मानवता कमजोर पड़ी तो, दानवता बढ़ जायेगी,
दया-धर्म का साथ न होगा, मानवता मर जायेगी
परोपकारी हो अपना जीवन, धर्म यही बन जायेगा,
परहित कुछ कर न सके तो, जीवन व्यर्थ ही जायेगा।
निज स्वार्थ में पशु भी जीते, भेद यही मानव में है,
सदबुद्धि अपनायी तो, दानव भी मानव बन जायेगा।
प्रकृति से बढा कर दूरी, जहर हवा पानी में घोले,
भौतिकता अपनायेंगे तो, अध्यात्म भाव मिट जायेगा।
राष्ट्र रहेगा जनता होगी, भारत की पहचान न होगी,
करूणा भाव नही रहा तो, मानव पत्थर सा हो जायेगा।
धरती-पर्वत, चाँद- सितारे, दूर गगन में सूरज होगा,
मानवता गर नही रही तो, सनातन ही मिट जायेगा।
राष्ट्र प्रथम
निज स्वार्थ मे जीने वाले, हमको भी स्वीकार नही है,
राष्ट्र प्रथम हो लक्ष्य जिसका, उससे अपनी रार नही है।
कुछ पाने की खातिर अक्सर, कुछ खोना भी पडता है,
लक्ष्य बडा हो सम्मुख अपने, निज जां से भी प्यार नही है।
वायू प्रदूषण
क्यों नही हम नीम पीपल और तुलसी बो रहे,
क्यों नही बरगद लगाते, आम जामून बो रहे?
है अजब सी मानसिकता, स्वार्थ में मानव घिरा,
काटकर वन वृक्ष घर में, नागफनी को बो रहे।
कह रहे सब वायू प्रदूषित, जीना दूभर है यहाँ,
विनाश कर प्रकृति का क्यों, कंकरीट धरा पर बो रहे?
कैसे बढे उत्पादन यहाँ, बस यही चिन्ता सताती,
लाभ की खातिर जमीं में, जहर क्यों हम बो रहे?