सत्य

सत्य पराजित है खड़ा, झूठ का होता सम्मान।


मान अपमान के भवर में डूब रहा सच्चा इंसान।।


नैया सच की है डोलती और खिवैया झुठो का यार।


जब नैया डुबाये खिवैया ही फिर कैसे हो नैया पार।।


चल रहा चाल झूठ अब, कर देगा सच को बेजार।


ठगते इस संसार मे रोज सच पर होता अत्याचार।।


चापलसी के दौर में क्या सच अकेला पड़ जाएगा।


विश्वास का सूरज क्या कभी कहीं से नजर आएगा।


उम्मीदों की डोर को कभी भी सच ना छोड़ता।


झूठ मजबूत हो मगर एक दिन जरूर दम तोड़ता।।