बसाहला एक शहर-एक विरासत

हिमालय की शिवालिक पर्वत-श्रृंखला पर, जहाँ पंजाब, हिमाचलप्रदेश और जम्मू काश्मीर की सीमा मिलती है, वह स्थान है विश्वस्थली। वर्तमान में 'बसोहली' के नाम से प्रचलित यह स्थान जम्मू-काश्मीर राज्य के कठुआ जिले की एक तहसील है। रावी नदी के तट पर स्थित बसोहली प्रकृति प्रेमियों के लिये एक आदर्श पर्यटन-स्थल हैसमुद्र की सतह से 1,876 फुट की ऊँचाई पर स्थित यह शहर 1635 ई. में राजा भोपतपाल द्वारा बसाया गया। छोटा-सा राज्य, जिसमें बसोहली शहर के साथ अभी 34 ग्राम पंचायतें जुड़ी हैं, ने 1857 तक अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखा। पाल वंश की समाप्ति के बाद यह जम्मू राज्य का अंग बना।



प्राकृतिक सान्दय


बसोहली शहर हिमालय की तलहटी में बसा है। नगर के बीच में बने पुराने किले के अवशेष जहाँ इसकी ऐतिहासिकता का बोध कराते हैं, वहीं उसके ऊपर खड़े होकर हिमालय के हिम-धवल उत्तुंग शिखरों की दूर तक फैली श्रृंखला का दर्शन आसानी से किया जा सकता है। रावी नदी पर बने रणजीत सागर बांध का पानी बसोहली को तीन ओर से घेरे हुए है। 600 मेगावाट क्षमतावाले इस बांध ने बसहोली के आस- पास के 88 वर्गकिमी क्षेत्रफल को घेरा हुआ है। किले अथवा चंचलोई माता के मन्दिर पर खड़े होकर देखने पर दूर-दूर तक फैला स्वच्छ जल, सागर का ही अनुमान देता है। वर्षा के समय जहाँ यह पूरी तरह भर जाता है, वहीं सर्दियों में पानी कम होने पर इस झील के बीच से एक द्वीप निकल आता है। नाव से इस छोटे द्वीप पर जाया जा सकता है।


बसोहली कलम


सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पहाड़ी कला के प्रारम्भिक प्रमाण मिलते हैंसत्रहवा शताब्दी के अन्तिम वर्षों में सत्ता संभालनेवाले बसहोली के राजा पाल पाल के संरक्षण में देवीदास नामक चित्रकार ने राधा और कृष्ण के प्रेमकाव्य 'रसमञ्जरी' पर आधारित लघु चित्रों की श्रृंखला की रचना की। 1730 में मनकू नामक कलाकार ने 'गीतगोविन्द' को आधार बनाकर ऐसी ही एक श्रृंखला की रचना की जो अत्यन्त प्रसिद्ध हुई। प्रायः तीन शताब्दियों तक इस कला ने नये आयाम स्थापित किये। उस काल की कलाकृतियाँ आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। स्वतंत्र भारत में इस कला को जितनी सहायता मिलनी चाहिये थी, वह नहीं मिल सकी जिसके कारण इस कला को आगे बढ़ानेवाले कलाकारों की संख्या कम हुई है। लेकिन आज भी अनेक पुरानी कलाकृतियाँ बसोहली में व्यक्तिगत संग्रहों में देखी जा सकती हैं।


नसोदली पसीना


बसोहली एक समय पश्मीना के काम का बड़ा केन्द्र रहा है। यद्यपि पश्मीना का उत्पादन तो ऊँचाईवाले स्थानों पर होता है, किन्तु उसकी कताई और बुनाई का केन्द्र बसोहली में था। इसके कारीगर आज भी बड़ी संख्या में बसोहली में हैं जिनके परे परिवार इस काम में लगे रहते हैं। सरकारी संरक्षण न मिलने का दबाव इनके काम पर भी पड़ा है और नयी पीढ़ी भविष्य की कमज़ोर सम्भावनाओं के चलते इस कला से दूर जा रही है। अच्छी गुणवत्तावाले पश्मीना के शॉल और स्टॉल यहाँ उचित दाम पर खरीदे जा सकते हैं। हाल ही में मफलर, रुमाल आदि नये उत्पाद और उन पर कढ़ाई के नये प्रयोग भी प्रारम्भ हुए हैं।


आयुर्वेद


राजकीय संरक्षण के कारण यहाँ अनेक बड़े आयुर्वेदाचार्य आकर बसे। आज भी उनके परिवारों में यह परम्परा चली आ रही है। सम्भवतः इसका कारण इस क्षेत्र में पाई जानेवाली औषधीय वनस्पति की प्रचुरता भी है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण अपने आप में स्वास्थ्य के अनुकूल होने के कारण यहाँ आरोग्य पर्यटन की अपार सम्भावना है।


स्वाद की दुनिया


ताजे फल और सब्जियों का उपयोग कर बननेवाले स्थानीय व्यञ्जन यहाँ आनेवाले पर्यटकों को सहज ही मोह लेते हैं। गेहूँ, चावल, दालों और तेल के प्रयोग से यहाँ अनेक स्वादिष्ट व्यञ्जन तैयार किये जाते हैं। आतिथ्य की यहाँ विशिष्ट परम्परा है और अतिथियों के स्वागत में परोसे जानेवाले विशेष भोजन को 'बसोहली धाम' के नाम से सम्बोधित करते हैं।


'धाम' भी दो प्रकार की होती है। पूरी, सब्जी, रायता, हलवा, भटूरा आदि व्यञ्जन परोसे जाने पर इसे 'कच्ची धाम' कहते हैं। वहीं 'पक्की धाम' में प्रायः गेहूँ का प्रयोग नहीं होता। इसमें चार प्रकार की दालें, तैलीय माश, कढ़ी (मदरा), चावल, मीठे चावल, खट्टा आदि होते हैं। हिमाचल में भी 'धाम' का आयोजन होता है, किन्तु बसोहली में धाम बनाने के तरीके और स्वाद में कुछ अंतर रहता है।


पर्यटन


यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त सम्भावनापूर्ण है। यहाँ बसोहली की अधिष्ठात्री देवी चंचलोई माता के मन्दिर के साथ ही चामुण्डा माता, शीतला माता और महाकाली के प्रसिद्ध मन्दिर हैं, वहीं ज्येष्ठा देवी जैसा तीर्थ स्थान है जहाँ आस्था के साथ ही पर्वतारोहण का भी आनन्द है।


धार महानपुर, शीतल नगर और हट्टजैसे गाँव] ग्रामीण पर्यटन की दृष्टि से आदर्श स्थान हैं जहाँ शहरों के कोलाहल से दूर सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में कुछ दिन बिताना अपने-आप में अनूठा अनुभव हैनिकट ही हिमाचल के प्रमुख पर्यटन स्थल डलहौजी के समान्तर ऊँचाईवाली सुन्दर घाटी बनी का अनछुआ सौन्दर्य, मन को छू जाता है। सभी जगह सुरम्य घाटियों में मानवनिर्मित पैदल मार्गों पर ट्रैकिंग का अपना ही आनन्द है।


रामलीला


अन्य बातों की तरह ही बसोहली की रामलीला भी अपने-आप में अनूठी है। सब जगहों से अलग, जहाँ किसी एक स्थान पर ही अनेक लीलाओं के दृश्य तैयार किये जाते हैं, बसोहली की रामलीला सचल है। नगर के मध्य में स्थित रामलीला मैदान में जहाँ प्रारम्भिक लीलाएँ होती हैं, वहीं 'केवट- संवाद' मैदान में नहीं बल्कि तालाब में असली नाव पर प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार भरत, नगर के बाहर वन में श्रीराम से मिलते हैं तो लंकादहन एक अन्य स्थान पर। शारदीय नवरात्रि में यह आयोजन प्रति वर्ष होता है।


सुरक्षित परिवेश


जम्मू काश्मीर का नाम लेते ही एक बार मन में भय उत्पन्न होता है। आँखों के आगे आतंकवादी घटनाओं के चित्र घूम जाते हैं। किन्तु जम्मू काश्मीर का यह भू-भाग ऐसा है जहाँ आतंकवाद की छाया तक नहीं पड़ी। अलगाव का यहाँ नामोनिशान तक नहीं। यहाँ के गाँवों में भारत की रक्षा के लिये जान देनेवाले सैनिकों के परिवार तो खूब मिलेंगे, लेकिन अलगाव का समर्थक कोई नहीं। इसलिये पर्यटकों के लिये यह क्षेत्र ऐसा सुरक्षित परिवेश उपलब्ध कराता है जहाँ निर्भय होकर शान्ति के पल बिताये जा सकते हैं। बसोहली को अपने सम्पूर्ण सौन्दर्य में देखने के लिये अक्टूबर और नवम्बर माह सर्वश्रेष्ठ हैं। फरवरी-मार्च के महीने भी इसके लिये उपयुक्त हैं, किन्तु इस समय बांध में जलस्तर कुछ कम रहता है। मई-जून तुलना में गर्म रहते हैं, किन्तु इस समय धार महानपुर, शीतल नगर, हट्ट और बनी में रहने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है। इन गाँवों में सर्दी के मौसम में हल्के हिमपात का भी आनन्द लिया जा सकता है।


विशवस्थली  


बसोहली को उसके पुराने वैभव तक पहुँचाने का सपना लिये यहाँ के कुछ युवाओं ने बीस वर्ष पहले 'विश्वस्थली' नाम से ही एक समिति का गठन किया। आज यह नगर के जनजीवन का एक बड़ा आधार बन चुकी है। संस्था द्वारा बसोहली-चित्रकला के कलाकारों को प्रशिक्षण दिया जाता है, पश्मीना के कारीगरों को रोजगार के प्रयास जारी है, युवाओं के कौशल विकास के प्रयत्न चलते हैं। स्वच्छता और पर्यावरण रक्षा के अभियान चलाये जाते हैं। स्वरोजगार बढ़ाकर पलायन को रोकने की कोशिश की जा रही है। नगर के युवाओं द्वारा अपने सीमित साधन और निरंतर प्रयास के बल पर बसोहली के गौरव को वापस लाने की कोशिशें अब रंग लाने लगी हैं। उनके प्रयास से देशभर के कलाकारों, उद्यमियों और पर्यटकों ने बसोहली की ओर रुख करना शुरू किया है। जल्दी ही इनकी सफलता की कहानी क्षेत्र के अन्य युवाओं और अन्य नगरों के लिये प्रेरणा बन जायेगी