भारतीय कृषि के विकास में हिंदी का योगदान

वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी के साथ साथ कृषि क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग कई गुणा बढ़ रहा है और संचार के विभिन्न तकनीकों के प्रयोग में भी हिंदी ने अपनी उपयोगिता को स्थापित किया है। साथ ही इन अनुसंधानों का प्रचार प्रसार किसान वर्ग तक उन्हीं की भाषा में करने का प्रयास भी कर रहा है। हिंदी ने विभिन्न डिजिटल माध्यमों में अपनी उपयं उपयोगिता, प्रासंगिकता और वर्चस्व को स्थापित किया है। सरकार द्वारा हर तरह के संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। विभिन्न सॉफ्टवेयरों के विकास ने कृषि सूचना प्रौद्योगिकी को व्यावहारिक दृष्टि से बहुत आसान बना दिया है। आज इन सुविधाओं का कृषक भरपूर लाभ उठा रहे हैं


कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की केंद्र बिंदु व भारतीय जीवन की धुरी है। आर्थिक जीवन का आधार, रोजगार का प्रमुख स्रोत तथा विदेशी मुद्रा अर्जन का माध्यम होने के कारण कृषि को देश की आधारशिला कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। देश की कुल श्रमशक्ति का लगभग 52 प्रतिशत भाग कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्रों से ही अपना जीविकोपार्जन कर रही हैं। अतः यह कहना समीचीन होगा कि कृषि के विकास, समृद्धि व उत्पादकता पर ही देश का विकास व संपन्नता निर्भर है।


कृषि ऐसी नवप्रवर्तन शैली और पद्धति है जिसमें स्वदेशी के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान, आधुनिक उपकरण तथा प्रत्येक पहलु जैसे खेत की तैयारी, खेत का चुनाव, खरपतवार नियंत्रण, पौध सरंक्षण, फसलोत्तर प्रबंधन, फसल की कटाई जैसी महत्वपूर्ण कृषि पद्धतियों के उपयोग शामिल हैं। इस तरह की कृषि में संसाधनों का अनुकूलन होता है जिससे किसानों की दक्षता और उत्पादकता बढ़ती है।



अपनी स्थापना के बाद से ही देश के कृषि अनुसंधानों में भा.कृ.अनु.सं. का नाम अग्रणी रहा है। देश को खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने वाली हरित क्रान्ति का जनक भी यही संस्थान रहा है। नित नये अनुसंधानों एवं प्रौद्योगिकियों के विकास का जनक यह संस्थान प्रतिदिन प्रगति के नए आयाम छू रहा है। देश के किसानों तक कृषि तकनीकियों को पहुंचाने के लिए जरूरी है कि वे उन्हीं की बोलचाल की भाषा हिंदी में ही हों।


कृषि प्रगति में तेजी लाने के लिए यह और भी जरूरी है कि उन्नत तकनीकों, प्रजातियों व अनुसंधान परिणामों को शीघ्रता से किसानों तक पहुंचाया जाए। कृषि अनुसंधानों द्वारा विकसित तकनीकियां, कृषकों तक उनकी भाषा में पहुंचाना हमेंशा से एक बड़ी चुनौती रहा है। विकसित कृषि तकनीकियां देश के बहुसंख्यक भाग में बोली जाने वाली भाषा हिंदी में कृषकों तक पहुंचे, ताकि वह इससे अधिक लाभ आर्जित कर सकें। निश्चित ही इससे राजभाषा हिंदी की विशेष भूमिका साबित हुई। हमारे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से कोहिमा और लक्ष्यद्वीप से कार निकोबार तक हिंदी ही विचारों के आदान-प्रदान की सहज स्वीकार्य भाषा है। कृषि के क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग नितांत आवश्यक है क्योंकि बहुसंख्यक किसान सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग करते हैं। विश्व के तकरीबन 175 देशों में यह बोली समझी जाती है और विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ाया जा रहा है। राजभाषा के संबंध में संवैधानिक प्रावधान हैं और इसके लिए राष्ट्रपति महोदय ने 1960 में आदेश जारी किए गए। 1963 में राजभाषा अधिनियम बनाए गए तथा 1968 में राजभाषा संकल्प जारी किया गया और राजभाषा नीति के सफल कार्यान्वयन हेतु वर्ष 1976 में भारत सरकार ने राजभाषा नियम बनाए।


वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी के साथ साथ कृषि क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग कई गुणा बढ़ रहा है और संचार के विभिन्न तकनीकों के प्रयोग में भी हिंदी ने अपनी उपयोगिता को स्थापित किया है। साथ ही इन अनुसंधानों का प्रचार प्रसार किसान वर्ग तक उन्हीं की भाषा में करने का प्रयास भी कर रहा है।


हिंदी ने विभिन्न डिजिटल माध्यमों में अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता और वर्चस्व को स्थापित किया है। सरकार द्वारा हर तरह के संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। विभिन्न सॉफ्टवेयरों के विकास ने कृषि सूचना प्रौद्योगिकी को व्यावहारिक दृष्टि से बहुत आसान बना दिया है। आज इन सुविधाओं का कृषक भरपूर लाभ उठा रहे हैं।


कृषि तकनीकी क्षेत्रों से संबंधित पारिभाषिक शब्दावली एवं विषयक शब्दावली का निर्माण और मानकीकरण के कार्य लगभग पूरे हो चुके हैं और इनमें दिन प्रतिदिन विकास हो रहा है। परन्तु भविष्य में अभी और शब्दावली का नवीनीकरण करना होगा। जो भी कृषि तकनीकी प्रौद्योगिकी से संबंधित सुविधाएं आज अंग्रेजी में उपलब्ध है, उन्हें हिंदी में भी उपलब्ध कराने के लिए हमें अपना लक्ष्य निर्धारित करना होगा।


भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक में राजभाषा प्रभाग का गठन राजभाषा नीतियों और राजभाषा अधिनियम 1963; 1967 में यथा संशोधित और राजभाषा नियम 1976 की प्रावधानों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए किया, जिसका उद्देश्य भारत सरकार की नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना और भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना था।


देश में हरित क्रांति अर्थात खाद्य निर्भरता से आत्म निर्भरता की ओर ले जाने में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। परिषद के अधीन संस्थानों द्वारा किये जा रहे अनुसंधान कार्य कृषकों को अधिक लाभान्वित करने के लिए होते हैं। अतः कृषि के विकास में जो भी नवीन अनुसंधान तकनीकियां विकसित हुई हैं, वह बहुत सहज एवं सरल हिंदी भाषा में कृषकों तथा आम जनता तक पहुंचाए जा रहे हैं।


भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधीन 100 से अधिक अनुसंधान संस्थानों द्वारा विभिन्न फसलों की विकसित प्रजातियों, खरपतवार नियंत्रण, फसल संरक्षण, फसलोत्तर प्रबंधन, फसल की कटाई आदि जैसी महत्वपूर्ण कृषि पद्धतियों पर हो रहे नवीन शोध कार्यो को कृषकों तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक संस्थान अपनी वार्षिक रिपोर्ट तथा अनुसंधान के मुख्य अंश के साथ अपनी गृह पत्रका क्कों हिंदी में प्रकाशित करते हैं। तथा प्रत्येक संस्थान द्वारा अपनी अधिदेश फसलों से संबंधित सारी जानकारी युक्त सामाग्री भी हिंदी में प्रकाशित करके किसानों तक विभिन्न माध्यमों जैसे, संस्थान की बैवसाइट, कृषि मेलों में प्रदर्शनी, कृषि बिज्ञान केंद्र, राज्य कृषि विश्वविद्यालय तथा राज्य कृषि विभागों द्वारा को पहुंचाए जा रहे हैं।


इसके साथ साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से कृषकों को हिंदी के माध्यम से कृषि तकनीकें पहुंचाने वाले वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को उत्साहित करने के लिए विभिन्न पुरस्कार योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे वह अधिक ऊर्जा के साथ किसानों के विकास के लिए कार्य कर सके,


इसके साथ साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषकों को हिंदी के माध्यम से लाभ पहुंचाने बाले वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को उत्साहित करने के लिए विभिन्न पुरस्कार देती है, जिससे वह अधिक ऊर्जा के साथ किसानों की भलाई के लिए कार्य कर सके,


. वर्ष भर हिंदी में सर्वाधिक कार्य करने के लिए राजर्षि टंडन राजभाषा पुरस्कार योजना


. हिंदी में मौलिक पुस्तक लेखन के लिए राजभाषा गौरव पुरस्कार योजना


. सर्वश्रेष्ठ राजभाषा गृह पत्रिका के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्काकर योजना इत्यादि चलाई जा रही हैं।


संस्थान के कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र में आने वाले किसानों के लिए सारी सूचनाएं हिंदी में ही उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जाता है साथ ही केंद्र में समय समय पर किसानों के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं जिनमें उनकी समस्याओं का समाधान भी उन्हीं की भाषा हिंदी में किया जाता है। संस्थान से प्रतिवर्ष अनेक हिंदी के प्रकाशन निकाले जा रहे हैं, जिनमें संस्थान के अनुसंधानों तथा नई तकनीकों की जानकारी दी जाती है। इसी तरह के एक प्रयास के रूप में पूसा सुरभि नाम से संस्थान की एक गृह पत्रिका प्रतिवर्ष निकाली जाती है जिसका उद्देश्य संस्थान के अनुसंधानों को किसानों तथा जन साधारण तक पहुंचाने का है ताकि इन अनुसंधानों का लाभ सही वर्ग उठा सके।


इसके अलावा संस्थान की वार्षिक रिपोर्ट हिंदी में भी प्रकाशित की जा रही है। साथ ही संस्थान द्वारा पूसा सुरभि (वार्षिक), पूसा समाचार (तिमाही), प्रसार दूत (द्विमासिक) तथा सामयिकी (मासिक) जैसे नियमित प्रकाशनों के अलावा अनेक तदर्थ प्रकाशन, पैम्फलेट तथा प्रसार बुलेटिन हिंदी में जारी किए जाते हैं ।हिंदी बुलेटिन प्रकाशित करने के लिए संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) की अध्यक्षता में हिंदी प्रकाशन समिति गठित है जो प्रकाशन इकाई द्वारा हिंदी में तकनीकी बुलेटिन प्रकाशित करने के लिए विषयों का सुझाव देने, इन्हें तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों की पहचान करने, वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई पाण्डुलिपियों में शामिल किए जाने वाले पहलुओं पर सुझाव देने के अलावा उनका पुनरीक्षण भी करती है। संस्थान में राजभाषा कार्यान्वयन को वांछित गति प्रदान करने और अधिकारियों/कर्मचारियों में हिंदी में कार्य करने के प्रति जागरुकता का सृजन करने के लिए हिंदी चेतना मास के दौरान विभिन्न प्रतियोगिताओं यथा- वाद-विवाद, निबंध लेखन, काव्य-पाठ, टिप्पण एवं मसौदा लेखन, कम्प्यूटर पर हिंदी टंकण, आशुभाषण, प्रश्न-मंच, अनुवाद तथा श्रुतलेख का आयोजन किया जाता है। उक्त प्रतियोगिताओं में सभी वर्गों के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा बढ़चढ़कर भाग लिया जाता है।


संस्थान के सभी वर्गों के अधिकारियों/कर्मचारियों/वैज्ञानिकों के लिए विभिन्न विषयों पर वर्षभर में चार कार्यशालाएं आयोजित की गईं जिनसे बहुत बड़ी संख्या में अधिकारी/कर्मचारी लाभान्वित हुए। प्रत्येक वर्ष की भांति संस्थान के मेंला ग्राउंड में ह्यकृषि मेंलाह्न आयोजित किया जाता है जिसमें मुख्य पंडाल के सभी चित्रों के शीर्षक, ग्राफ, हिस्टोग्राम आदि हिंदी में प्रदर्शित किए जाते हैं। मल्टी मीडिया के माध्यम से कृषि संबंधी जानकारी आकर्षक ढंग से प्रस्तुत की गई तथा किसानों, छात्रों व अन्य आगन्तुकों को कृषि साहित्य हिंदी में उपलब्ध कराया जाता है। इसी प्रकार संस्थान द्वारा बड़ी संख्या में किसानों, प्रसार कार्यकताओं व उद्यमियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रतिभागियों को पाठ्य सामग्री भी हिंदी में उपलब्ध कराई जाती है तथा प्रशिक्षण का माध्यम भी हिंदी ही होता है।


इस संस्थान में हिंदी में पुस्तक लेखन को बढ़ावा देने के लिए सर्वश्रेष्ठ पुस्तक लेखन के लिए 'डॉ. रामनाथ सिंह पुरस्कार' द्विवार्षिक प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार योजना में 10,000/- रुपए नकद प्रदान किए जाते हैं। इसी प्रकार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी में वैज्ञानिक लेख लिखने पर एक पुरस्कार योजना चल रही है जिसमें 7000/-, 5000/- तथा 3000/- रुपये नकद पुरस्कार स्वरूप दिए जाते हैं। हिंदी में व्याख्यान देने को बढ़ावा देने के लिए इस संस्थान के प्रवक्ताओं द्वारा हिंदी में सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक/तकनीकी व्याख्यान देने के लिए पूसा विशिष्ट हिंदी प्रवक्ता पुरस्कार के नाम से एक नकद पुरस्कार योजना चलाई जा रही है। इस योजना में प्रत्येक वर्ष 10,000/- रुपये का नकद पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही हिंदी में प्रशासनिक कार्य को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा विभाग की नकद पुरस्कार योजना के तहत कुल दस कर्मचारियों को पुरस्कार प्रदान किए जाने का प्रावधान है जिसमें 5000/-रु. के दो प्रथम, 3000/-रु. के तीन द्वितीय तथा 2000/-रु. के पांच तृतीय पुरस्कार दिए जाते हैं।


संस्थान के वैज्ञानिकों को हिंदी में शोध पत्र तैयार करने और उनका पॉवर प्वाइंट प्रस्तुतीकरण के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एक प्रतियोगिता/संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है जिसमें संस्थान के वैज्ञानिक निर्धारित विषय पर अपने शोध- पत्र का पावर प्वाइंट प्रस्तुतीकरण करते हैं। इस प्रतियोगिता में 10,000 रु., 7000 रु., 5000 रु. व 3,000 रु. के पांच नकद पुरस्कार प्रदान किए जाते है।


राजभाषा विभाग, भारत सरकार के आदेशानुसार आशुलिपिकों तथा कनिष्ठ लिपिकों को क्रमशः हिंदी आशुलिपि व हिंदी टंकण का प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है। इसी क्रम में राजभाषा विभाग द्वारा चलाये जा रहे हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण में संस्थान के सभी आशुलिपिकों को हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण के लिए नामित किया गया है। इसी अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए संस्थान स्तर पर भी हिंदी टंकण प्रशिक्षण केंद्र स्थाइपित है, जिसमें संस्थान में नव-नियुक्त सहायकों तथा कनिष्ठ लिपिकों को हिंदी टंकण का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा संस्थान के प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारियों के लिए समय-समय पर पुनश्चर्या प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।


मूल पत्राचार अधिकाधिक हिंदी में करने को बढ़ावा देने के लिए संस्थान के सभी संभागों व केन्द्रों के बीच हिंदी व्यवहार प्रतियोगिता चलाई जा रही है जिसमें वर्षभर सबसे अधिक पत्राचार हिंदी में करने वाले संभाग/केन्द्र को पुरस्कार स्वरुप शील्ड प्रदान की जाती है।


संभागों/अनुभागों/क्षेत्रीय केन्द्रों में हिंदी की प्रगति को वांछित गति प्रदान करने, राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक में लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करने तथा संभाग एवं हिंदी अनुभाग के बीच सम्पर्कसूत्र के रूप में कार्य करने के उद्देश्य से प्रत्येक संभाग/केन्द्र में राजभाषा नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। इसके तहत सर्वश्रेष्ठ राजभाषा नोडल अधिकारी पुरस्कार योजना भी आरंभ की गई है जिसके अंतर्गत 5000/-रु. का नकद पुरस्कार प्रदान किया जाता है।


संस्थान के अनेक अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा देश की विभिन्न हिंदी संस्थाओं व भा.कृ.अ.प. के कई संस्थानों द्वारा देशभर के विभिन्न नगरों में आयोजित हिंदी वैज्ञानिक संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, सम्मेलनों आदि में बढ़ चढ़ कर भाग लिया जाता है।


अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि कृषि प्रौद्योगिकियों को कृषकों तक पहुंचाने में राजभाषा हिंदी ने तेज गति प्रदान करने के साथ-साथ कार्यान्वयन में समयानुकूल जरूरतों के अनुसार सफलता प्रदान की है।


आज भारत अपनी आवश्यकताओं के मुकाबले अधिक अनाज का उत्पादन कर रहा है। कुछ खाद्यान्नों का अन्य देशों को निर्यात भी किया जाता है। कृषि पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति लाई गई है। अब देश खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हैं। यह अब अधिशेष अनाज और अन्य कृषि उत्पादों को दूसरे देशों में निर्यात करने की स्थिति में है। आज भारत को चाय और मूंगफली के उत्पादन में दुनिया में पहला स्थान प्राप्त है। वहीं चावल, गन्ना, जूट और तेल के बीज के उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारी कृषि को विकसित करने और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। हमें अभी भी रुकना नहीं है, हमें अपनी कृषि अभी भी आगे बढ़ाने के लिए अपने प्रयासों को तब तक जारी रखना है, जब तक भारत में निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण इस की बढ़ती हुई मांग के अनुरूप आपूर्ति कर पाने मे कामयाबी हासिल न कर ले।