि कुछ बड़े उद्योगपतियों के आर्थिक विकास को देश का आर्थिक नापना गलत है क्योंकि उससे गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ेगी गरीब अधिक गरीब होगा और अमीर अधिक अमीर होगा।


कुछ लोगों का आर्थिक विकास देश की विकास दर को तो बढ़ाएगा लेकिन विषमता भी पैदा करेगा। इसलिए हमें विकास दर मात्र नहीं संतुलित आर्थिक विकास की नीति अपनानी पड़ेगी। संतुलित आर्थिक विकास ही देश का सही आर्थिक विकास है और उसके लिए स्किल डेवलपमेंट अत्यंत आवश्यक है। स्किल डेवलपमेंट अत्यंत आवयक है। स्किल डेवलपमेंट हर हाथ को काम उपलब्ध करवाएगा और जब हर को काम मिलेगा तो बेरोजगारी घटेगी और संतुलित आर्थिक विकास बढ़ेगा। इसमें एक का नहीं सभी का आर्थिक विकास होगा। गाँधी की एक प्रसिद्ध है- "मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा जिसमें गरीब से गरीब आदमी भी यह महसूस करे कि यह उसका देश है, जिसके निर्माण में उसकी आवाज का महत्व है।"


महात्मा गाँधी ने विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था की बात की, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बात की। उस सबके मूल में स्किल डेवलपमेंट, कौशल विकास ही है। गाँधीजी पर हम आरोप लगाते रहे हैं कि वह टेक्नोलॉजी के खिलाफ थे, वह हिन्दुस्तान को बहुत पीछे ले जाएंगे लेकिन ऐसा कोई लेख या उदाहरण नही मिलता है जिसमें गाँधीजी ने टेक्नोलॉजी के खिलाफ थे, वह हिन्दुस्तान को बहुत पीछे ले जाएंगे लेकिन ऐसा कोई लेख या उदाहरण नहीं मिलता है जिसमें गाँधीजी ने टेक्नोलॉजी का विरोध किया हो। इसके विपरीत उन्होंने अपने समय में घोषणा की थी कि यदि कोई वैज्ञानिक चर्खे में आवश्यक सुधार कर दें, जिससे चर्खे में शक्ति कम लगे और उत्पादन अधिक हो जिससे कातने वाले की आय बढ़ सके तो मैं आवश्यक सुधार कर दे, जिससे चर्खे में आवश्यक सुधार कर दे, जिससे चर्खे में शक्ति कम लगे और उत्पादन अधिक हो जिससे कातने वाले की आय बढ़ सके तो मैं उस व्यक्ति को एक लाख रुपये इनाम दूँगा। उस समय अम्बर चर्खा नहीं था। साधारण किसान पेटी चर्खे में भी ऐसी टेक्नोलॉजी चाहते थे जिससे कातने वाले का श्रम कम हो सके और उत्पादन बढ़ सके। जो व्यक्ति चर्खे में भी आधुनिकतम विकास लाना चाहता था उस व्यक्ति के बारे में यह कहा जाए कि वह टेक्नोलॉजी के खिलाफ थे, यह उनके साथ अन्याय होगा। उनका दूसरे हाथ का काम छिनना नहीं चाहिए। यही है हर हाथ को काम देने का तरीका। इसके लिए स्किल डेवलपमेंट चाहिए। इसके लिए कौशल विकास चाहिए।


विकास चाहिए। हमारे देश में गाँव में परंपरागत उद्योग धंधे चलते थे। लोगों के पास पीढ़ी दर पीढ़ी स्वतः योग्यता आ जाती थी। किसी को काम सीखने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता था लेकिन जाति का एक ठप्पा लग जाता था और उसी कारण उस व्यक्ति, उस परिवार को अछूत माना जाता था और उसके साथ उसी रूप में दुर्व्यवहार किया जाता था। गाँधीजी ने इसके लिए गैर- परंपरागत कारीगरों को प्रोत्साहन दिया। गैर-परंपरागत कारीगरों को प्रशिक्षण की आवश्यकता थी तो उनके लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। गाँधीजी ने हरिजन सेवक संघ के प्रांगण में हरिजन उद्योगशाला शुरू की और उसमें गैर- परंपरागत कारीगरों को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की। इस उद्योगशाला का पहला बैच तैयार होकर निकला, जिसका पहला कन्वोकेशन एड्रेस गाँधीजी ने स्वयं किया। स्किल डेवलपमेंट कौशल विकास का यह एक तरीका था। कौशल विकास की आवश्यकता महसूस किया जाता रहा। परन्तु जब तक इस नीति के रास्ते में आने वाली कठिनाइयों पर गौर नहीं किया जाएगा तब तक इसकी जरूरत होते हुए भी, इसके लिए सक्रिय प्रयास किये जाने पर भी यह नीति लोकप्रिय नहीं हो पाएगी।


स्किल डेवलपमेंट के लिए क्या चाहिए? प्रशिक्षण चाहिए, पूंजी चाहिए और मार्कटिंग व्यवस्था चाहिए, आज कई जगह प्रशिक्षण की व्यवस्था है। संभावित उद्यमी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं हालाकि इस प्रशिक्षण व्यवस्था में एक बड़ा दोष है कि बहुत सारे प्रशिक्षणार्थी इसलिए प्रशिक्षण ले रहे हैं ताकि उनके पास सर्टिफिकेट हो जाए और कहीं नौकरी का जुगाड़ बन सके। प्रशिक्षण भी अपनी नौकरी की एक जिम्मेदारी मानकर प्रशिक्षण दे रहे हैं। जबकि सही अर्थों में प्रशिक्षण तो स्किल डेवलपमेंट होना चाहिए। जो व्यक्ति प्रशिक्षण लेने आया है वह प्रशिक्षण पूरा होते-होते इतना सक्षम हो जाए कि प्रशिक्षण के तुरंत बाद वह अपना काम शुरू कर सके। हमें अपनी प्रशिक्षण व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करना होगा। आज की व्यवस्था में जैसे-तैसे प्रशिक्षण की विषय सूची पूरी कर ली। परीक्षा ले ली और प्रमाण पत्र दे दिया। प्रशिक्षण की इस व्यवस्था को बदलना पड़ेगा। प्रशिक्षण का अर्थ होगा स्किल डेवलपमेंट। प्रशिक्षणार्थी स्किल पूर्ण हो जाए और अपना धंधा शुरू करने की स्थिति में आ जाए। प्रशिक्षण का यही मापदंड होगा।


प्रशिक्षण हो गया तो पूंजी चाहिए। पूंजी की आवश्यक व्यवस्था जरूरी है। यदि किसी उद्यम के लिए एक लाख रुपया चाहिए तो उसे एक लाख रुपये की ही व्यवस्था करनी चाहिए। यदि एक लाख से कम किया तो उद्योग लगेगा नहीं और एक लाख से अधिक दिया तो कर्जा वापिस होगा नहीं। आवश्यकतानुसार पूंजी उपलब्ध करवाई जाए और वह ऋण के रूप में हो लेकिन सस्ती ब्याज दरों पर। सस्ती दरों पर, हर उद्यमी को उसके उद्यम के अनुसार पूँजी उपलब्ध करवाई जाए इससे पूंजी का सदुपयोग होगा और उद्यमी को उद्यम लगाने में कठिनाई नहीं होगी। पूँजी के बाद उत्पादन का प्रश्न आता है। उत्पादन गुणवत्तानुसार हो तभी वह बिकेगा। यहाँ कठिनाई आती है हाथ से किया गया काम और स्वचालित मशीनों से किये गए उत्पादन में अवश्य ही बड़ा फर्क होगा। यहीं से उसकी असफलता शुरू हो जाती है। अगला कार्य है मार्केटिंग।


आज की इस विज्ञापन की दुनिया में, पैकेजिंग की दुनिया में, उद्यमी टिक नहीं पा रहा है। यदि उत्पादन के लिए कोई विशेष व्यवस्था करते हैं तो उसका दुरूपयोग होता है और इस उत्पाद को कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं होती है तो वह मार्केट की प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाएगा।


उत्पादन तभी संभव है यह उचित है जब वह बिक जाए अन्यथा उत्पादन जमा हो जाएगा तो भी पूँजी डूब गई और उत्पादन नहीं किया तो भी पूँजी डूब गई। छोटा उद्यमी यहीं आकर असफल होता है। यहीं वह कर्जदार बनता है। यहीं पूँजी डूबती है और स्क्लि डेवलपमेंट असफल हो जाती है। बड़ा उद्योगपति जहाँ विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग विभाग बनाता है वहाँ यह छोटा उद्यमी सारे कार्य स्वयं करने के लिए मजबूर है। गाँधीजी ने इसका रास्ता सुझाया था कि गाँव की आवश्यकता का उत्पादन गाँव में हो और गाँव में ही उसकी खपत हो लेकिन आज का जमाना तो वैश्वीकरण का है। छोटा-बड़ा कोई भी, उसे बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिकना है। छोटा उद्यमी बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं सकता। यहाँ राज्य को दखल देना होगा। राज्य को इस उद्यमी को मदद करनी होगी। इसे सुरक्षा देनी होगी। इसे कैसे सुरक्षा देनी है, इसका बना बनाया कोई ढंचा नहीं है। हर उद्यम की अलग-अलग