नीर पथ पर बिखरा था

नीर पथ पर बिखरा था 


खामोश लोग निकलने लगे


कदम ना ठहराया किसी ने


बस देखकर अंजान होने लगे,


पथ पर अकेली वो


दरिदों से लड़ रही है


किसी के गंदे नजर से


अंधी जनता देखकर


आगे बढ़ रही है,


बात नीर की नही


बात चीर की नही


आखिर कब तक


समाज खामोश रहेगा।